• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar
No Result
View All Result

दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के शोध प्रभाग की ओर से संस्थान के सभागार में एक विशेष अकादमिक विमर्श का सत्र आयोजित किया गया।

18/11/23
in देहरादून
Reading Time: 1min read
182
SHARES
228
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

ब्यूरो रिपोर्ट

देहरादून। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के शोध प्रभाग की ओर से आज, शुक्रवार, 17 नवंबर, 2023 पूर्वाह्न 11ः00 -1ः30 बजे तक संस्थान के सभागार में एक विशेष अकादमिक विमर्श का सत्र आयोजित किया गया। इसका विषय था अद्यतन शोध के परिप्रेक्ष्य में दक्षिण एशिया के भाषाई मानचित्र में उत्तराखण्ड की स्थिति। इस विमर्श में मुख्य वक्ता के तौर पर सुपरिचित भाषाविद् और ओस्लो विश्वविद्यालय के संस्कृति अध्ययन और ओरिएंटल भाषा विभाग में दक्षिण एशियाई अध्ययन के प्रोफेसर डाॅ. क्लॉस पीटर जोलर, भाषाविज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व प्रमुख और प्रोफेसर, कविता रस्तोगी उपस्थित रहीं। इस विशेष अकादमिक विमर्श में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के सलाहकार और पूर्व कुलपति कुमाऊं विश्वविद्यालय प्रोफे. बी के जोशी तथा इतिहासकार व पुरातत्वविद प्रोफे. महेश्वर प्रसाद जोशी,इतिहासकार  सहित देहरादून के अनेक शिक्षाविद और भाषा के जानकार लोगों ने इस चर्चा में प्रतिभाग किया। इस अवसर पर क्लॉस पीटर जोलर की पुस्तक ‘इंडो-आर्यन एन्ड लिंगुस्टिक हिस्ट्री एण्ड प्रीहिस्ट्री ऑफ नार्थ इंडिया‘, डाॅ. कविता रस्तोगी द्वारा सम्पादित ‘राजी-हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोश‘ और ‘राजी कविताएं‘ (राजी समुदाय में प्रचलित) संपादन: कविता रस्तोगी एवं माद्री कोकोटी का लोकार्पण भी किया गया।प्रारंभ में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के सलाहकार  प्रोफे. बी के जोशी ने उपस्थित अथितियों और प्रतिभगियों का स्वागत किया और संस्थान के अकादमिक व शोध कार्यों का परिचय दिया। वक्ताओं ने अपने वक्तव्य में कहा कि किसी भी क्षेत्र की भाषा का  विलुप्त होना उस  क्षेत्र के समाज -संस्कृति का विलुप्तिकरण जैसा ही होता है। दोनों वक्ताओं ने स्लाइड  शो के माध्यम से अपने शोध कार्यों के अनुभव साझा किए।क्लास पीटर ज़ोलर ने कहा कि इंडो-आर्यन एन्ड लिंगुस्टिक हिस्ट्री एन्ड प्रीहिस्ट्री ऑफ नार्थ इंडिया पुस्तक उत्तर भारत में इंडो-आर्यन के उद्भव और प्रसार पर एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।200 से अधिक इंडो-आर्यन भाषाओं और बोलियों के विश्लेषण के आधार पर, यह पुस्तक साबित करती है कि उत्तर भारत में इंडो-आर्यन बोलने वालों का एक से अधिक बार प्रवास हुआ था।जिसने आधुनिक इंडो-आर्यन भाषाओं पर स्पष्ट निशान छोड़े। जब वैदिक भाषी इंडो-आर्यन उत्तरी भारत में पहुंचे, तो वहां पहले से ही अन्य इंडो-आर्यन बोली बोलने वाले मौजूद थे जो वैदिक से थोड़ी अधिक पुरातन थीं। इन कुछ अधिक पुरातन बोलियों की छाप मुख्य रूप से हिमालय और हिंदुकुश के बीच परिधीय इंडो-आर्यन भाषाओं में पाई जाती है। इसलिए उन्हें बाह्य भाषाएँ कहा जाता है, जबकि वैदिक और शास्त्रीय संस्कृत (जैसे पाली और हिंदी) के वंशजों को आंतरिक भाषाएँ कहा जाता है। बाह्य और आंतरिक भाषाएँ न केवल पुरातनता की दृष्टि से भिन्न हैं, बल्कि उनका विकास भी अलग-अलग हुआ है, विशेषकर ध्वनि विज्ञान में। यह पुस्तक प्रथम इंडो-आर्यन के आगमन से पहले उत्तर भारत में भाषाई स्थिति के प्रश्न को भी रेखांकित करती है।