ब्यूरो रिपोर्ट। देश दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. इसी ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ही दुनिया भर में क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन देखा जा रहा है. यही नहीं, भूस्खलन को बढ़ावा देने में जलवायु परिवर्तन की भी एक अहम भूमिका है.पर्यावरण क्षरण से भी भूस्खलन को काफी बल मिला है. क्योंकि पर्यावरण की उपयोगिता घटती जा रही है. इसके साथ ही लंबे समय से हिमालयी क्षेत्रों में तापमान में बदलाव देखा जा रहा है. जिसके तहत गर्मियों के सीजन में बहुत ज्यादा गर्मी और ठंडियों के मौसम में बहुत ज्यादा ठंड पड़ रही है. इसी कारण पहाड़ी के अंदर फैक्टर डेवलप हो जाते हैं और समय के साथ यह बढ़ता रहता है, जिसके चलते यह भूस्खलन का स्वरूप ले लेता है. मानवजनित गतिविधियों को ही एंथ्रोपोजेनिक एक्टिविटी कहा जाता है. दरअसल, पर्वतीय क्षेत्रों में इंसानों द्वारा किए जा रहे अनियंत्रित विकास को भी एक बड़ी वजह माना जा रहा है. इसके तहत संवेदनशील क्षेत्रों में मकान बनाना, किसी पर्वतीय क्षेत्र की भूमि की क्षमता से अधिक दबाव, सड़क/पुल/टनल बनाने के लिए पहाड़ों का कटान समेत अन्य विकास के कार्यों के चलते भी भूस्खलन की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. लेकिन अगर साइंटिफिक वे में प्रकृति के साथ विकास किया जाता है, तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. दुनिया भर में लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम चक्र में भी बड़ा बदलाव आया है. इसके कारण अत्यधिक भारी बारिश देखने को मिल रही है. हालांकि, अत्यधिक भारी बारिश के चलते भी भूस्खलन की आशंकाएं और अधिक बढ़ जाती हैं. हालांकि, अकेले अत्यधिक बारिश की वजह से भूस्खलन की संभावनाएं नहीं बढ़ती हैं, बल्कि एनवायरमेंटल डिग्रेडेशन, एंथ्रोपोजेनिक एक्टिविटी या फिर नेचुरल एक्टिविटी के सक्रिय होने से भूस्खलन की घटनाएं होने लगती हैं. उत्तराखंड आपदा नियंत्रण सचिव का कहना है कि उत्तराखंड में जो लैंडस्लाइड हुए हैं, उसकी स्टडी की जा रही है. ताकि, असली कारणों को जाना जा सके. साथ ही देखा जा रहा है कि जहां लैंडस्लाइड हो रहा है, उसके पास क्या कोई नदी थी या फिर रोड कटिंग के कारण भूस्खलन हुआ है, या फिर कोई हैवी कंस्ट्रक्शन हुआ, जो कि भूस्खलन कारण बना है. उन्होंने बताया कि किसी भी सड़क के निर्माण के डीपीआर में ही भूस्खलन के ट्रीटमेंट की व्यवस्था हो, इसकी रिकमेंडेशन की जाएगी. उत्तराखंड में इस साल भी मॉनसून पहले जैसे ही जख्म दे रहा है. भारी बारिश के कारण प्रदेश को अभी तक करीब 1 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है, सड़कें और पुल टूटने से अभीतक 506 करोड़ रुपए की संपत्ति पानी में बह गई है. इसके अलावा कई मार्ग पिछले एक हफ्ते से बंद पड़े हुए हैं, जिन्हें खोलने में संबंधित विभाग के पसीने छूट रहे हैं. भारी बारिश का असर पर्यटन व्यवसाय पर भी पड़ा है. सड़कें बंद होने की वजह से पर्यटक पहाड़ों का रुख नहीं कर रहे हैं. बरसात के साथ ही पूरे भारत की पोल खुलने लग जाती है. दावे बड़े-बड़े किए जाते हैं. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही सामने आती है. उत्तराखंड में लगातार हो रही भारी बारिश के कारण सभी नदियों का जलस्तर लगातार बढ़ता जा रहा है. पहाड़ से लेकर मैदान तक सिर्फ पानी ही पानी नजर आ रहा है. देर शाम लगातार हुई बारिश से सोनप्रयाग से गौरीकुंड तक कई जगह रास्ता टूटा गया है और सड़क के कई हिस्से पानी मे बह गए हैं. यहां तक कि मौसम विभाग के अलर्ट को देखते हुए आज चारधाम यात्रा का रजिस्ट्रेशन नहीं किया जा रहा है. दरअसल बुधवार सुबह से हो रही भारी बारिश के कारण केदारनाथ पैदल मार्ग में भीम बली के गदेरे में बादल फटने की घटना हुई है. रास्ते में भारी मलबा और बोल्डर गिरे हैं. पैदल मार्ग का करीब 30 मीटर हिस्सा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है. करीब 150-200 यात्री वहां फंसे बताये जा रहे हैं. हादसे के बाद पैदल मार्ग पर आवाजाही बंद कर दी गई है. तीर्थ यात्रियों को निकालने का काम तेजी से किया जा रहा है. वहीं लगातार हो रही बारिश से केदारनाथ धाम में मंदाकिनी नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है. भीम बली में बादल फटने के बाद मौके पर रेस्क्यू टीमें तैनात हैं. वहीं, सेक्टर गौरीकुंड द्वारा सूचना प्राप्त मिली है कि नदी का जलस्तर बढ़ने के कारण गौरी माई मंदिर खाली करवा दिया गया है. सभी को सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया है। साथ ही नदी का जल स्तर बढ़ने के कारण पार्किंग खाली करा दी गई है. इस बीच उत्तराखंड के मुख्यमंत्री जनपद रुद्रप्रयाग में अतिवृष्टि से हुए आपदा प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण दौरान उनके द्वारा बचाव व राहत कार्यों की स्थिति की समीक्षा की जाएगी. निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार मुख्यमंत्री. इसके बाद उनके द्वारा बीती रात्रि को अतिवृष्टि से हुए आपदा प्रभावित क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया गआ. आंगणन तैयार करने और बाढ़ सुरक्षा से बचाव के लिए अधिकारियों को निर्देश दिए। पहाड़ दिखने में जितने खूबसूरत होते हैं, यहां का जीवन उतना ही कठिन है (इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।)लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)।