• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar

अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस पर्वतीय क्षेत्रों की जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका: डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

12/12/24
in उत्तराखंड
Reading Time: 1min read
0
SHARES
40
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

 ब्यूरो रिपोर्ट। पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लगभग 900-950 मिलियन लोगों के बराबर है। दुनियां में समुद्रतल से पर्वतीय क्षेत्रों को समुद्र तल से 2,000 फीट यानि 610 मीटर से अधिक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों को पहाड़ी क्षेत्र माना गया है।पर्वतीय क्षेत्रों में आबादी बहुत कम होती है क्योंकि पहाड़ों में तीव्र ढलान है और उपजाऊ मिट्टी की बहुत कमी है। यहां की परिस्थितियां कृषि के लिए ज्यादा अनुकूल नहीं होती हैं। दूसरी ओर यहां का वातावरण खड़ी ढलानें, परिवहन यातायात और भौतिक संचार को कठिन बना देती हैं। पृथ्वी के लगभग 27 प्रतिशत हिस्से पर पहाड़ विराजमान हैं और ये भी ध्यान देने की बात है कि ये पहाड़ एक टिकाऊ आर्थिक विकास की तरफ़ दुनिया की बढ़त में बहुत अहम भूमिका निभाते हैंइसी भारी जनसंख्या को देखते हुए पहाड़ों के लिए अलग से नीति बनाने, पहाड़ों के पर्यावरण को बचाए रखने के लिए, यहां के पारस्थितिकी तंत्र को बचाए रखने के उद्देश्य को मध्यनजर रखते हुए। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सतत पर्वतीय विकास के महत्त्व को उजागर करने के लिए दुनियाभर के लोगों को भी प्रोत्साहित किया जाये। पहली बार पहाड़ों के संरक्षण को लेकर दुनिया का ध्यान 1992 में गया, जब पर्यावरण और विकास पर यूएन सम्मेलन में एजेंडा 21 के अध्याय 13 के तहत “नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र का प्रबंधनः सतत पर्वतीय विकास“ पर जोर दिया गया। इस तरह से व्यापक समर्थन के साथ संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2002 को अंतर्राष्ट्रीय पर्वत वर्ष घोषित किया।इस घोषणा के बाद दुनियाभर में पहली बार 11 दिसंबर 2003 को पहला अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस मनाया गया था। इसके बाद से इस खास दिवस को मनाने की परंपरा चली आ रही है।अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस ने पहाड़ों की पारिस्थितिकी के मुद्दे को गंभीरता से लेने के लिए अहम भूमिका निभाई। इसका असर पर्वतीय पर्यटन पर भी पड़ता है। उसी का नतीजा है कि पिछले कुछ सालों में पर्वतीय पर्यटन की लोकप्रियता में इजाफा देखा गया है। पर्यटन पहाड़ों में रहने वाले लोगों के लिए आर्थिक महत्व रखता है क्योंकि इससे इन लोगों के साथ सतह पहाड़ी राज्यों की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में भी मदद मिलती है। हालांकि वर्तमान में ये महसूस किया जा रहा है की पहाड़ों में पर्यटकों की घोर लापरवाही और जहां तहां कूड़ा कचरा फैलाने से पर्यावरण को नुकसान के साथ पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्र के कमजोर पड़ने का भी खतरा बढ़ा है। ऐसे में हर नागरिक का कर्तव्य है कि वो अपने पर्यावरण की रक्षा कर जैव विविधता को बनाए रखने में योगदान दे।जीवन के लिए पहाड़ों के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करने, पहाड़ के विकास में अवसरों और बाधाओं को उजागर करने और गठबंधन बनाने के लिए हर साल 11 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय पर्वतीय दिवस मनाया जाता है जो दुनिया भर में पहाड़ के लोगों के व्यवहार के साथ साथ पहाड़ों में प्रतिवर्ष आने वाले करोड़ों पर्यटकों और तीर्थयात्रियों और घुम्मक्कड़ियों के व्यवहार में बदलाव लाने से पहाड़ के पर्यावरण में सकारात्मक बदलाव आएगा।