ब्यूरो रिपोर्ट। 30 अगस्त को उत्तराखंड राज्य आंदोलन के जननायक और द्वाराहाट क्षेत्र के विकास पुरुष श्री विपिन त्रिपाठी जी की पुण्यतिथि है. उत्तराखण्ड की आजादी और वहां की जनता के मौलिक अधिकारों के लिए जीवन पर्यंत संघर्ष करने
वाले जननायकों में कुछ ही ऐसे नेता हैं जिन्हें देवभूमि उत्तराखण्ड का गौरव माना जा सकता है, उनमें द्वाराहाट क्षेत्र
के संघर्षशील नेता, जुझारू पत्रकार, ‘द्रोणांचल प्रहरी’ के संपादक, कर्मठ समाज सेवी, क्षेत्र के विधायक और उक्रांद के
अध्यक्ष रहे स्व. विपिन त्रिपाठी जी का नाम सबसे ऊपर आता है.उत्तराखंड आंदोलन समेत समाज के विभिन्न क्षेत्रों में
जन आंदोलनों के पुरोधा और संघर्ष के प्रतीक श्री विपिन त्रिपाठी जी उत्तराखंड के उन संघर्षशील गिने चुने नेताओं में
सम्मिलित हैं, जिन्होंने समाज की बेहतरी के लिए संघर्ष का झंडा बुलंद किया. उन्होंने आपातकाल में जेल की सलाखों
के पीछे रहकर भी अपने संघर्ष को जारी रखा.उत्तराखंड आंदोलन में उनके संघर्ष को कौन भुला सकता है. क्षेत्रीय दल
उत्तराखंड क्रांति दल के लिए वह एक मार्गदर्शक व्यक्तित्व थे.अपनी स्वच्छ, ईमानदार और सिद्धान्तवादी राजनीति के
लिए जो आदर और सम्मान जयप्रकाश नारायण जी को पूरे भारत में प्राप्त है वैसा ही सम्मान उत्तराखंड की राजनीति
में अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट क्षेत्र के पूर्व विधायक श्री विपिन त्रिपाठी जी को भी दिया जाता है.उत्तराखण्ड के इस
संघर्षशील जन नायक श्री विपिन त्रिपाठी जी का जन्म 23 फरवरी,1945 को अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट विकास खण्ड
में ‘दैरी’ गांव में हुआ. ये आम जनता में ‘विपिन दा’ के नाम से लोकप्रिय रहे थे. स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त करने बाद
से ही त्रिपाठी जी का पूरा जीवन लगातार जन आन्दोलनों एवं उत्तराखण्ड की जनता के जनसंघर्षो में ही व्यतीत
हुआ.1969 में डा. राममनोहर लोहिया, आचार्य नरेन्द्र देव, जय प्रकाश नारायण के विचारों से प्रेरणा लेकर त्रिपाठी
जी ने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की.1968 में हल्द्वानी की सड़कों पर आम बेचकर ‘युवजन मशाल’ नामक
पाक्षिक पत्रिका का प्रकाशन किया. 1971 से 1975 के अपातकाल तक द्वाराहाट से ‘द्रोणाचल प्रहरी’ समाचार पत्र का
प्रकाशन कर जनता के शोषण और उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष की मुहिम जारी रखी.1970 में तत्कालीन मुख्यमंत्री
चन्द्रभानु गुप्त का घेराव करने के आरोप में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पहली बार उन्हें गिरफ्तार किया गया.