यह परिधीय भाषाएं हैं, हालांकि कई छोटी तिब्बती-बर्मी हिमालयी भाषाओं के साथ, जिन्होंने सबसे समृद्ध भाषाई आकड़ों को संरक्षित किया है, यह दर्शाता है कि इंडो-आर्यन के आगमन से पूर्व प्रागैतिहासिक उत्तर भारत में ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाओं का प्रभुत्व था। डॉ रस्तोगी ने कहा कि राजी समुदाय के क्षेत्र सिमटने के कारण राजी भाषा विलुप्ति के कगार पर है और जल्द ही यह मात्र घरेलू वातावरण तक ही सीमित रह जायेगी और वह भी लंबे समय तक नहीं, जब तक कि बच्चे स्कूल में हिंदी और अन्य भाषाओं से परिचित न हो जाएं। इस भाषा को लिपि देने और अनगिनत क्षेत्रीय यात्राएँ करने के बाद प्रोफेसर कविता रस्तोगी ने समुदाय के लोगों की मदद से इस लुप्तप्राय भाषा का एक शब्दकोश संकलित किया है। यह एक बहुभाषी, बहुलिपिबद्ध सचित्र शब्दकोश है, जो व्याकरण संबंधी जानकारी, व्युत्पत्ति तथा अधिकांश शब्दों के उपयोग के साथ हिंदी व अंग्रेजी अर्थ प्रदान करता है। उन्होंने आगे कहा कि राजी कविताएं पुस्तिका में दरअसल राजी समुदाय में प्रचलित कविताएं संकलित हैं। समय के साथ राजी समुदाय ने अपनी कहानियाँ, गीत और कविताएँ बिसरा दी हैं। राजी पुनरोद्धार के दौरान, डॉ. कविता रस्तोगी और उनकी टीम ने राजी समुदाय के साथ उनके बच्चों के लिए राजी में भाषाई संसाधन विकसित करने के लिए कुछ कार्यशालाएँ आयोजित कीं। पहले चरण में उन्होंने पाँच कहानियाँ बनाईं जो 2019 में प्रकाशित हुईं। कोविड के बाद, उन्होंने दुबारा शुरुआत की और कार्यशाला में भाग लेने वाले सदस्यों से कुछ कविताएँ और गीत बनवाये। लखनऊ स्थित गैर सरकारी संगठन सोसायटी फॉर एन्डेंजर्ड एंड लेसर-नोन लैंग्वेजेज ने इन कविताओं को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है। जिसे राजी समुदाय के बच्चों के मध्य वितरित करने की उनकी योजना है।उल्लेखनीय है कि क्लॉस पीटर जोलर एक प्रसिद्ध भाषाविद् और ओस्लो विश्वविद्यालय के संस्कृति अध्ययन और ओरिएंटल भाषा विभाग में दक्षिण एशियाई अध्ययन के प्रोफेसर हैं । उनकी शोध अभिरुचियों में हिंदी साहित्य और भाषाविज्ञान , पश्चिमी हिमालय ( पश्चिमी पहाड़ी ) और उत्तरी पाकिस्तान (दर्दिक) की भाषाओं समेत  उन क्षेत्रों की सांस्कृतिक परंपराएं और नृवंशविज्ञान के साथ ही रोमानी भाषाविज्ञान शामिल हैं। उन्हें सिंधु कोहिस्तानी और बंगानी के दस्तावेजीकरण और इंडो-आर्यन भाषाओं के भाषाई इतिहास पर उनके व्यापक व महत्वपूर्ण कार्य के लिए जाना जाता है। प्रोफे. डाॅ. क्लॉस पीटर जोलर इंडो-आर्यन के उपवर्गीकरण की आंतरिक-बाहरी परिकल्पना का एक विषय के रुप में समर्थन करते हैं, जिसका उन्होंने व्यापक तौर से अध्ययन किया हुआ है ।पूर्व प्रमुख और प्रोफेसर, भाषाविज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय की कविता रस्तोगी ने भारत  केसंरचनात्मक भाषाविज्ञान, सामान्य भाषाविज्ञान, विरोधाभासी भाषाविज्ञान और भाषा दस्तावेजीकरण और पुनरुद्धार के क्षेत्रों में कार्य किया है। हिंदी भाषा में भाषाविज्ञान के तकनीकी शब्दों का एक शब्दकोश के साथ ही उनकी सात पुस्तकें प्रकाशित हैं। उनके 50 से अधिक शोध पत्र प्रमुख भाषाविज्ञान के जर्नल्स में प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने सात प्रमुख शोध परियोजनाओं का सफलतापूर्वक संचालन किया है। वर्ष 2011 में उन्होंने लुप्तप्राय और कम ज्ञात भाषाओं के लिए एक गैर सरकारी संस्था की स्थापना की है जो विलुप्त भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण की दिशा में काम करती है। डाॅ.कविता रस्तोगी कई संस्थाओं में आजीवन सदस्य व सलाहकार सदस्य के रुप में नामित हैं। आज के इस महत्वपूर्ण अकादमिक विमर्श में रमाकांत बेजवाल, भारती पाण्डे,लक्ष्मी कांत जोशी, कमला पंत, डाॅ. राजेश पाल,डॉ.नंदकिशोर हटवाल, प्रहलाद सिंह रावत, रमेश सिंह चैहान,डाॅ. विजय बहुगुणा, इतिहासविद डाॅ.सुनील सक्सेना, शंकर सिंह भाटिया , चन्द्रशेखर तिवारी, सहित अनेक शिक्षाविद और भाषा प्रेमी उपस्थित थे।

