ब्यूरो रिपोर्ट
देहरादून। 18 नवम्बर,2023 को सायं 4.00- 6:30 बजे तक दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र में ‘ए सिटी आॅफ सैडनेस‘ फिल्म का प्रर्दशन किया गया। यह फिल्म स्क्रीनिंग विश्व सिनेमा में चल रही खोजों और चर्चाओं की एक श्रृंखला का हिस्सा है।कुल मिलाकर ए सिटी ऑफ सैडनेस 1989 का ताइवानी ऐतिहासिक नाटक है, जिसका निर्देशन होउ सियाओ-ह्सियन ने किया है। यह श्वेत आतंक में उलझे एक परिवार की कहानी है, जो 1940 के दशक के अंत में मुख्य भूमि चीन से आने के बाद कुओमिन्तांग सरकार (KMT) द्वारा ताइवान के लोगों पर लगाया गया था, जिसके दौरान हजारों ताइवानी और प्रवासी मुख्य भूमि से आए थे। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, गोली मार दी गई और जेल भेज दिया गया। यह पहली फिल्म थी जिसमें 1945 में ताइवान पर कब्जा करने के बाद केएमटी के अधिनायकवादी कुकर्मों के बारे में खुलकर बात की गई थी, जिसे द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद छोड़ दिया गया था, और पहली बार यह दर्शाया गया था।ए सिटी ऑफ सैडनेस वेनिस फिल्म फेस्टिवल में गोल्डन लायन पुरस्कार जीतने वाली पहली (तीन में से) ताइवानी फिल्म थी, और इसे अक्सर होउ की उत्कृष्ट कृति माना जाता है। फिल्म को 62वें अकादमी पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए ताइवानी प्रविष्टि के रूप में चुना गया था।Hou Hsiao-Hsien का जन्म 8 अप्रैल 1947 में हुआ। यह एक सेवानिवृत्त मुख्यभूमि चीनी मूल के ताइवानी फिल्म निर्देशक, पटकथा लेखक, निर्माता और अभिनेता हैं। वह विश्व सिनेमा और ताइवान के न्यू वेव सिनेमा आंदोलन में एक अग्रणी व्यक्ति हैं। उन्होंने अपनी फिल्म ए सिटी ऑफ सैडनेस (1989) के लिए 1989 में वेनिस फिल्म फेस्टिवल में गोल्डन लायन जीता, और द असैसिन (2015) के लिए 2015 में कान्स फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार जीता। अन्य अत्यधिक सम्मानित कार्यों में द पपेटमास्टर (1993), और फ्लावर्स ऑफ शांघल (1998) शामिल हैं। एक सर्वेक्षण में 1990 के दशक के लिए होउ सियाओ-ह्सियेन को दशक का निदेशक चुना गया था।फिल्म के प्रारम्भ होने से पूर्व सुपरिचित फिल्म निर्माता शाश्वती तालुकदार ने फिल्म के कथानक पर प्रकाश डालकर इसका व्यापक परिचय दर्शकों के सम्मुख रखा। फिल्म समपन के बाद इस विषय पर चर्चा के साथ दर्शकों द्वारा सवाल-जबाब भी किये। इस अवसर पर सभागार में अरुण कुमार असफल, सुंदर एस बिष्ट, अपर्णा, छबि मिश्रा , रविन्द्र शर्मा, सुरेंद्र सजवाण,जितेंद्र नौटियाल, विनोद सकलानी, विजय भट्ट,निकोलस हाॅफलैण्ड तथा चन्द्रशेखर तिवारी सहित फिल्म प्रेमी, रंगकर्मी, लेखक, साहित्यकार, साहित्य प्रेमी, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्विजीवी, पुस्तकालय के सदस्य तथा युवा पाठक उपस्थित रहे।