• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar

अकेले पड़ने पर भी नेताजी ने कभी नहीं मानी हार

24/01/22
in उत्तराखंड
Reading Time: 1min read
0
SHARES
448
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
सुभाष चंद्र बोस का जन्म ओडिशा के कटक शहर में 23 जनवरी 1897 में हुआ था. वे बड़े और संपन्न हिंदू बंगाली परिवार में पिता जानकी नाथ बोस था और माता प्रभावती की नौवीं संतान थे. बचपन से ही सुभाष चन्द्र बोस पढ़ाई में होशियार होने के साथ देशभक्ति की भावना सराबोर थे. बचपन से ही उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति बहुत तेज थी और इंटर की परीक्षा के पहले वे स्वामी विवेकानंद का पूरा साहित्य और आनंद मठ पढ़ चुके थे.

लेकिन उन्होंने इसके बाद भी अपनी अंग्रेजी माध्यम वाली पढ़ाई भी जारी रखीपिता का मन रखने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने आईसीएस परीक्षा इंग्लैंड जाने का फैसला तो कर लिया और अपनी काबिलियत दिखाते हुए परीक्षा पास भी कर ली, लेकिन उनका मन देश सेवा की ओर ही जाता रहा और बहुत ही कठिन आईसीएस पास करने के बाद अंततः उन्होंने अपनों तक का विरोध झेलते हुए भारत के स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के लिए अपनी आईसीएस की नौकरी छोड़ दी और इंग्लैंड से स्वदेश लौट आएइसके बाद सुभाष चंद्र बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होकर देशबंधु चितरंज दास के साथ काम करने लगे जिसकी सलाह उन्होंने गांधी जी ने भी दी थी.

दास बाबू और सुभाष की स्वराज पार्टी ने कलकत्ता महानगरपालिका का चुनाव जीता और दोनों ने कलकत्ता के लिए खूब काम किया. इसी बीच एक क्रांतिकारी गोपीनाथ साहा को फांसी होने पर सुभाष ने उनका शव अंतिम संस्कार के लिए मांग लिया. इससे अंग्रेजों ने सुभाष बाबू को भी क्रांतिकारी समझ कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.जेल में ही सुभाष को दास बाबू के निधन की खबर मिली.

सुभाष अकेले हो गए. जेल में उनकी तबियत बहुत खराब हो गई. उन्हें तपेदिक हो गया. लेकिन बाद उनकी हालत बिगड़ते देख उन्हें रिहा करना पड़ा1928 में कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन के समय सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर आ गए और उन्होंने नेहरू के साथ काम किया. दोनों उस समय पूर्ण स्वराज के पक्षधर थे जिसके लिए गांधी जी तैयार नहीं थे.

1930 में सुभाष कोलकाता में फिर गिरफ्तार हुए और छूटे. इसके बाद वे 1932 में फिर गिरफ्तार हुए तो उनकी सेहत फिर खराब हुई. इस बार फिर अंग्रेजों ने उन्हें छोड़ने के लिए देश छोड़ने की शर्त रखी. इस बार डॉक्टर की सलाह पर सुभाष यूरोप जाने को तैयार हो गएई. यूरोप में भी सुभाष ने आजादी के लिए काम जारी रखा. 1934 में पिता की मृत्यु से पहले उन्हें देखने के लिए वे भारत आए लेकिन उससे पहले ही पिता का निधन हो गया और उन्हें कोलकाता पहुंचते ही फिर गिरफ्तार कर उन्हें कुछ दिन के बाद वापस यूरोप भेज दिया गया.

लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और जेल में आमरण अनशन कर दिया. इसकी वजह से वे जेल से छूट कर अपने ही घर में नजरबंद हो गए. और घर आने के बाद वे अंग्रेजों को चकमा देकर पहले पेशावर गए फिर काबुल होते हुए रूस और अंततः जर्मनी पहुंच गए. लेकिन हिटलर से मुलाकात के बाद भी सुभाष निराश नहीं हुए और पूर्व में सिंगापुर जाने का फैसला किया. जहां जाकर उन्होंने आजाद हिंद फौज की कमान संभाली.

ऐसे में उत्तराखंड के कुमाऊं के लिए यह गर्व की बात है कि देश को गुलामी से मुक्ति दिलाने को अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले महान सेनानी नेताजी को देश को आजादी दिलाने की अपनी मुहिम के दौरान जेल में रहने के कारण बीमार पड़ने पर जब स्वास्थ्य लाभ की जरूरत पड़ी तो उन्हें कुमाऊं में सहारा और इलाज मिला था। सुभाष चंद्र बोस ने टीबी की बीमारी के कारण लंबे समय तक नैनीताल के भवाली स्थित सेनेटोरियम में अपना इलाज कराया था। इसके लिए वह यहां भर्ती भी रहे और वह इस संस्थान में कई बार आए।

उन्होंने इलाज के लिए कुमाऊं का रुख किया, जहां गेठिया और भवाली में विशिष्ट जलवायु के कारण टीबी सेनेटोरियम स्थापित किए गए थे जिनकी बहुत अधिक प्रसिद्धि थी। हमारा देश हमेशा से ही वीर भूमि और वीरों का देश रहा है, जब-जब किसी ने इस वीर भूमि की वीरता को क्षीण करने का प्रयास किया है तब-तब इस भूमि की कोख से वीर सपूतों ने जन्म लिया और इसकी शान और सम्मान पर जरा भी आँच नहीं आने दी है.

