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जल के बिना जीवन की कल्पना भी मुश्किल है: डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

14/06/24
in उत्तराखंड
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ब्यूरो रिपोर्ट/देहरादून। दुनिया में पेयजल की समस्या दिनों दिन गहराती चली जा रही है। इसके बावजूद हम पेयजल को बचाने और जल संचय के प्रति अपेक्षा अनुरूप गंभीर नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि 2025 में दुनिया की चौदह फीसदी आबादी के लिए जल संकट बहुत बड़ी समस्या बन जायेगा। इंटरनेशनल ग्राउंड वॉटर रिसोर्स असेसमेंट सेंटर के अनुसार पूरी दुनिया में आज 270 करोड़ लोग ऐसे हैं जो एक वर्ष में तकरीबन तीस दिन तक पानी के संकट का सामना करते हैं। संयुक्त राष्ट्र की मानें तो अगले तीन दशक में पानी का उपभोग यदि एक फीसदी की दर से भी बढ़ेगा, तो दुनिया को बड़े जल संकट से जूझना पड़ेगा। जगजाहिर है कि जल का हमारे जीवन पर प्रत्यक्ष तथा परोक्ष प्रभाव पड़ता है। यह भी कि जल संकट से एक ओर कृषि उत्पादकता प्रभावित हो रही है, दूसरी ओर जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य पर भी खतरा बढ़ता जा रहा है।विश्व बैंक का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते पैदा हो रहे जल संकट से 2050 तक वैश्विक जीडीपी को छह फीसद का नुकसान उठाना पड़ेगा। दुनिया में दो अरब लोगों को यानी 26 फीसदी आबादी को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है। पूरी दुनिया में 43.6 करोड़ और भारत में 13.38 करोड़ बच्चों के पास हर दिन की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है। यूनीसेफ की रिपोर्ट कहती है कि 2050 तक भारत में मौजूद जल का 40 फीसदी हिस्सा खत्म हो चुका होगा।एशिया की 80फीसदी आबादी खासकर पूर्वोत्तर चीन, पाकिस्तान और भारत इस संकट का भीषण सामना कर रहे हैं। आशंका है कि भारत इसमें सर्वाधिक प्रभावित देश होगा। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार शुद्ध पेयजल से जूझने वाली वैश्विक शहरी आबादी 2016 के 93.3 करोड़ से बढ़कर 2050 में 1.7 से 2.4 अरब होने की आशंका है। ग्लोबल कमीशन ऑन इकोनॉमिक्स ऑफ वॉटर की रिपोर्ट कहती है कि साल 2070 तक 70 करोड़ लोग जल आपदाओं के कारण विस्थापित होने को विवश होंगे। गौरतलब है दुनिया में दो अरब लोग दूषित पानी का सेवन करने को विवश हैं और हर साल जलजनित बीमारियों से लगभग 14 लाख लोग बेमौत मर जाते हैं। दुनिया में बहुतेरे विकसित देशों में लोग नल से सीधे ही साफ पानी पीने में सक्षम हैं। लेकिन हमारे देश में आजादी के 77 साल बाद भी ऐसा मुमकिन नहीं। केन्द्र और राज्य सरकारें घरों में नल के माध्यम से पीने योग्य पानी की आपूर्ति का दावा करती हैं। हकीकत यह है कि आज भी 5 फीसदी लोग बोतलबंद पानी खरीद रहे हैं। जबकि जल जीवन मिशन ने 2024 तक हर घर में नल से जल पहुंचाने का लक्ष्य रखा था। यह मिशन और स्थानीय निकाय के जलदाय विभाग की नाकामी है जिसके चलते हर महानगर, शहर -कस्बे में छोटे-छोटे सैकड़ों वाटर बॉटलिंग प्लांट चल रहे हैं जो घर-घर 20-20 रुपये में पानी की बोतल पहुंचा कर लोगों की प्यास बुझा रहे हैं। यदि सभी को शुद्ध पेयजल मुहैया कराना सरकार की मंशा है तो उसे प्राकृतिक जल स्रोतों पर ध्यान देना होगा। इस तथ्य को सरकार भी नजरअंदाज नहीं कर सकती कि देश के सभी जलस्रोत संकट में हैं। तालाब, पोखर, जलाशय बेरुखी के चलते बर्बादी के कगार पर हैं। देशभर में करीब कुल 24,24,540 जल‌ स्रोत हैं। जिनमें से 97 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों में व केवल 2.9 फीसदी शहरी क्षेत्र में हैं। 