ब्यूरो रिपोर्ट

देहरादून। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के शोध प्रभाग की ओर से आज, शुक्रवार, 17 नवंबर, 2023 पूर्वाह्न 11ः00 -1ः30 बजे तक संस्थान के सभागार में एक विशेष अकादमिक विमर्श का सत्र आयोजित किया गया। इसका विषय था अद्यतन शोध के परिप्रेक्ष्य में दक्षिण एशिया के भाषाई मानचित्र में उत्तराखण्ड की स्थिति। इस विमर्श में मुख्य वक्ता के तौर पर सुपरिचित भाषाविद् और ओस्लो विश्वविद्यालय के संस्कृति अध्ययन और ओरिएंटल भाषा विभाग में दक्षिण एशियाई अध्ययन के प्रोफेसर डाॅ. क्लॉस पीटर जोलर, भाषाविज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व प्रमुख और प्रोफेसर, कविता रस्तोगी उपस्थित रहीं। इस विशेष अकादमिक विमर्श में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के सलाहकार और पूर्व कुलपति कुमाऊं विश्वविद्यालय प्रोफे. बी के जोशी तथा इतिहासकार व पुरातत्वविद प्रोफे. महेश्वर प्रसाद जोशी,इतिहासकार  सहित देहरादून के अनेक शिक्षाविद और भाषा के जानकार लोगों ने इस चर्चा में प्रतिभाग किया। इस अवसर पर क्लॉस पीटर जोलर की पुस्तक ‘इंडो-आर्यन एन्ड लिंगुस्टिक हिस्ट्री एण्ड प्रीहिस्ट्री ऑफ नार्थ इंडिया‘, डाॅ. कविता रस्तोगी द्वारा सम्पादित ‘राजी-हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोश‘ और ‘राजी कविताएं‘ (राजी समुदाय में प्रचलित) संपादन: कविता रस्तोगी एवं माद्री कोकोटी का लोकार्पण भी किया गया।प्रारंभ में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के सलाहकार  प्रोफे. बी के जोशी ने उपस्थित अथितियों और प्रतिभगियों का स्वागत किया और संस्थान के अकादमिक व शोध कार्यों का परिचय दिया। वक्ताओं ने अपने वक्तव्य में कहा कि किसी भी क्षेत्र की भाषा का  विलुप्त होना उस  क्षेत्र के समाज -संस्कृति का विलुप्तिकरण जैसा ही होता है। दोनों वक्ताओं ने स्लाइड  शो के माध्यम से अपने शोध कार्यों के अनुभव साझा किए।क्लास पीटर ज़ोलर ने कहा कि इंडो-आर्यन एन्ड लिंगुस्टिक हिस्ट्री एन्ड प्रीहिस्ट्री ऑफ नार्थ इंडिया पुस्तक उत्तर भारत में इंडो-आर्यन के उद्भव और प्रसार पर एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।200 से अधिक इंडो-आर्यन भाषाओं और बोलियों के विश्लेषण के आधार पर, यह पुस्तक साबित करती है कि उत्तर भारत में इंडो-आर्यन बोलने वालों का एक से अधिक बार प्रवास हुआ था।जिसने आधुनिक इंडो-आर्यन भाषाओं पर स्पष्ट निशान छोड़े। जब वैदिक भाषी इंडो-आर्यन उत्तरी भारत में पहुंचे, तो वहां पहले से ही अन्य इंडो-आर्यन बोली बोलने वाले मौजूद थे जो वैदिक से थोड़ी अधिक पुरातन थीं। इन कुछ अधिक पुरातन बोलियों की छाप मुख्य रूप से हिमालय और हिंदुकुश के बीच परिधीय इंडो-आर्यन भाषाओं में पाई जाती है। इसलिए उन्हें बाह्य भाषाएँ कहा जाता है, जबकि वैदिक और शास्त्रीय संस्कृत (जैसे पाली और हिंदी) के वंशजों को आंतरिक भाषाएँ कहा जाता है। बाह्य और आंतरिक भाषाएँ न केवल पुरातनता की दृष्टि से भिन्न हैं, बल्कि उनका विकास भी अलग-अलग हुआ है, विशेषकर ध्वनि विज्ञान में। यह पुस्तक प्रथम इंडो-आर्यन के आगमन से पहले उत्तर भारत में भाषाई स्थिति के प्रश्न को भी रेखांकित करती है।