इन्हीं वीर सपूतों में एक थे नेताजी सुभाष चन्द्र, जिन्होंने भारत भूमि की आजादी के लिए अंग्रेजी हुकूमत से लोहा ले आजादी की लड़ाई में अपना बहुमूल्य योगदान दिया. वीर और पराक्रम का पर्याय माने जाने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिवस को पूरा भारतवर्ष आज “पराक्रम दिवस” के रूप में मनाता है.पराक्रम दिवस प्रत्येक वर्ष 23 जनवरी को मनाया जाता है. यह दिन नेताजी जयंती या नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती के नाम से भी जाना जाता है. ‘पराक्रम’ यह शब्द सुभाष चंद्र बोस​ के असीम वीरता और साहसी व्यक्तित्व को दर्शाता है.

पराक्रम दिवस देश के सभी हिस्सों में पूरे सम्मान के साथ मनाया जाता है. यह दिन हमें नेताजी सुभाष चंद्र जैसा वीर और साहसी बनने के लिए प्रेरित करता है. बहरहाल आज अस्पताल की स्थिति दयनीय हो चुकी है। कभी पूरे एशिया में विख्यात टीबी अस्पताल आज खुद बीमार है। शासन की ओर से इसकी दशा को सुधारने के लिए व्यापक इंतजाम नहीं किए जा रहे, यहां रखी मशीनें खराब हो चुकी हैं। लेकिन यह अस्पताल आज भी अपनी पहचान बनाए हुए अड़िग खड़ा है। जर्जर हालत में पहुंच चुके भवाली सैनिटोरियम में अभी भी करीब 70 फीसदी मरीज उत्तर प्रदेश के हैं।

अस्पताल में उत्तराखंड के मरीजों की संख्या 30 फीसदी से भी कम है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो डाट्स योजना शुरू होने के बाद इलाज अधूरा छोड़ने वाले मरीजों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है। 1912 में अंग्रेजों ने क्षयरोग अस्पताल की स्थापना की, जो बाद में भवाली सैनिटोरियम के नाम से प्रसिद्ध हो गया। 207 कर्मियों वाले इस अस्पताल में हर माह 70 लाख रुपए से अधिक वेतन पर ही खर्च होते हैं।

दवा की व्यवस्था भले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से निशुल्क होती है, लेकिन मरीजों के भोजन, रखरखाव और कर्मियों की वर्दी में हर साल 25 लाख रुपए खर्च होते हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो यूपी के मेरठ, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, शाहजहांपुर, बदायूं, पीलीभीत, बिलासपुर के मरीजों की संख्या अधिक है। जबकि उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर और नैनीताल जिले के मरीज भी यहां इलाज को पहुंचते हैं। जबकि राज्य के पहाड़ी जिलों से इलाज कराने वाले मरीजों की संख्या दस फीसदी से भी कम है।

सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से समृद्ध उत्तराखंड का गौरवशाली इतिहास रहा है। शहर स्थित हिमालय संग्रहालय इसी गौरवशाली अतीत से वर्तमान को जोड़ने का काम कर रहा है। पौराणिक इतिहास से लेकर स्वाधीनता के सफर में उत्तराखंड के योगदान को बयां करने वाले कई ऐतिहासिक प्रमाण यहा संरक्षित है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई योगदान दिए। उन्हें अपने उग्रवादी दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है, जिसका इस्तेमाल उन्होंने ब्रितानी हुकूमत से स्वतंत्रता हासिल करने के लिए किया था। वे अपनी समाजवादी नीतियों के लिए भी जाने जाते हैं।

ShareSendTweet
Previous Post

गणतंत्र दिवस पर उत्तराखंड की झांकी कुछ ऐसी होगी

Next Post

कोरोना प्रभाव से देवाल में एसबीआई और ब्लाक कार्यालय रहे बंद

Related Posts

उत्तराखंड

जिलाधिकारियों को सीएम के निर्देश, प्रदेश में लगातार हो रही वर्षा के दृष्टिगत अपनी पूरी टीम के साथ लगातार ग्राउंड ज़ीरो पर रहें

August 4, 2025
9
उत्तराखंड

भेड़चाल फ़िल्म का प्रदर्शन

August 4, 2025
7
उत्तराखंड

आचार्य बालकृष्ण के जन्मदिन पर पतंजलि किसान सेवा समिति कोटद्वार द्वारा जड़ी-बूटी के पौधे किये वितरित

August 4, 2025
55
उत्तराखंड

जाति, आय एवं स्थायी निवास प्रमाणपत्रों के मामले लंबित न रहें: जिलाधिकारी गढ़वाल

August 4, 2025
9
उत्तराखंड

देवराड़ा के ग्रामीणों को नगर पंचायत नहीं ग्राम पंचायत चाहिए

August 4, 2025
9
उत्तराखंड

सुरक्षित भविष्य: छात्रों को नौकरियों के लिए तैयार करना

August 4, 2025
7

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    0 shares
    Share 0 Tweet 0

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

जिलाधिकारियों को सीएम के निर्देश, प्रदेश में लगातार हो रही वर्षा के दृष्टिगत अपनी पूरी टीम के साथ लगातार ग्राउंड ज़ीरो पर रहें

August 4, 2025

भेड़चाल फ़िल्म का प्रदर्शन

August 4, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.