रिपोर्ट:प्रकाश कपरुवाण
जोशीमठ/चमोली। भू धसाव आपदा के कारण सीमांत धार्मिक एवं पर्यटन नगरी जोशीमठ अब “ज्योतिर्मठ”पर संकट के बादल मंडरा रहे है, लेकिन चुनावी समर मे ताल ठोक रहे दलों को शायद यह त्रासदी कोई मुद्दा ही नहीं रह गया है। हालांकि विपक्ष की ओर से कभी कभार जोशीमठ आपदा का जिक्र अवश्य कर लिया जाता है। वर्ष 2023 मे देश दुनिया के सामने भीषण आपदा के रूप मे प्रकट हुई इस त्रासदी पर जहाँ एक वर्ष बाद 2024 मे हुए लोकसभा चुनाव की आचार सहिंता प्रभावी रही और अब विधानसभा उप चुनाव की आचार सहिंता प्रभावी है, जब जोशीमठ आपदा के बाद इस ऐतिहासिक नगर को बचाने के लिए लोकसभा चुनाव से पूर्व न केवल घोषणाऐं की जा चुकी है बल्कि केन्द्र सरकार द्वारा धनराशि भी स्वीकृत की जा चुकी हो उसके बावजूद आचार सहिंता क्यों हावी है? यह किसी के गले नहीं उतर रहा। भू धसाव प्रभावित यह नहीं समझ पा रहे हैं कि लोकसभा के बाद विधानसभा उप चुनाव और इसके बाद निकाय और फिर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की आचार सहिंता लगती रहेगी तो क्या जोशीमठ को यों ही आचार सहिंता के बहाने अपने हाल पर छोड़ा जा सकता है? जोशीमठ को बचाने के लिए ट्रीटमेंट सहित अन्य कार्य करने के लिए आचार सहिंता ही प्रमुख कारण है तो क्या देश की आठ वैज्ञानिक संस्थानों की रिपोर्ट के कोई मायने नहीं है? यदि जोशीमठ आचार सहिंता के कारण सुरक्षित रह सकता है तो क्यों नहीं लोगों को निर्माण कार्य करने की स्वीकृति दी जा रही है। केन्द्र सरकार की संस्थाएं तो जोशीमठ नगर क्षेत्र के अंतर्गत ही भार बढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं और धड़ल्ले से भारी भरकम निर्माण कर रहे हैं लेकिन जोशीमठ नगर पालिका या अन्य नगरवासी एक ईंट भी रखेंगे तो भार बढ़ जाएगा यह कैसा दोहरा चरित्र है? लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मूल /पुस्तेनी निवासियों के संगठन पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री से भेंट कर चिन्हित डेंजर जोन से बाहर सुरक्षित भूमि पर हल्के निर्माण की अनुमति चाहने सहित कई समस्याओं पर विस्तृत चर्चा की थी
तब मुख्यमंत्री श्री धामी ने आश्वास्त किया था कि लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद एक कमेटी का गठन किया जायेगा जिसमे संगठन के पदाधिकारियों को भी शामिल किया जाएगा और उनके सुझावों को प्राथमिकता देते हुए कार्य शुरू किए जाएंगे, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद कमेटी तो नहीं बनी विधानसभा उप चुनाव की आचार सहिंता जरूर प्रभावी हो गई। जोशीमठ भू धसाव प्रभावित जिन्हें डेंजर जोन से हटाया गया है वे किस तरह इधर उधर रहकर खाना बदोस जीवन यापन कर रहे हैं और अपनी जन्मभूमि के शहर मे शरणरार्थी की तरह गुजर बसर कर रहे हैं यह उनसे बेहतर कौन समझ सकता है? लेकिन सरकारें क्यों नहीं समझ पा रही है। देखना होगा कि अब उप चुनाव के बाद ही सही क्या निकाय चुनाव की आचार सहिंता से पूर्व जोशीमठ के भविष्य को लेकर कोई ठोस निर्णय होगा? इस पर 17महीनों से भू धसाव त्रासदी का दंश झेल रहे प्रभावितों की नजरें रहेंगी।