रिपोर्ट: लक्ष्मण नेगी
पौड़ी गढ़वाल।
प्रणेता समळौंण आन्दोलन।
ग्राम कोठी पत्रालय पैठाणी विकासखंड थलीसैंण जनपद पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड
व्यवसाय= शिक्षा
सहायक अध्यापक राजकीय जूनियर हाई स्कूल पाटुली विकासखंड थलीसैंण जनपद पौड़ी गढ़वाल
सामाजिक कार्य=पर्यावरण संरक्षण
समळौंण आंदोलन
अपनी जन्मभूमि एवं कर्मभूमि राजकीय जूनियर स्कूल पाटुली
पर्यावरण संरक्षण का कार्य प्रारंभ की तिथि 15 जुलाई सन 2000 से। छात्रा के जन्मदिवस के उपलक्ष में समळौंण पौधारोपण कर रहा है।समळौंण अपने आप में एक पहाड़ी शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ याद से है। पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन के लिए एक पहल के रूप में कार्य कर रही है। जिसमें हमारी संस्कृति धर्म आदि अनेक रीति रिवाज एवं परंपराएं भी झलकती हैं।क्षेत्र में कैसे कार्य करने का तरीका विद्यालय में छात्र-छात्राओं के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर उन्हें पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए विद्यालय परिसर में उनके हाथों से छायादार, फलदार, शोभायमान, चौड़ी पत्ती वाले जैसे मौसमी, नारंगी, नींबू, जामुन, आडू, आंवले, काफल, अमरूद, बांज, तेजपात, सुराई, देवदार, मोरपंखी, बोतल ब्रश, सिल्वर ऑक आदि के वृक्षों का रोपण किया जाता है। जिसमें विद्यालय में नर्सरी की स्थापना कर रखी है। जिसमें छात्र छात्राओं के द्वारा पौध तैयार की जाती है। जिसे समळौंण नर्सरी के नाम से जानी जाता है। वन विभाग का भी समय-समय पर सहयोग मिलता रहता है। विद्यालय में छात्र छात्राओं के द्वारा उनके जन्म दिवस के शुभ अवसर पर आदि अनेक राष्ट्रीय त्योहारों महान विभूतियों के नाम पर रोपित समळौंण पौधों की संख्या 500 से अधिक है। उनका संरक्षण स्वयं छात्र-छात्राओं के द्वारा अपनत्वपन के कारण होता है। जिस पौधे पर उनकी भावनाएं जुड़ जाती हैं और स्वयं के प्रयासों से उन पौधों का संरक्षण करते हैं जो भविष्य में एक वृक्ष बन जाते हैं। आज विद्यालय में जन्म दिवस के अवसर पर छात्र-छात्राओं के द्वारा रोपित पौधों ने एक वन का आकार ले लिया है जिसे समळौंण वन के नाम से जाना जाता है।इसी प्रकार विद्यालयों में जाकर छात्र-छात्राओं के शैक्षिक उन्नयन हेतु उनके बीच में विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन कर, उनके अंदर पर्यावरण के प्रति अभिरुचि बढ़ाना। ताकि शिक्षकों के द्वारा विद्यालय परिसर में उनके जन्म दिवस के अवसर पर पौधारोपण किया जा सके।ग्रामीण स्तर पर ग्रामीण महिलाओं को पर्यावरण के प्रति इस तरह जागरूक करना कि जिस प्रकार देश की सेवा के लिए जल सेना, थल सेना और वायुसेनाऐं कार्य करती हैं। ठीक उसी प्रकार गांव के पर्यावरण को बचाने के लिए महिलाओं की सेना बनाना, जिसे समळौंण सेना के नाम से जाना जाता है उसका नेतृत्व सेनानायक करती है उनमें से एक महिला को कोषाध्यक्ष की भी जिम्मेदारी दी जाती हैं बाकी सारी गांव की महिलाएं उस सेना की सदस्य होती हैं। जब कभी भी किसी भी परिवार में कोई भी संस्कार रूपी कार्यक्रम नामकरण, जन्म दिवस, अन्प्रास,कर्णभेद, चूड़ाकर्म, शादी एवं वार्षिक पिंडदान आदि अवसरों पर समळौंण पौधारोपण का कार्य किया जाता है, जो कि सेना के द्वारा स्वयं के संसाधनों के द्वारा किया जाता है, ऐसा पुण्य कार्य करने पर वे परिवार सेना के प्रोत्साहन के लिए उन्हें स्वेच्छा से कुछ धन राशि पुरस्कार स्वरूप भेंट करते हैं, जब गांव में पौधारोपण होते रहते हैं तो परिवार के सभी सदस्यों की भावनाएं उस पौधे के संरक्षण और संवर्धन के लिए भावनाएं जुड़ती हैं जिससे वह इसका संरक्षण भावनात्मक रूप से करते हैं और गांव का पर्यावरण मजबूत होता है पेड़ काटने से बचते हैं, वहीं दूसरी तरफ पुरस्कार राशि से 1 दिन गांव के पास एक बड़ी पूंजी बन जाती है जिसे समळौंण पूंजी के नाम से भी जाना जाता है जो गांव की आर्थिक दशा में मजबूत करता है। उक्त राशि से सर्वप्रथम पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, पंचायती सामान, कम प्याज के रूप में ऋण भी लिया जाता है।वृक्षों के प्रति और अधिक जागरूक करने के लिए जिस तरह से हम अपने और अपने बच्चों का जन्म दिवस मनाते हैं ठीक उसी तरह से वृक्ष का भी जन्म दिवस मनाया जाता है और 30 जुलाई को प्रतिवर्ष वृक्ष संरक्षण दिवस के रूप में मनाने की एक संकल्पना है। अभी तक कुल रोपित पौधों की संख्या 8,000 से अधिक हो गई है ।समळौंण आंदोलन आज संपूर्ण राज्य में एक जन आंदोलन बन चुका है।