45.2 फीसदी जल स्रोतों की कभी मरम्मत भी नहीं हुई। इनमें 16.3 फीसदी जल स्रोत इस्तेमाल में ही नहीं हैं। देश में हजारों जल स्रोतों पर कब्जा है। 55.2 फीसदी जलस्रोत निजी संपत्ति है और 44.5 फीसदी जलस्रोत सरकार के आधिपत्य में हैं। देश में जलस्रोतों की हालत बहुत ही दयनीय है। कहीं वह सूखे हैं, कहीं निर्माण कार्य होने से इस्तेमाल में नहीं हैं, कहीं मलबे से भरे हैं। इनकी बदहाली में सबसे बड़ा कारण उनका सूखना, सिल्ट जमा होना, मरम्मत के अभाव में टूटते चला जाना है। प्राकृतिक जल स्रोतों तथा नदी, तालाब, झील,पोखर, कुओं के प्रति सरकारी और सामाजिक उदासीनता एवं भूजल जैसे प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन ने स्वच्छ जल का गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। यदि सबको पीने का शुद्ध जल  शुद्ध जल मुहैया कराना है तो प्राकृतिक जलस्रोतों पर ध्यान देना होगा।वर्ल्ड वॉटर रिसोर्स इंस्टिट्यूट की मानें तो देश को हर साल‌ करीब तीन हजार बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की ज़रूरत होती है। जबकि बारिश से भारत को अकेले 4000 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी मिलता है। भारत सिर्फ आठ फीसदी बारिश के जल का ही संचयन कर पाता है। यदि बारिश के पानी का पूर्णतया संचयन कर दिया जाये तो काफी हद तक जल संकट का समाधान हो सकता है। जल शक्ति अभियान के अनुसार देश में बीते 75 सालों में पानी की उपलब्धता में तेजी से कभी आई है। वर्ष 1947 में हमारे यहां प्रति व्यक्ति सालाना पानी की उपलब्धता 6042 क्यूबिक मीटर थी जो 2021 में 1486 क्यूबिक मीटर रह गयी। इसके अलावा विश्व बैंक के अनुसार देश में हर व्यक्ति को रोजाना औसत 150 लीटर पानी की ज़रूरत होती है लेकिन वह अपनी गलतियों के चलते 45 लीटर रोजाना बर्बाद कर देता है। ऐसी में वर्षा जल संचयन-संरक्षण, प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण, उनका समुचित उपयोग और जल की बर्बादी पर अंकुश ही वह रास्ता है जो इस संकट से छुटकारा दिला सकता है। शुद्ध पेयजल की अनुपलब्धता और संबंधित ढेरों समस्याओं को जानने के बावजूद देश की बड़ी आबादी जल संरक्षण के प्रति सचेत नहीं है। जहां लोगों को मुश्किल से पानी मिलता है, वहां लोग जल की महत्ता को समझ रहे हैं, लेकिन जिसे बिना किसी परेशानी के जल मिल रहा है, वे ही बेपरवाह नजर आ रहे हैं। आज भी शहरों में फर्श चमकाने, गाड़ी धोने और गैर-जरुरी कार्यों में पानी को निर्ममतापूर्वक बहाया जाता है।प्रदूषित जल में आर्सेनिक, लौहांस आदि की मात्रा अधिक होती है, जिसे पीने से तमाम तरह की स्वास्थ्य संबंधी व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में 86 फीसदी से अधिक बीमारियों का कारण असुरक्षित व दूषित पेयजल है। वर्तमान में करीब 1600 जलीय प्रजातियां जल प्रदूषण के कारण लुप्त होने के कगार पर हैं, जबकि विश्व में करीब 1.10 अरब लोग दूषित पेयजल पीने को मजबूर हैं और साफ पानी के बगैर अपना गुजारा कर रहे हैं।ऐसी स्थिति सरकार और आम जनता दोनों के लिए चिंता का विषय है। इस दिशा में अगर त्वरित कदम उठाते हुए सार्थक पहल की जाए तो स्थिति बहुत हद तक नियंत्रण में रखी जा सकती है, अन्यथा अगले कुछ वर्ष हम सबके लिए चुनौतिपूर्ण साबित होंगे। हालांकि इन इलाकों में शुरुआती दौर में बढ़े तापमान और ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार के कम होने की क्षतिपूर्ति भविष्य में अच्छी बरसात से हो सकती है, लेकिन तापमान में वृद्धि बरसात के स्वरूप पर असर डाल सकती है। ऐसी स्थिति में बरसात के समय और भंडारण दोनों पर इसका बुरा असर पड़ सकता हैं।”लेखकके व्यक्तिगत विचार हैं दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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