आपातकाल में 24 जुलाई, 1974 को प्रेस एक्ट की विभिन्न धाराओं में इनकी प्रेस व अखबार ‘द्रोणांचल प्रहरी’ को
सील कर दिया गया और शासन ने इन्हें गिरफ्तार कर अल्मोड़ा जेल भेज दिया. अल्मोड़ा, बरेली, आगरा और लखनऊ
जेल में दो वर्ष सजा काटने के बाद 22 अप्रेल, 1976 को वे रिहा हुए.विपिन त्रिपाठी पृथक राज्य आन्दोलन के अकेले
ऐसे जुझारू आन्दोलनकर्ता थे, जिनके द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार को उत्तराखण्ड विरोधी नीतियों के खिलाफ दिये गये
त्याग पत्र को सरकार द्वारा स्वीकार करना पड़ा था. 22 वर्ष की युवावस्था से ही विभिन्न आन्दोलनों के पुरोधा व
संघर्षशील त्रिपाठी का जीवन दर्शन लम्बे राजनैतिक संघर्ष की एक खुली किताब रही है.विपिन त्रिपाठी पृथक राज्य
आन्दोलन के अकेले ऐसे जुझारू आन्दोलनकर्ता थे, जिनके द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार को उत्तराखण्ड विरोधी नीतियों के
खिलाफ दिये गये त्याग पत्र को सरकार द्वारा स्वीकार करना पड़ा था. 22 वर्ष की युवावस्था से ही विभिन्न आन्दोलनों
के पुरोधा व संघर्षशील त्रिपाठी का जीवन दर्शन लम्बे राजनैतिक संघर्ष की एक खुली किताब रही है.उत्तराखंड के
पृथक राज्य आन्दोलन की बात हो या फिर क्षेत्र वासियों के मौलिक अधिकारों के लिए संघर्ष की दास्ताँ,भूमि-हीनों को
जमीन दिलाने की लड़ाई से लेकर पहाड़ को नशे की बुरी लत से व जंगलों को वन माफियाओं से बचाने के लिये विपिन
त्रिपाठी सदा संघर्ष करते रहे. उक्रांद के अध्यक्ष और थिंक टेंक माने जाने वाले विपिन त्रिपाठी जी उत्तराखण्ड के उन
गिने-चुने नेताओं में रहे हैं, जिन्होने 35 वर्ष के अपने दीर्घकालीन राजनीतिक जीवन में सदा शोषितों, पीड़ितों व
उपेक्षित जनता के लिए निरंतर संघर्ष किया.कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने राजनीतिक सिद्धांतों,
नैतिक व चारित्रिक मूल्यों के साथ कभी भी समझौता नहीं किया.अपनी आन्दोलनकारी पृष्ठभूमि के तहत ‘विपिन दा’
चाहते तो केंद्रीय राजनीति में एक बड़े कद के राष्ट्रीय नेता या कैबिनेट मंत्री भी बन सकते थे किन्तु उन्होंने इन सभी
व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को त्याग कर उत्तराखण्ड की जनता के कल्याण के लिए दिन-रात एक कर उत्तराखण्ड राज्य
के सपने को साकार करने में ही अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया.विपिन त्रिपाठी जी 1975 में इमरजेंसी के समय सबसे
अधिक समय तक (लगभग 22 महीने) जेल में रहने वाले व्यक्ति हैं. जेल से निकलने के बाद लगभग सभी नेता जनता
पार्टी की सरकार बनने पर पद व कुर्सियां पाने की होड़ में जुट गए. लेकिन त्रिपाठी जी ने पद की चाह न रखते हुए
अपने द्वाराहाट इलाके में मूलभूत सुविधाएं जुटाने हेतु सरकार पर दवाब बनाने के लिये संघर्ष का रास्ता चुना. उनके
प्रयासों से ही द्वाराहाट में स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पालीटेक्निक व कुमाऊं इन्जिनीयरिंग कालेज की स्थापना हुई.
द्वाराहाट में डिग्री कालेज, पालीटेक्निक कालेज और इंजीनियरिंग कालेज खुलवाने के लिये उन्होंने कई वर्षों तक
अनवरत संघर्ष किया और यह दिखला दिया कि जनता के सरोंकारों को लेकर सच्ची लगन और ईमानदारी से भी
जनता की सेवा की जा सकती है उसके लिए किसी पद या मंत्री होना आवश्यक नहीं होता है.‘विपिन दा’ ने जल,जंगल
और जमीन से जुड़ी अनेक लड़ाइयां सरकार से लड़ीं और ज्यादातर में वे सफल रहे.1983-84 में इन्होंने शराब विरोधी
आन्दोलन का नेतृत्व किया और पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. मार्च 1989 में वन अधिनियम का विरोध
करते हुए विकास कार्य में बाधक पेड़ काटने के आरोप में भी इन्हें 40 दिन की जेल काटनी पड़ी.उत्तराखण्ड विधान
सभा में स्व० त्रिपाठी जी के भाषण बहुत ओजस्वी होते थे, उनके भाषणों में उत्तराखण्ड का दर्द झलकता था.
