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प्राकृतिक आपदाओं के प्रति बेहद संवेदनशील भूमि बड़ी चुनौती

27/04/25
in उत्तराखंड, देहरादून
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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
विश्व प्रसिद्ध उत्तराखंड की चारधाम यात्रा 30 अप्रैल, 2025 को शुरू होने जा रही है। हर साल की तरह इस बार भी लाखों श्रद्धालु इसमें शामिल होंगे। इसके लिए सरकार ने तमाम तरह की सुविधाएं देने की तैयारी की है हिंदू धर्म में चार धाम यात्रा का विशेष महत्व है। यह यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। चा चारधाम यात्रा को हिंदू धर्म में चारों पुरुषार्थों – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – की प्राप्ति का मार्ग माना जाता है। यह माना जाता है कि इन चार धामों की यात्रा करने से व्यक्ति को जीवन में मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, चारधाम यात्रा हिमालय की पवित्र वादियों में प्रकृति के सान्निध्य में आने का एक अनूठा अवसर प्रदान करती है। यात्रा के दौरान पहाड़ों की ऊंचाई, नदियों का संगम और धार्मिक स्थलों का वातावरण मन को शांति और आत्मिक सुख प्रदान करता है। धाम यात्रा को कलयुग के मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि हर किसी को जीवन में एक बार चार धाम यात्रा जरूर करनी चाहिए। पर्यावरण वैज्ञानिकों व आपदा प्रबंधन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि हिमालय इतनी अधिक इंसानी हलचल बर्दाश्त नहीं कर सकता।2013 की केदारनाथ त्रासदी की याद दिलाते हुए वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने चेतावनी दी है कि केदारनाथ और बदरीनाथ घाटियां एक दिन में 12,000 से 15,000 तीर्थयात्रियों का सुरक्षित समावेश कर सकती है लेकिन यात्रा मौसम में वहां रोज 40,000 यात्री जा रहे हैं। इतने लोगों और उनके वाहनों की आवाजाही में वृद्धि से वहां अचानक जमीन खिसकने (लैंडस्लाइड) और बेहद तेजी से बाढ़ आने का खतरा बढ़ गया है।नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट का कहना है कि हिमालय की चट्टानें कमजोर, भुरभुरी व नाजुक हैं।वहां बारूदी विस्फोट से चट्टानें तोड़कर सड़क चौड़ी करना, भारी निर्माण कार्य और बढ़ती पर्यटन गतिविधियां प्राकृतिक आपदा ला सकती हैं।सारे दिन हेलीकाप्टर की आवाज से भी पहाड़ में कंपन होता है।आईआइटी रुड़की ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पिछले 5 वर्षों में भूस्खलन में 27 फीसदी वृद्धि हुई है।भूमि का क्षरण होने के साथ जलस्रोत सूखते जा रहे हैं।इसके अलावा वहां हजारों टन कचरे के ढेर लग रहे हैं।यात्री वहां प्लास्टिक की बोतलें, रैपर, गुटखा पाउच तथा गंदगी छोड़ आते हैं।इससे नदी, जंगल व गांव प्रदूषित होते जा रहे हैं।यद्यपि 1,300 किलोमीटर लंबे चारधाम यात्रा मार्ग पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं लेकिन वह सिर्फ स्थानीय आबादी की जरूरतों के हिसाब से हैं।यात्रियों की तादाद बढ़ने से नदी में सीवेज मिलता है और प्रदूषण बढ़ता चला जाता है।राज्य सरकार डिजिटल रजिस्ट्रेशन व ई-पास के जरिए तीर्थयात्रियों की आवाजाही पर नियंत्रण करती है लेकिन राजनीतिक दबाव या प्रशासन की लापरवाही के चलते व्यवस्था गड़बड़ा जाती है।भीड़ पर नियंत्रण नहीं रहने से हादसे की आशंका बनी रहती है। हिमालय सिर्फ धर्मस्थलों तक ही सीमित नहीं है।वहां प्राकृतिक सौंदर्य देखने बड़ी तादाद में सैलानी आते हैं।फूलों की घाटी तथा जैव विविधता के प्रति उनका आकर्षण रहता है।कुछ वर्ष पहले जोशीमठ में जमीन धंसने और मकानों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ने की घटना हुई थी।बेहतर सड़क नेटवर्क, ठहरने की सुविधा, हेलीकॉप्टर सेवा की वजह से तीर्थयात्रियों की संख्या बढ़ी है।पूरे सीजन में लाखों लोग वहां जाते हैं।इससे पर्यावरण संबंधी चिंता बढ़ गई है। