रिपोर्ट: लक्ष्मण नेगी
22 सितंबर 2023 को साऊपालो, ब्राजील में जलपुरुष राजेंद्र सिंह के अनुभवों को सुनने के बाद ब्राजील की पर्यावरण मंत्री मरीना सिल्वा ने कहा कि, जल से ही शांति आएगी, यह बात राजेंद्र सिंह के अनुभव से स्पष्ट होती है। यह शांति को लाने का काम आदिवासियों के मूल ज्ञान से सामुदायिक विकेंद्रित प्राकृतिक और जल प्रबंधन द्वारा होगा। यह वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जल शांति वर्ष घोषित हुआ है। इस वर्ष के नायक जलपुरुष ही बनेंगे, क्योंकि इन्होंने जहां लोग बंदूक लेकर केवल लूटपाट का काम करते थे, वहां अब पानी के काम से शांति और समृद्धि आ गई है। यह अनुभव पूरी दुनिया को सीखने लायक है। हिंसा से दुनिया नहीं चलती। दुनिया को अहिंसा का रास्ता ही आध्यात्मिक विज्ञान से बनता है।हमारा ब्राज़ील देश सस्टेनेबिलिटी का नायक रहा है। यह शब्द ब्राजील के रियो डि जेनेरो में आयोजित दुनिया के दूसरे पृथ्वी शिखर सम्मेलन से निकला था। अब इस सस्टेनेबिलिटी के लिए पूरी दुनिया को पालन करना चाहिए। सस्टेनेबिलिटी के लिए भारत में शांति का काम और चीन का तकनीक का काम सबसे आगे है। अब ब्राजील, चीन ,साउथ अफ्रीका और भारत यह चारों मिलकर दुनिया को सही सस्टेनेबिलिटी का रास्ता दिखा सकते हैं। सबको मिलकर सस्टेनेबिलिटी के रास्ते पर आगे बढ़ाना है।जलपुरुष राजेंद्र सिंह जी ने कहा कि ,यह दुनिया यदि अपने साझे भविष्य को ठीक करना चाहती है, तो जंगलों में रहने वाले जल, जंगल, जमीन के प्रिय आदिवासियों और उनके ज्ञान को समझने की जरूरत है। वह ज्ञान ही धरती और प्रकृति को पुनर्जीवित करने के रास्ते पर आगे लेकर जाएगा। आधुनिक शिक्षा हमे विस्थापन, बिगाड़ और विनाश के रास्ते पर लेकर जाती हैं, जबकि हमारा मूल ज्ञान विद्या हमें प्रकृति के रक्षण-संरक्षण, आस्था, श्रृद्धा ,भक्ति भाव से प्रकृति के साथ रहना सिखाता है। प्रकृति के प्रति प्यार व सम्मान बढ़ाकर समृद्धि के रास्ते पर लेकर जाता है। यह समृद्धि ही सस्टेनेबिलिटी है।
प्रकृति को प्यार करने वाले आनंद से जीते है। प्रकृति यह आनंद ही हमे रक्षण – संरक्षण की विधियों, प्रबंधन की प्रक्रिया आदिवासियों के मूल ज्ञान से सीख सकते हैं । लेकिन उसके लिए हमारे जीवन श्रमनिष्ठ बनता है। आधुनिक शिक्षा हमे श्रम निष्ठा से हटाकर, भौतिक सुख सुविधाओं की तरफ धकेलती है।इसलिए हम मूल ज्ञान से हटते जा रहे और आधुनिक शिक्षा की तरफ बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। मैंने जो काम किया है, वह मूल आदिवासियों से सीख कर किया है। उन्होंने ही मुझे सिखाया और इस सीख से आज यह कह सकता हूं कि, उस सीख से किसी से मांगने की जरूरत नहीं है। उस सीख में केवल हम श्रमनिष्ठ बनकर अपने श्रम से प्रकृति से जितना लेते हैं, उतना ही प्रकृति को लौटा दे, यह भाव हमारे मन में होता है। आधुनिक शिक्षा शोषण, अतिक्रमण और प्रदूषण की तरफ बढ़ाती है। इसलिए इस दुनिया को अब शोषण, अतिक्रमण, प्रदूषण मुक्त बनना है, तो मूल ज्ञान से ही आगे बढ़ सकते हैं। यह प्रकृति की आस्था और पर्यावरण की रक्षा है। इसलिए आज इस सम्मेलन में भारत और भारत व ब्राजील में मिलकर शुरू किया है । वह वही रास्ता है जो दुनिया शांति और समृद्धि के रास्ते पर लेकर जाएगा।