विधानसभा में उत्तराखण्ड की पीड़ा को वे हमेशा उठाया करते थे.कई बार मुद्दों को उठाने के लिये नियमों की
तकनीकी परेशानी होने पर वे कहते थे कि इन नियमों को बदल दिया जाय. सभी सरकारी नीतियों को उत्तराखण्ड के
परिप्रेक्ष्य में बनाने की वे हमेशा वकालत करते थे. सरकारी मशीनरी में व्याप्त भष्ट्राचार से वह बहुत दुःखी रहते थे. वे
कहा करते थे कि हर योजना में कमीशन लिया जाता है, कम से कम विधायक निधि से होने वाले कामों में तो कमीशन
न लिया जाय.उन्हें वहां से ट्रेन पकड़नी थी और ट्रेन लेट थी, इसी स्टेशन पर कुली और रेलवे के कुछ कर्मचारी अपनी
मांगों को लेकर आन्दोलन कर रहे थे. तो त्रिपाठी जी ने अपना परिचय देते हुये उनकी समस्याओं को सुना और उनकी
मांगों को जायज बताकर उन्हें समर्थन दिया तथा वहां पर उन्हें सम्बोधित भी किया, शायद वे पहले ऎसे उत्तराखण्डी
नेता होंगे,जिनकी जिन्दाबाद के नारे पूना में भी लगे.त्रिपाठी जी मजदूरों के हितों के प्रति अति संवेदनशील नेता के
रूप में भी अपनी एक खास पहचान बनाए हुए नेता थे. उत्तरखण्ड विधान सभा में वे लोक लेखा समिति के सदस्य थे
और समिति के अध्ययन भ्रमण पर वे एक बार पूना गये थे.उन्हें वहां से ट्रेन पकड़नी थी और ट्रेन लेट थी, इसी स्टेशन
पर कुली और रेलवे के कुछ कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर आन्दोलन कर रहे थे. तो त्रिपाठी जी ने अपना परिचय देते
हुये उनकी समस्याओं को सुना और उनकी मांगों को जायज बताकर उन्हें समर्थन दिया तथा वहां पर उन्हें सम्बोधित
भी किया, शायद वे पहले ऎसे उत्तराखण्डी नेता होंगे,जिनकी जिन्दाबाद के नारे पूना में भी लगे. ईमानदार और
स्वच्छ छवि के नेता एवं कुशल वक्ता के रूप में एक अलग ही पहचान रखने वाले विपिन त्रिपाठी 20 साल तक उक्रांद
के शीर्ष पदों पर विराजमान रहे. सन् 2002 में वे पार्टी के अध्यक्ष बने और उसी वर्ष उत्तरांचल की पहली विधानसभा
के लिए द्वारहाट चौखुटिया विधानसभा सीट से वह विधायक निर्वाचित हुए.30 अगस्त, 2004 को इस जन नायक की
संघर्षपूर्ण जीवन यात्रा का महा प्रयाण हुआ. विपिन त्रिपाठी जी के जीवन पर वरिष्ठ पत्रकार श्री चारु तिवारी जी ने
“विपिन त्रिपाठी और उनका समय” नाम से एक पुस्तक लिखी है.विपिन त्रिपाठी द्वाराहाट जालली चौखुटिया क्षेत्र के
विकास पुरुष ही नहीं बल्कि इस समूचे पाली पछाऊं क्षेत्र के सांस्कृतिक धरोहरों और उनके संरक्षण के प्रति भी अत्यंत
गम्भीर सोच वाले जन प्रतिनिधि रहे थे. सन् 2003 में उन्होंने विधायक के रूप में इस अति पिछड़े पाली पछाऊं क्षेत्र के
गौरव को बढ़ाने वाले दो महत्त्वपूर्ण कार्य किए उनमें से एक कार्य था पिछले 15-20 वर्षों से लुप्त होती द्वाराहाट की
स्याल्दे बिखोति की परम्परा को पुनर्जीवित करना और दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य था द्वाराहाट की सांस्कृतिक नगरी से
पक्के मोटर मार्ग द्वारा जालली घाटी के सांस्कृतिक मंदिरों को लिंक मोटर मार्ग द्वारा जोड़ना,ताकि द्वाराहाट क्षेत्र के
साथ साथ समूचे पाली पछाऊं क्षेत्र की सांस्कृतिक अस्मिता की भी रक्षा हो सके.बातचीत के दौरान विपिन दा ने मुझे
बताया कि स्याल्दे बिखोति मेला और बागेश्वर का उत्तरायणी मेला कुमाऊं प्रदेश की ही नहीं बल्कि समूचे उत्तराखंड
की आन, बान और शान हैं. इसलिए विधायक बनने के बाद उनके द्वारा लुप्तप्रायः स्याल्दे बिखोति मेले की परंपरागत
लोक संस्कृति को प्रोत्साहित और पुनर्जीवित करना एक महनीय कार्य था.विपिन दा के साथ हुई मेरी अनेक मुलाकातों
के दुर्लभ क्षण मेरी स्मृति में आज भी ताजा हैं. विपिन दा के साथ मेरी एक यादगार मुलाकात द्वाराहाट के स्याल्दे