यह परिधीय भाषाएं हैं, हालांकि कई छोटी तिब्बती-बर्मी हिमालयी भाषाओं के साथ, जिन्होंने सबसे समृद्ध भाषाई आकड़ों को संरक्षित किया है, यह दर्शाता है कि इंडो-आर्यन के आगमन से पूर्व प्रागैतिहासिक उत्तर भारत में ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाओं का प्रभुत्व था। डॉ रस्तोगी ने कहा कि राजी समुदाय के क्षेत्र सिमटने के कारण राजी भाषा विलुप्ति के कगार पर है और जल्द ही यह मात्र घरेलू वातावरण तक ही सीमित रह जायेगी और वह भी लंबे समय तक नहीं, जब तक कि बच्चे स्कूल में हिंदी और अन्य भाषाओं से परिचित न हो जाएं। इस भाषा को लिपि देने और अनगिनत क्षेत्रीय यात्राएँ करने के बाद प्रोफेसर कविता रस्तोगी ने समुदाय के लोगों की मदद से इस लुप्तप्राय भाषा का एक शब्दकोश संकलित किया है। यह एक बहुभाषी, बहुलिपिबद्ध सचित्र शब्दकोश है, जो व्याकरण संबंधी जानकारी, व्युत्पत्ति तथा अधिकांश शब्दों के उपयोग के साथ हिंदी व अंग्रेजी अर्थ प्रदान करता है। उन्होंने आगे कहा कि राजी कविताएं पुस्तिका में दरअसल राजी समुदाय में प्रचलित कविताएं संकलित हैं। समय के साथ राजी समुदाय ने अपनी कहानियाँ, गीत और कविताएँ बिसरा दी हैं। राजी पुनरोद्धार के दौरान, डॉ. कविता रस्तोगी और उनकी टीम ने राजी समुदाय के साथ उनके बच्चों के लिए राजी में भाषाई संसाधन विकसित करने के लिए कुछ कार्यशालाएँ आयोजित कीं। पहले चरण में उन्होंने पाँच कहानियाँ बनाईं जो 2019 में प्रकाशित हुईं। कोविड के बाद, उन्होंने दुबारा शुरुआत की और कार्यशाला में भाग लेने वाले सदस्यों से कुछ कविताएँ और गीत बनवाये। लखनऊ स्थित गैर सरकारी संगठन सोसायटी फॉर एन्डेंजर्ड एंड लेसर-नोन लैंग्वेजेज ने इन कविताओं को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है। जिसे राजी समुदाय के बच्चों के मध्य वितरित करने की उनकी योजना है।उल्लेखनीय है कि क्लॉस पीटर जोलर एक प्रसिद्ध भाषाविद् और ओस्लो विश्वविद्यालय के संस्कृति अध्ययन और ओरिएंटल भाषा विभाग में दक्षिण एशियाई अध्ययन के प्रोफेसर हैं । उनकी शोध अभिरुचियों में हिंदी साहित्य और भाषाविज्ञान , पश्चिमी हिमालय ( पश्चिमी पहाड़ी ) और उत्तरी पाकिस्तान (दर्दिक) की भाषाओं समेत  उन क्षेत्रों की सांस्कृतिक परंपराएं और नृवंशविज्ञान के साथ ही रोमानी भाषाविज्ञान शामिल हैं। उन्हें सिंधु कोहिस्तानी और बंगानी के दस्तावेजीकरण और इंडो-आर्यन भाषाओं के भाषाई इतिहास पर उनके व्यापक व महत्वपूर्ण कार्य के लिए जाना जाता है। प्रोफे. डाॅ. क्लॉस पीटर जोलर इंडो-आर्यन के उपवर्गीकरण की आंतरिक-बाहरी परिकल्पना का एक विषय के रुप में समर्थन करते हैं, जिसका उन्होंने व्यापक तौर से अध्ययन किया हुआ है ।पूर्व प्रमुख और प्रोफेसर, भाषाविज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय की कविता रस्तोगी ने भारत  केसंरचनात्मक भाषाविज्ञान, सामान्य भाषाविज्ञान, विरोधाभासी भाषाविज्ञान और भाषा दस्तावेजीकरण और पुनरुद्धार के क्षेत्रों में कार्य किया है। हिंदी भाषा में भाषाविज्ञान के तकनीकी शब्दों का एक शब्दकोश के साथ ही उनकी सात पुस्तकें प्रकाशित हैं। उनके 50 से अधिक शोध पत्र प्रमुख भाषाविज्ञान के जर्नल्स में प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने सात प्रमुख शोध परियोजनाओं का सफलतापूर्वक संचालन किया है। वर्ष 2011 में उन्होंने लुप्तप्राय और कम ज्ञात भाषाओं के लिए एक गैर सरकारी संस्था की स्थापना की है जो विलुप्त भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण की दिशा में काम करती है। डाॅ.कविता रस्तोगी कई संस्थाओं में आजीवन सदस्य व सलाहकार सदस्य के रुप में नामित हैं। आज के इस महत्वपूर्ण अकादमिक विमर्श में रमाकांत बेजवाल, भारती पाण्डे,लक्ष्मी कांत जोशी, कमला पंत, डाॅ. राजेश पाल,डॉ.नंदकिशोर हटवाल, प्रहलाद सिंह रावत, रमेश सिंह चैहान,डाॅ. विजय बहुगुणा, इतिहासविद डाॅ.सुनील सक्सेना, शंकर सिंह भाटिया , चन्द्रशेखर तिवारी, सहित अनेक शिक्षाविद और भाषा प्रेमी उपस्थित थे।