इसी के चलते संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2002 को संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय पर्वत वर्ष घोषित किया और 11 दिसंबर 2003 से अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस के रूप में नामित किया। संयुक्त राष्ट्र का खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) पर्वतीय मुद्दों के बारे में अधिक जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए इस दिवस को वार्षिक उत्सव का समन्वय करता है। जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल के अनुसार 84 प्रतिशत स्थानीय पर्वतीय प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं। संयुक्त राष्ट्र दशक 2021-30 प्रकृति की गिरावट रोकना और वापस लाना दस साल की कोशिश है। जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर धरती, पर्वत और हवा पर पड़ा है। धरती तेजी से गर्म हो रही है। मौसम असंतुलित हो गया है। प्राकृतिक आपदाएं ज्यादा देखी जाने लगी हैं। पर्वतों का दोहन इतना अधिक किया गया कि दूसरी तमाम तरह की प्राकृतिक दुर्घटनाएं और समस्याएं आए दिन होने लगी हैं। पर्वतों के दोहन को बचाने और पर्वतों के महत्त्व को समझाने के मकसद से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2002 को ‘अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस’ मनाने की घोषणा की। हर साल 11 दिसम्बर को अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस मनाए जाने का मकसद पर्वतों का संरक्षण, सुरक्षा और उनके दोहन को रोकना है।जाहिर है पर्वत और इंसान का रिश्ता बहुत पुराना है। उतना पुराना जितना मानव सभ्यता। धरती का 27 प्रतिशत हिस्सा पहाड़ों से ढका हुआ है। दुनिया के पंद्रह प्रतिशत आबादी का घर पहाड़ हैं, और दुनिया के लगभग आधे जैव विविधता वाले हॉटस्पाट की मेजबानी भी पहाड़ करते हैं। दुनिया की आधी आबादी के रोजमर्रा की जिंदगी बसर के लिए पानी उपलब्ध कराने का कार्य पहाड़ करते हैं। कृषि, बागवानी, पेय जल, स्वच्छ ऊर्जा और दवाओं की आपूर्ति पहाड़ों के जरिए होती है। दुनिया के अस्सी प्रतिशत भोजन की आपूर्ति करने वाली बीस पौधों की प्रजातियों में से छह की उत्पत्ति और विविधता पहाड़ों से जुड़ी है।आलू, जौ, मक्का, टमाटर, ज्वार, सेब जैसे उपयोगी आहारों की उत्पत्ति पहाड़ हैं। हजारों नदियों के स्रेत पहाड़ हैं। भारत में नदियों को ही पूजा नहीं जाता, बल्कि अनेक पहाड़ों की पूजा भी की जाती है। तमाम चमत्कारिक घटनाएं पहाड़ों से जुड़ी हैं। तमाम तरह की सामाजिक, धार्मिंक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत पहाड़ों से जुड़ी हैं। इसलिए पहाड़ों का संरक्षण हमारा कर्त्तव्य है। सृष्टि-उत्पत्ति के साथ सागर और पहाड़, दोनों मानवता के विकास के आधार रहे हैं, लेकिन जैसे-जैसे नई सभ्यता और संस्कृति के साथ विज्ञान का विकास होता गया वैसे-वैसे पहाड़ और सागर, दोनों प्रदूषित किए जाने लगे। आज हालत यह हो गई है कि पहाड़ और सागर, दोनों का वैभव खत्म होता जा रहा है। जैसे-जैसे वैश्विक जलवायु गर्म होती जा रही है, पर्वतीय ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इससे जैव विविधता पर ही असर नहीं पड़ रहा, बल्कि ताजे पानी की उपलब्धता और औषधियां भी लुप्त हो रही हैं। पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र बढ़ते प्रदूषण की वजह से खतरे में है यानी दुनिया भर में पर्वतों को संरक्षण देने की जरूरत है। पर्वत हमारे लिए कितने उपयोगी हैं, इसे वह समुदाय सबसे ज्यादा जानता है जिसकी रोजमर्रा की जिंदगी की हर कवायद पर्वतों से जुड़ी है। यूं तो पहाड़ों के संरक्षण को लेकर विश्व का ध्यान 1992 में गया जब पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र संघ सम्मेलन में एजेंडा 21 के अध्याय 13 ‘नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र का प्रबंधन सतत पर्वतीय विकास’ पर जोर दिया गया। अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस मनाने से पिछले दस सालों में पर्वतीय पर्यटन तेजी से बढ़ा है लेकिन इसका नुकसान भी देखा गया  है। पर्यटकों की लापरवाही से पर्यावरण का नुकसान हुआ और पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र के कमजोर पड़ने का खतरा बढ़ा है।पहाड़ी इलाकों के निवासियों को रोजगार जंगल और पहाड़ से मिलता है। खासकर महिलाओं के लिए पहाड़ किसी खेती से कम नहीं हैं। युवाओं के लिए पर्वतीय जैव विविधता का संबंध आज अधिक विसनीय है क्योंकि कलाकृतियों के संरक्षण, मूर्तिकला और बेहतर स्वास्थ्य पहाड़ों के स्वच्छ पर्यावरण से ताल्लुक रखता है। आजीविका और प्राकृतिक आहार पहाड़ों से जितना अच्छा मिलता है, उतना शायद और कहीं से नहीं मिलता। ईधन, औषधियों और लता वाली तरकारियां पहाड़ के दरे में उगती हैं।तमाम जीव-जंतुओं के आवास स्थल पहाड़ हैं। पहाड़ों के दोहन या क्षरण का मतलब जीव-जंतुओं, बहुमूल्य वनस्पतियों, औषधियों और खनिज-रत्नों से महरूम होना है। हिमाचल प्रदेश में 11-12 जिलों में कुदरत  के कहर से पहाड़ का पोर-पोर धंस रहा है।