बिखोति मेले के दौरान हुई थी और इस अवसर पर आयोजित समारोह में मैंने अपनी ‘दुनागिरि माहात्म्य’ पुस्तक भी
उन्हें भेंट की थी .विपिन दा ने इस मेले को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष मेहनत की थी. बातचीत के दौरान उन्होंने
मुझे बताया कि स्याल्दे बिखोति मेला और बागेश्वर का उत्तरायणी मेला कुमाऊं प्रदेश की ही नहीं बल्कि समूचे
उत्तराखंड की आन, बान और शान हैं. इसलिए विधायक बनने के बाद उनके द्वारा लुप्तप्रायः स्याल्दे बिखोति मेले की
परंपरागत लोक संस्कृति को प्रोत्साहित और पुनर्जीवित करना एक महनीय कार्य था.सन् 2003 में 12 अप्रैल से16
अप्रैल तक आयोजित इस मेले को पहली बार कुमाऊनी संस्कृति के लोकोत्सव का भव्य रूप दिया गया था.उस साल
विभांडेश्वर में आयोजित बिखोति के रात्रि मेले में लगभग दो दशकों के बाद विभिन्न ग्रामसभाओं के आठ जोड़े नगाड़े-
निशाणों ने पहली बार भागीदारी की थी जबकि इससे पहले एक या दो जोड़ी के नगाड़े निशाण ही आते थे.इस
समारोह को पंच दिवसीय वसन्तोत्सव के रूप में मनाया गया जिसमें काव्य गोष्ठियों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की
विशेष धूम रही थी.मैं जब भी अपनी पुस्तक ‘द्रोणगिरि इतिहास और संस्कृति’ की शोध योजना के तहत दिल्ली से
द्वाराहाट के विभिन्न पौराणिक मंदिरों और ऐतिहासिक स्थलों का सर्वेक्षण करने के लिए जाता था,विपिन दा का
सहयोग, प्रोत्साहन और मार्गदर्शन मुझे सदा मिलता रहा. द्वाराहाट के सर्वाधिक प्राचीन इतिहासकार रामदत्त त्रिपाठी
द्वारा लिखी पुस्तक के बारे में जानकारी मुझे सबसे पहली विपिन दा से ही मिली थी. हालांकि वह पुस्तक अत्यंत दुर्लभ
हो चुकी थी और मुझे आज तक नहीं मिल पाई. मेरे विशेष अनुरोध पर विपिन दा ने द्वाराहाट जालली मोटर मार्ग के
लिए जो कठोर प्रयास किया,वह जालली को द्वाराहाट से जोड़ने वाला एक अति महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक निर्णय था.
परन्तु प्रशासन के द्वारा लगाई गई अनेक रुकावटों के बावजूद भी विपिन दा इस मार्ग के निर्माण के लिए पुरजोर संघर्ष
करते रहे और आखिर में पीडब्ल्यूडी को यह मोटरमार्ग बनाने के लिए बाध्य होना ही पड़ा. राज्य प्रशासन इस मार्ग को
रोड़वेज की बसों के लिए सुरक्षित नहीं मानता था, इसलिए जालली- द्वाराहाट वाया विमाण्डेश्वर जालली के मोटर
मार्ग का यह कार्य कई वर्षों तक अधर में ही लटका रहा.किन्तु विपिन दा की प्रशासन से लगातार यह मांग रही थी कि
बेशक यहां रोडवेज न भी चलाई जाए किन्तु छोटी गाड़ियां और केएमओ के बसों की सुविधाएं तो नागरिकों को
मिलनी ही चाहिए. अंत में विपिन दा की मांग के आगे राज्य प्रशासन को झुकना ही पड़ा और उनके विधायक रहते
द्वाराहाट जालली मोटर मार्ग को पक्की मोटर रोड़ के रूप में मंजूरी मिल पाई.दरअसल, विपिन त्रिपाठी द्वाराहाट
चौखुटिया क्षेत्र के एक विकास पुरुष ही नहीं बल्कि इस समूचे पाली पछाऊं क्षेत्र के सांस्कृतिक धरोहरों और उनके
संरक्षण के प्रति भी अत्यंत जागरूक जन प्रतिनिधि रहे थे. उनकी सोच थी कि इस द्वाराहाट जालली मोटर मार्ग के
बनने से मां दुनागिरि मन्दिर से लेकर द्वाराहाट, विभांडेश्वर, के साथ रानीखेत मासी मोटर मार्ग में स्थित सिलोर
महादेव,बिल्वेश्वर महादेव, इटलेश्वर महादेव और सुरेग्वेल के ऐतिहासिक मंदिरों को एक लिंक रोड़ से जोड़ा जा
सकता है. ताकि द्वाराहाट क्षेत्र के पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों के लिए भी एक ही दिन में इन सभी ऐतिहासिक मंदिरों
का भ्रमण और दर्शन सुगम हो सके और जालली क्षेत्र के लोगों को भी द्वाराहाट में आवागमन की सुविधा मिल सके.
