रिपोर्ट:कमल बिष्ट
देहरादून। ऋषिकुल आयुर्वैदिक कॉलेज हरिद्वार के एनाटॉमी हाल में 6 दिवसीय रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना विषय के शिक्षकों का प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन हुआ। इस कार्यक्रम को भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा प्रायोजित किया गया तथा राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ के द्वारा संयोजित किया गया था। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के ऋषिकुल परिसर के स्नातकोत्तर रस शास्त्र एवं भैषज्य कल्पना विभाग द्वारा आयोजित किया गया था। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में संपूर्ण भारत के सभी प्रान्तों, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, और कर्नाटक से 30 प्रशिक्षु आए थे, जिनके प्रशिक्षण हेतु प्रथम दिन प्रोफेसर एस. एस. सावरेकर, पूर्व कुलपति गुजरात आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जामनगर तथा प्रोफेसर लक्ष्मीकांत द्विवेदी पूर्व विभागाध्यक्ष रस शास्त्र एवं भैषज्य कल्पना विभाग, राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर (राजस्थान) दूसरे दिन प्रोफेसर मनीष व्यास आईपीआर सेल प्रमुख, लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी तथा डॉक्टर शुचि मित्रा, एसोसिएट प्रोफेसर रसशास्त्र विभाग ऋषिकुल के द्वारा व्याख्यान प्रस्तुत किया गया। तीसरे दिन नैनो टेक्नोलॉजी के आधुनिक तकनीक को समझने के लिए आईआईटी रुड़की के रसायन विभाग के डॉ. तापस मंडल आए थे, जिन्होंने जिन्होंने आधुनिक तकनीक से भस्म एवं औषधीय के प्रशिक्षण के बारे में बताया तथा ऋषिकुल परिसर के परिषद निदेशक प्रोफेसर डी.सी. सिंह जो द्रव्य गुण विभाग के विभागाध्यक्ष भी हैं के द्वारा कच्ची एवं सुखी जड़ी-बूटियां को पहचानने की शास्त्रोंक्त विधियों से अवगत कराया गया तथा मिलावटी अपद्रव्यों की पहचान भी बताई, द्रब्यागुण विभाग की समृद्ध वन औषधि वाटिका के पादपो का ज्ञान भी कराया गया। प्रशिक्षण के चतुर्थी चो ब्रह्म प्रकाश चरक आयुर्वेद संस्थान से डॉक्टर सुमेर सिंह तोमर के द्वारा विभिन्न औषधि मार्गो तथा माक्षिक के शोध की विस्तृत एवं व्यावहारिक जानकारी प्रस्तुत की गई तथा ऋषिकुल परिसर के रसशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर खेमचंद शर्मा के द्वारा उड़ानसील तेलों के निष्काशन की विधियों पर एक व्याख्यान प्रस्तुत किया गया तथा उनका दूसरा व्याख्यान को कुपिपक्व औषधीय को बनाने की प्राचीन तथा अवार्चिन विधियों के बारे में बताया गया। पांचवें दिन गोपबंधु आयुर्वेद विद्यालय, पुरी (उड़ीसा) के रसशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर कामदेव दास, जो की पूरी के प्रख्यात आयुर्वेद चिकित्सक हैं, के द्वारा शास्त्रोक आयुर्वेदिक औषधियां के सही उपयोग कैसे किया जाए तथा उनसे कैसे समुचित लाभ लिया जाए के बारे में बताया गया तथा दूसरी व्याख्यान में खनिज औषधि योगों को किस प्रकार से बनाया जाए, तथा बनाते समय, किन-किन शास्त्रों की विधियों के द्वारा परिक्षण किया जाए, ताकि उनका कोई दुष्प्रभाव शरीर पर ना हो। सत्र के दूसरे व्याख्याता ऋषिकुल के पूर्व स्नातक डॉक्टर चंद्रकांत कटियार है जो भारत की कई अग्रणी औषधि निर्माता कंपनियों में जैसे रेनबेकसी, डाबर एवं इमामी आदि ओषध निर्माण पर शोध कर चुके हैं, तथा पेटेंट प्राप्त कर चुके हैं, उनके द्वारा ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1940 एवं 45 के नवीनतम प्रावधानों से अवगत कराया गया, तथा फीटो-फार्मास्यूटिकल औषधि निर्माण के वैश्विक दृष्टिकोण एवं प्रावधानों से इस क्षेत्र की नवीन संभावनाओं से प्रशिक्षु को अवगत कराया गया। प्रशिक्षण के अंतिम दिन प्रोफेसर पी.के. प्रजापति, माननीय कुलपति, डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर, के द्वारा रस औषधीय की एस ओ पी के बारे में बताया गया तथा आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अवगत कराया गया तथा इस तथा दूसरे वक्ता प्रोफेसर रविनारायण आचार्य, महानिदेशक, सीसीआरएस, नई दिल्ली के द्वारा आयुष के क्षेत्र में शोध कर रहे विभिन्न अग्रणी संस्थाओं के क्रियाकलापों तथा वर्तमान में किया जा रहे, शोध प्रयासों से अवगत कराया गया आयुर्वेद में शोध के लिए आवश्यक विभिन्न डेटाबेस के बारे में बताया गया इस प्रकार इस 6 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन हुआ। इस दोरान प्रतिभागियों को राज्य ओषध परिक्षण प्रयोगशाला, हरिद्वार तथा पंजाली हर्बल एंड फ़ूड पार्क, ग्राम पदार्थ का भ्रमण भी कराया गया। इस समापन समारोह के मुख्य अतिथि, उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रोफेसर अरुण कुमार त्रिपाठी, कुलसचिव प्रोफेसर अनूप कुमार गक्खड, ऋषिकुल परिसर के परिसर निदेशक प्रोफेसर डीसी सिंह, उपपरिसर निदेशक प्रोफेसर ओ पी सिंह, प्रोफेसर के के शर्मा, प्रोफेसर अजय कुमार गुप्ता, प्रोफेसर रूबी रानी गोयल, प्रोफेसर रमेश चंद तिवारी, प्रोफेसर सीमा जोशी आदि शिक्षक उपस्थित थे। प्रोफेसर अरुण कुमार त्रिपाठी के द्वारा इस कार्यक्रम के आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर खेमचंद शर्मा, आयोजन सचिव प्रोफेसर सूची मित्रा, सह-सचिव प्रोफेसर उषा शर्मा, संयोजक डॉक्टर यादवेंद्र यादव के अथक प्रयासों की सराहना की तथा इस कार्यक्रम को सफल बनाने में दिन-रात एक करने वाले सभी विभाग के अधेयताओं तथा परिसर के कर्मचारियों को डॉक्टर सूची मित्रा के द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। इस कार्यक्रम में अतिथियों को सम्मानित करने के लिए आयुर्वेद एवं यूनानी सेवा के पूर्व निदेशक, डॉ देवेंद्र चमोली तथा गुरुकुल के फार्मास्यूटिकल विज्ञानं विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ० विपिन कुमार के द्वारा सम्मानित किया गया, तथा कार्यक्रम के अंत में डॉ० सीमा कुरेले, डॉक्टर अक्षत, डॉक्टर जगन्नाथ हरिया तथा डॉक्टर सचिन सेठ के द्वारा अपने अनुभव साझा किए गए तथा आयोजन समिति के प्रयासों की प्रशंसा की ।