डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
राज्य के कुल भूभाग का 45.44 प्रतिशत हिस्सा वनाच्छादित होने के
बावजूद उत्तराखंड में अभयारण्यों और नेशनल पार्कों की हालत बेहद
खराब है। अस्कोट वन्यजीव अभयारण्य तो खराब श्रेणी में पहुंच गया
है। नंदा देवी पार्क की स्थिति में भी एक श्रेणी और गिरी है। बाकी
नेशनल पार्कों और अभयारण्यों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है।ये
खुलासा मैनेजमेंट इफेक्टिवनेस इवोल्यूशन ऑफ 438 नेशनल पार्क एंड
वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी इन इंडिया 2020-2025 रिपोर्ट में हुआ है।
रिपोर्ट के मुताबिक तिब्बत और नेपाल सीमा से सटे अस्कोट वन्यजीव
अभयारण्य में मैनेजमेंट प्लान नहीं है। कर्मियों की भारी कमी है। 300
वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस अभयारण्य में समृद्ध जैव विविधता
है।ये समुद्र तल से 2500 से 10 हजार फीट की ऊंचाई के क्षेत्र में फैला
है। यहां पर कई संकटग्रस्त प्रजातियां मिलती हैं। इसके बावजूद यहां पर
यहां ऊंचाई वाले क्षत्रों में उपयोगी उपकरणों की कमी है। जो उपकरण
हैं भी वह काफी पुराने हो चुके हैं। हाल ही में भारतीय वन्यजीव
संस्थान में केंद्रीय वन ने इस रिपोर्ट को जारी किया था।रिपोर्ट में
धारचूला में वन्यजीवों के लिए अलग एक विंग की स्थापना, पर्याप्त
प्रशिक्षित कर्मियों को तैनात करने और उन्हें उच्च गुणवत्ता युक्त उपकरण
देने, हथियार उपलब्ध कराने, पुराने भवनों की मरम्मत करने समेत
अन्य सुझाव दिए गए हैं। इस संबंध में प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव का
कहना है कि जिन जगहों पर कमियों का उल्लेख रिपोर्ट में किया गया है
वहां पर सुधार किया जाएगा।अस्कोट वन्यजीव अभयारण्य कस्तूरी
हिरन के शिकार के लिए संवेदनशील है। इसके बावजूद यहां
अव्यवस्थाएं होने और उपकरणों व कर्मियों की कमी के कारण इसे
खराब श्रेणी में रखा गया है। 2020-2022 में हुए अध्ययन में यह ठीक
श्रेणी में था।मैनेजमेंट इफेक्टिवनेस इवोल्यूशन ऑफ 438 नेशनल पार्क
एंड वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी इन इंडिया 2020-2025 रिपोर्ट में
भारतीय वन्य जीव संस्थान ने राज्य के अस्कोट, बिनसर, केदारनाथ,
मसूरी और नंधौर अभयारण्य और गोविंद, गंगोत्री, फूलों की घाटी व
नंदा देवी नेशनल पार्क का अध्ययन किया। पिछली बार संंबंधित क्षेत्रों
में हुए अध्ययन का भी उल्लेख किया। कुछ जगह अच्छा भी हुआ है।
बिनसर, मसूरी, नंधौर अभयारण्य और गंगोत्री नेशनल पार्क ठीक से
अच्छे की श्रेणी में पहुंचे हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि उत्तराखंड के नौ में
से पांच संरक्षित क्षेत्रों के स्कोर में गिरावट आई है। इनमें विश्व धरोहर
में शामिल नंदा देवी नेशनल पार्क व फूलों की घाटी के प्रबंधन
प्रभावशीलता स्कोर में पिछली बार के मुकाबले क्रमश: 21.61 व 8.33
प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।अस्कोट अभयारण्य तो बेहद कमजोर
श्रेणी में आ गया है। उसका पिछला स्कोर 47.32 प्रतिशत था जो अब
घटकर 35.16 प्रतिशत पहुंच गया है। इसके अलावा गोविंद नेशनल
पार्क व गोविंद पशु विहार और केदारनाथ अभयारण्य के स्कोर में भी
गिरावट आई है। अलबत्ता, चार संरक्षित क्षेत्रों ने अपने स्कोर में सुधार
किया है। इन संरक्षित क्षेत्रों की सेहत में सुधार के दृष्टिगत रिपोर्ट में कई
सुझाव भी दिए गए हैं। इस कड़ी में संरक्षित क्षेत्रों में कार्मिकों के रिक्त
पदों को भरने के साथ ही युवा कार्मिकों की तैनाती सुनिश्चित करने,
संरक्षित क्षेत्रों के ईको सेंसेटिव जोन अधिसूचित करने के साथ ही
सीमांकन करने, वासस्थल विकास को प्रभावी कदम उठाने, संरक्षण में
स्थानीय निवासियों की भागीदारी सुनिश्चित करने के साथ ही
आजीविका के अवसर सृजित करने, वन्यजीवों के शिकार की घटनाओं
को रोकने के लिए क्विक रिस्पांस टीमों का गठन करने जैसे सुझाव दिए
गए हैं। उधर, राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने बताया कि
भारतीय वन्यजीव संस्थान से यह रिपोर्ट प्राप्त की जा रही है। फिर
इसके आधार पर संरक्षित क्षेत्रों में कदम उठाए जाएंगे। अभयारण्य
बनाने का मूल उद्देश्य क्षेत्र की वनस्पतियों और वन्यजीवों की वृहद जैव
विविधता का संरक्षण करना था। अभयारण्य का ईको सेंसिटिव जोन
(पारिस्थितिकीय संवेदी जोन) का विस्तार अभयारण्य की सीमा के
चारों ओर 22 किमी तक फैला है। इस जोन का क्षेत्रफल 454. 65 वर्ग
किलोमीटर है। अंतरराष्ट्रीय सीमा होने के कारण अभयारण्य के पूर्वी,
पश्चिमी और दक्षिणी भागों की तरफ पारिस्थितिकीय जोन का शून्य
विस्तार है। उत्तरी भाग में रहने वाले स्थानीय समुदाय और आदिम
वनराजि जनजाति के निवास के कारण शून्य विस्तार है। यह
अभयारण्य मुख्य रूप से कस्तूरी मृग और उसके आवास का संरक्षण क्षेत्र
था। कस्तूरी मृग हिरण की एक दुर्लभ प्रजाति है जो मुख्य रूप से
दक्षिणी एशिया के पहाड़ों में वनाच्छादित और अल्पाइन झाड़ीदार
आवासों में रहती है। इस दुर्लभ हिरण प्रजाति के अलावा, जो इस क्षेत्र
को प्रसिद्ध बनाती है, इस अभयारण्य में पाए जाने वाले अन्य
स्तनधारियों में बंगाल टाइगर, स्नो टाइगर, भारतीय तेंदुआ, हिमालयन
जंगली बिल्ली, हिमालयन तेंदुआ, काला हिमालयन भालू, सिवेट,
बार्किंग डियर, सीरो, भराल, बंदर, लेमूर, बोनट मकाक, गोरल और
हिमालयन भूरा भालू शामिल हैं, जो असकोट कस्तूरी मृग अभयारण्य
को अपने आप में अनूठा बनाते हैं। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के*
*जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*