Share73SendTweet46
https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/10/yuva_UK-1.mp4
Previous Post

भगवान केदारनाथ की पंचमुखी विग्रह देवडोली शीतकालीन गद्दी स्थल श्री ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ पहुंची।

Next Post

जनपद रुद्रप्रयाग में अलग अलग जगह पर दो लोगों ने लगाई नदी मे छलांग

Related Posts

उत्तराखंड

उत्तराखंड के 25 वर्षों के बाद भी भ्रष्टाचारियों और घोटालेबाजों पर नकेल

November 14, 2025
10
उत्तराखंड

डोईवाला: मेगा लकी ड्रॉ के विजेता बने कुड़कावाला के संजय वर्मा

November 14, 2025
71
उत्तराखंड

बाल दिवस : पब्लिक इंटर कॉलेज में विभिन्न क्रीड़ा प्रतियोगिताओं का आयोजन

November 14, 2025
24
उत्तराखंड

राष्ट्रीय स्तरीय सीबीआरएन प्रतियोगिता में एसडीआरएफ ने हासिल किया द्वितीय स्थान

November 14, 2025
13
उत्तराखंड

मुख्यमंत्री धामी की टनकपुर में ‘एकता पदयात्रा’, युवाओं को स्वदेशी व नशा मुक्त भारत के लिए किया प्रेरित

November 13, 2025
9
उत्तराखंड

उत्तराखंड के 25 वर्षों के बाद भी शिक्षा प्रणाली की स्थिति गंभीर

November 13, 2025
12

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    67503 shares
    Share 27001 Tweet 16876
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    45757 shares
    Share 18303 Tweet 11439
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    38034 shares
    Share 15214 Tweet 9509
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    37426 shares
    Share 14970 Tweet 9357
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    37305 shares
    Share 14922 Tweet 9326

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

मां के साथ पैतृक गांव पहुंच भावुक हुए सीएम धामी

November 14, 2025

मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने भारत-नेपाल सीमा काली-गोरी नदी के संगम पर जौलजीबी मेले का शुभारंभ किया

November 14, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.