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा बनाई गई कॉफी टेबल बुक ‘श्री केदारनाथ जी क्षेत्र में आपदा प्रबंधन पर एक और प्रयास’ का विमोचन और यूएसडीएमए के डैशबोर्ड का लोकार्पण किया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य प्राकृतिक आपदाओं के दृष्टिगत एक संवेदनशील राज्य है। भौगोलिक और पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण यहां भूस्खलन, बाढ़, बादल फटना, भूकंप जैसी आपदाएं समय-समय पर आती रहती हैं। इन आपदाओं से निपटना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती रहती है। उन्होंने कहा कि 31 जुलाई 2024 को श्री केदारनाथ क्षेत्र में आई आपदा एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आई थी। इस कठिन परिस्थिति में उत्तराखण्ड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) ने सभी रेखीय विभागों के साथ समन्वय स्थापित करते हुए त्वरित राहत एवं बचाव कार्य किए। राज्यपाल ने कहा कि प्रदेश सरकार ने केंद्र से समन्वय बनाते हुए इस आपदा की घड़ी में त्वरित निर्णय लेकर राहत एवं बचाव कार्य शुरू किए, जो कि सराहनीय है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने उक्त घटना का संज्ञान लेते हुए चारधाम यात्रा मार्गों पर श्रद्धालुओं की सुविधा के दृष्टिगत सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त रखने एवं यात्रियों को सुरक्षित स्थानों पर रोकने के निर्देश दिए। उनकी निगरानी में युद्ध स्तर पर राहत एवं बचाव कार्य किए गए।राज्यपाल ने कहा कि राहत और बचाव कार्यों के लिए भारत सरकार द्वारा भी भरपूर सहयोग प्रदान किया गया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री इस आपदा के बाद यात्रियों की सुरक्षा को लेकर इतने फिक्रमंद थे कि वे स्वयं इस रेस्क्यू अभियान की अपडेट लेते रहे। राज्यपाल ने कहा कि इन सभी महत्वपूर्ण प्रयासों को एक पुस्तक के रूप में संकलित किया गया है, जो भविष्य के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का कार्य करेगी। ‘‘श्री केदारनाथ जी क्षेत्र में आपदा प्रबंधन पर एक और प्रयास’’ कॉफी टेबल बुक में उन सभी बहादुर व्यक्तियों और संगठनों के योगदान को संजोया गया है, जिन्होंने अपनी निस्वार्थ सेवा से इस आपदा का प्रभाव कम करने में सहायता की। राज्यपाल ने कहा कि आज हम यू.एस.डी.एम.ए. डैशबोर्ड का भी लोकार्पण कर रहे हैं, जो आपदा प्रबंधन प्रणाली को अधिक सटीक, त्वरित और पारदर्शी बनाएगा। यह डिजिटल प्रणाली न केवल आपदाओं से संबंधित आंकड़ों के संग्रहण और विश्लेषण में सहायता करेगी, बल्कि नीति-निर्माण और त्वरित निर्णय लेने में भी सहायक सिद्ध होगी। उन्होंने कहा कि इस डैशबोर्ड से उत्तराखण्ड को आपदा प्रबंधन में एक नई तकनीकी शक्ति मिलेगी, जिससे न केवल त्वरित प्रतिक्रिया संभव होगी, बल्कि भविष्य में बेहतर आपदा पूर्वानुमान और योजनाएं भी बनाई जा सकेंगी। राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखण्ड एक ऐसा राज्य है, जो न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि अपने नागरिकों की सेवा-भावना और साहस के लिए भी जाना जाता है। राज्यपाल ने उन सभी व्यक्तियों और संगठनों का धन्यवाद किया जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी अपना कर्तव्य निभाया और लोगों की रक्षा के लिए दिन-रात कार्य किया। उन्होंने कहा कि हम सभी मिलकर एक सशक्त, सतर्क और आपदा-प्रतिरोधी उत्तराखण्ड के निर्माण की दिशा में कार्य करें, ताकि हम अपनी प्राकृतिक धरोहरों की रक्षा करते हुए आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित कर सकें।आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में नवाचारों को बढ़ावा देने वाले यूएसडीएमए के डैशबोर्ड का लोकार्पण किया गया है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष केदारनाथ क्षेत्र में आई आपदा के दौरान चारधाम यात्रा भी चल रही थी। शासन के वरिष्ठ अधिकारियों और जिला प्रशासन से मुख्यमंत्री रातभर प्रभावित क्षे़त्र की हर अपडेट लेते रहे। अगले दिन प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर मुख्यमंत्री ने अधिकारियों के साथ राहत एवं बचाव कार्यों में तेजी लाने के लिए स्वयं मोर्चा संभाला। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस आपदा से बचाव के लिए सामाजिक, धार्मिक संगठनों और स्थानीय लोगों का सरकार को पूरा सहयोग मिला। उन्होंने कहा कि यह प्राकृतिक आपदा भर नहीं थी बल्कि हमारे धैर्य, समर्पण और आपदा प्रबंधन की क्षमताओं की एक कठिन परीक्षा भी थी।मुख्यमंत्री ने कहा कि जब वे केदारनाथ क्षेत्र में श्रद्धालुओं के बीच पहुंचे तो उनके मन में शंका थी कि देशभर से आये श्रद्धालुओं के मन में आक्रोश का भाव होगा। उन्होंने कहा कि हमारे प्रभावित क्षेत्र में जाते ही श्रद्धालुओं में उत्साह का भाव दिखा।श्रद्धालुओं ने कहा कि हमें पूरा भरोसा है कि हम सभी देवभूमि से सुरक्षित अपने घर जायेंगे। सभी श्रद्धालुओं को भोजन, दवाई और अन्य आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई गई। 15 हजार से अधिक श्रद्धालुओं को सुरक्षित निकाला गया। आपदा प्रभावित क्षेत्र में 29 स्थानों पर सड़क मार्ग ध्वस्त हो गये थे, उन सभी को जल्द प्रारंभ किया। व्यावसायिक संगठनों के लोगों से बात कर उनके सुझावों को आगे बढ़ाया। इस आपदा में हमारे एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, पुलिस बल, भारतीय वायु सेना के जवानों तथा जिला प्रशासन की टीमों के साथ ही स्थानीय लोगों ने कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में किसी भी आपदा की चुनौती से पार पाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केन्द्रीय गृह मंत्री का सहयोग हमें निरंतर मिलता है।उन्होंने कहा कि इस बार कि चारधाम यात्रा को सुव्यवस्थित बनाने के लिए पूरी तैयारियां की जा रही है। प्रदेश में 08 दिसम्बर 2024 से शुरू हुई शीतकालीन यात्रा के भी अच्छे अनुभव सामने आ रहे हैं। प्रधानमंत्री का शीतकालीन यात्रा में कार्यक्रम प्रस्तावित है। मुख्यमंत्री ने कहा कि मुखवा में उनके लिए भी एक अलग प्रकार का अनुभव था। शीतकाल में उत्तराखण्ड का नैसर्गिक सौन्दर्य और भी अद्भुत होता है। इस मौके पर कैबिनेट मंत्री और रूद्रप्रयाग जनपद के प्रभारी मंत्री ने कहा कि 31 जुलाई 2024 का दिन केदारघाटी के लिए बहुत दुखद दिन था। लेकिन मुख्यमंत्री ने आपदा के दौरान सबसे आगे खड़े होकर लोगों के अंदर का डर दूर कर यात्रा फिर शुरु करवाने में सफलता हासिल की। केदारनाथ और सिलक्यारा आपदा प्रबंधन इसका उदाहरण है। मुख्यमंत्री के नेतृत्व में हर बार सरकार अपनी कार्यकुशलता से आपदा से निपटने में कामयाब रही। उन्होंने कहा कि जिस तरह से मुख्यमंत्री आपदा के दौरान काम करते हैं, एक कॉफी टेबल बुक तो मुख्यमंत्री पर भी बनाई जा सकती है।यूएसडीएमए द्वारा विकसित किए गए डैशबोर्ड की विशेषताएंइस डैशबोर्ड से उत्तराखण्ड में आपदा प्रबंधन प्रणाली को अधिक सटीक, त्वरित और पारदर्शी बनाने में मदद मिलेगी। राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र की रिपोर्टिंग प्रक्रिया तथा एक्शन टेकन रिपोर्ट को डिजिटल बनाया जाएगा। आपदा की घटनाओं का त्वरित विश्लेषण करने एवं उचित निर्णय लेने में सहायता मिलेगी। आपदा संबंधी डेटा को किसी भी स्थान से ऑनलाइन एक्सेस किया जा सकेगा। सभी जिलों से डिजिटल माध्यम से सूचनाओं का संकलन होगा, आपदा प्रबंधन तंत्र को अधिक प्रभावी एवं डेटा संचालित बनाने में मदद मिलेगी। बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, हेमकुंड साहिब तथा शीतकाल के दौरान पांडुकेश्वर, ऊखीमठ, मुखवा, खरसाली में प्रतिदिन आगमन कर रहे तीर्थयात्रियों एवं वाहनों की सूचनाएं नियमित अपडेट की जाएंगी। आपदाओं के कारण होने वाली जनहानि, पशुहानि तथा परिसंपत्तियों की क्षति, सड़क दुर्घटनाओं का विवरण, आगामी दस दिवस का मौसम पूर्वानुमान, उत्तराखण्ड के विभिन्न जिलों में तैनात आपदा मित्रों की जीआईएस लोकेशन के साथ फोन नंबर, सेटेलाइट फोन की सूचनाएं तथा सड़कों के बाधित होने व खुलने की जानकारी समाहित होगी।लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। *लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*

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