वरना तो द्वाराहाट से सुरेग्वेल आने के लिए वाया चौखुटिया या वाया रानीखेत होकर आने से 70 -80 कि.मी.की दूरी
तय करनी पड़ती थी जो काफी कठिन और श्रमसाध्य भी थी. उन दिनों मैं जब भी दिल्ली से अपने शोधकार्य हेतु
द्वाराहाट आता तो विपिन दा से इस द्वाराहाट मोटर मार्ग के निर्माण की बात जरूर करता,क्योंकि मुझे सुरेग्वेल स्थित
अपने गांव जोयूं आने के लिए वाया रानीखेत आना पड़ता था जिसमें पूरा दिन लग जाया करता था . मां दुनागिरि की
कृपा से विपिन दा बहुत संघर्ष के बाद इस रोड को पक्की रोड़ बनाने में सफल हुए, उसके लिए जालली और सूरेग्वेल
क्षेत्र की जनता विपिन दा की सदा आभारी ही रहेगी. आज हमारे बीच त्रिपाठी जी जैसे प्रबुद्ध, संघर्षशील, ईमानदार
और स्वच्छ छवि के जुझारू नेता होते तो उत्तराखंड राज्य के अधूरे सपने अवश्य पूरे हो गए होते. साथ ही पलायन की
जो मार आज इस क्षेत्र के लोगों को झेलनी पड़ रही है,उस अभिशाप से भी मुक्त हो गए होते. उत्तराखंड हमेशा उनके
संघर्ष को याद रखेगा. उत्तराखंड के इस महान् जननायक और विकास पुरुष विपिन त्रिपाठी जी को उनकी पुण्यतिथि
के अवसर पर कोटि कोटि नमन!
दरअसल, विपिन दा’ जैसे संघर्षशील नेता को समय से पहले खोकर उत्तराखंड को बहुत बड़ी क्षति उठानी पड़ी है.
अपने जीवन काल में उत्तराखण्ड की जनता के कल्याण के लिए दिन-रात एक कर उन्होंने उत्तराखण्ड राज्य के सपने
को साकार करने में अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया.वे द्वाराहाट क्षेत्र को एक स्वास्थ्य और शिक्षा से सम्पन्न एक
विकसित नगरी ही नहीं बनाना चाहते थे बल्कि इसे समूचे पाली पछाऊं के सांस्कृतिक क्षेत्र के रूप में भी विकसित
करना चाहते थे. वे अपने विधायकी के अधिकारों का इस्तेमाल अपने वोटबैंक के लिए नहीं बल्कि क्षेत्रीय समस्याओं
का समाधान गुणवत्ता के धरातल पर निर्धारित करते थे.आज हमारे बीच त्रिपाठी जी जैसे प्रबुद्ध, संघर्षशील,
ईमानदार और स्वच्छ छवि के जुझारू नेता होते तो उत्तराखंड राज्य के अधूरे सपने अवश्य पूरे हो गए होते. साथ ही
पलायन की जो मार आज इस क्षेत्र के लोगों को झेलनी पड़ रही है,उस अभिशाप से भी मुक्त हो गए होते. उत्तराखंड
हमेशा उनके संघर्ष को याद रखेगा. उत्तराखंड के इस महान् जननायक और विकास पुरुष श्री विपिन त्रिपाठी जी को
उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर कोटि कोटि नमन!।(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।)लेखक
दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)।