जोशीमठ/लक्ष्मण सिंह नेगी।
चमोली। उत्तराखंड में एतिहासिक पौराणिक सांस्कृतिक धरोहर आज भी विद्यमान है राज्य गठन के बाद लोगों को उम्मीद जगी थी कि इन ऐतिहासिक धरोहर का संरक्षण होगा और नई खोज की जाएगी यह कार्य नहीं हो पाया आज भी सैकड़ों जगहो पर हजारों साल पुरानी विरासत बिखरी पड़ी है इसी में एक पल्ला गढ़ की कहानी है जो जोशीमठ ब्लॉक के जनपद चमोली के क्षेत्र के अंतर्गत तल्ला पैन खंडा क्षेत्र ऐतिहासिक गांव के पल्ला जखोला में है।जहां आजादी की युद्ध में 2 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का गांव भी रहा है उसी गांव के शीर्ष पर यह गढ़ स्थित है जहां आज भी राजभवन राजा का सभा कक्ष रसोई स्नानागार पानी के लिए टैंक बने हुए हैं पत्थरों को काटकर एक ऊंचे टीले पर पल्ला गढ़ स्थित है एक जमाने में गढ़वाल की राजवंशजो का राज भवन हुआ करता था किंतु सभ्यता के विकास के साथ यह गढ़ अपेक्षित होता गया और संरक्षण के अभाव में दम तोड़ता गया आज भी इतिहास की कई अनसुलजी कहानियां इस गढ़ में बिखरी पड़ी हैं इतिहासकारों के लिए यह शोध का विषय है की इन विषयों पर गहनता से शोध कर इतिहास को लोगों के सामने लाया जा सकता है चांदपुर गढ़ की भांति यहां भी बनावट एक जैसी है जिसे राजा कत्यूरीयो के समय का किला माना जाता है इसे पुरातत्व विभाग ने संरक्षित कर रखा है इसी तरह से पल्ला गढ़ मैं भी पुरातत्व अवशेष विद्यमान है और यहां की भी खुदाई की जानी चाहिए।पल्ला गांव के रघुवीर सिंह झिकंवाण कहते हैं कि हमारे वंशज राजवंश के देवी के पुजारी हुआ करते थे आज भी पल्ला गढ़ की कुलदेवी राजेश्वरी की पूजा पल्ला गांव में होती है और उसे हम लोग करते हैं धीरे-धीरे राजा का गढ़ किसी युद्ध के बाद राजा विहीन होने लगा उसके बाद वहां के लोगों ने देवी को अपने गांव में ले आए और यही पूजा करने लगे। पूर्व प्रधान मनवर सिंह रावत कहते हैं कि सरकार चाहे तो इस इस पुरातत्व महत्व के गढ़ को संरक्षित रखने के लिए प्रयास कर सकती है।