असम, झारखंड, उत्तराखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी पहाड़ों के साथ खूब अनर्थ हुआ है। इसे रोकने के लिए राज्य सरकार, केंद्र  सरकार, पर्यावरण संरक्षक और जनता को माफिया के खिलाफ आगे आना होगा। धरती पर रहने वाले हर इंसान का पहाड़ों से रिश्ता रहा है। पर्वत बचेंगे तभी मानव सभ्यता,  संस्कृति और सेहत, तीनों का बचाव होगा। अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस की स्थापना का निर्णय 2002 में अंतर्राष्ट्रीय पर्वत वर्ष से पहले लिया गया था। इस पहल का उद्देश्य जलवायु जैसे मुद्दों सहित पर्वतीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के महत्व और उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाना था। पर्वतीय क्षेत्रों में परिवर्तन वनों की कटाई और गरीबी। सतत पर्वतीय विकास अंतर्राष्ट्रीय पर्वतीय दिवस का ध्यान सतत पर्वतीय विकास को बढ़ावा देने पर है। पर्वत जैव विविधता जल संरक्षण और लाखों लोगों की आजीविका के स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण हैं। यह दिन पर्वतीय समुदायों और पारिस्थितिकी प्रणालियों के सामने आने वाली अनूठी चुनौतियों को उजागर करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है। थीम.आधारित समारोह प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय पर्वतीय दिवस एक विशिष्ट थीम के साथ मनाया जाता है जो पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित वर्तमान मुद्दों और चुनौतियों को दर्शाता है। ये विषय अक्सर सतत पर्वतीय विकास के पर्यावरणीय सामाजिक और आर्थिक पहलुओं को संबोधित करते हैं। गतिविधियां और कार्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय पर्वतीय दिवस पर विश्व स्तर पर सेमिनार कार्यशाला सम्मेलन और शैक्षिक कार्यक्रम सहित विभिन्न गतिविधियों और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन पहलों का उद्देश्य जागरूकता बढ़ाने ज्ञान साझा करना और पहाड़ों को प्रभावित करने वाले मुद्दों के समाधान के लिए सामूहिक प्रयासों को प्रोत्साहित करना है। अंतर्राष्ट्रीय पर्वतीय दिवस मनाए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय आवश्यक संसाधनों और सेवाओं को प्रदान करने में पहाड़ों के महत्व के साथ.साथ भविष्य की पीढ़ियों के लिए इन मूल्यवान पारिस्थितिक तंत्रों को संरक्षित करने के लिए जिम्मेदार और टिकाऊ प्रथाओं की आवश्यकता को स्वीकार करता है। भारतीय हिमालय क्षेत्र वैश्विक औसत से अधिक तापमान वृद्धि दर का अनुभव कर रहा है, जिससे ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। सामाजिक उद्यम ग्रो-ट्रीज डॉट कॉम के सह-संस्थापक और पर्यावरण चैंपियन प्रदीप शाह कहते हैं, "यह सीधे तौर पर वन क्षेत्र के महत्वपूर्ण नुकसान से जुड़ा है, भारत के हिमालयी राज्यों में 1,072 वर्ग किलोमीटर वन का नुकसान हुआ है।" क्षेत्र में वनीकरण प्रयासों के महत्व को ध्यान में रखते हुए, श्री शाह कहते हैं कि ग्रो-ट्रीज डॉट कॉम ने पहले ही 'ट्रीज+ फॉर द हिमालयाज प्रोजेक्ट' शुरू कर दिया है, जिसे नैनीताल के 17 गांवों और उत्तराखंड के अल्मोड़ा के छह गांवों में लागू किया जा रहा है। इस पहल के तहत आंवला, बांज, बकियन, भटूला, भीमल, मजुना, ग्लौकस ओक, जामुन, हिमालयन शहतूत और इंडियन हॉर्स चेस्टनट सहित चार लाख पेड़ लगाए जाएंगे। हिमालयी क्षेत्र पर केंद्रित ऐसी परियोजनाएं कार्बन को अलग करने और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र की लचीलापन बढ़ाने में मदद कर सकती हैं। वन क्षेत्र का विस्तार जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के प्रति क्षेत्र की भेद्यता को कम करने में भी मदद करता है। श्री शाह कहते हैं, "पेड़ लगाने की प्रक्रिया के हर चरण में स्थानीय समुदायों को सक्रिय रूप से शामिल करके, हम भविष्य की पीढ़ियों के लिए पर्वत श्रृंखलाओं की सुरक्षा भी सुनिश्चित कर सकते हैं।" स्थानीय समुदायों पर परियोजना के परिवर्तनकारी प्रभाव के बारे में, नथुवाखान गांव के रेंज अधिकारी प्रमोद कुमार कहते हैं कि इस पहल ने न केवल परिदृश्य को सुंदर बनाया है, बल्कि कई ग्रामीणों को रोजगार के अवसर भी प्रदान किए हैं। अधिकारी कहते हैं, "पौधे लगाने से वन क्षेत्र को फिर से भरने में मदद मिली है, जिससे क्षेत्र की जैव विविधता में सुधार हुआ है। हमें अपने समुदाय पर सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए इस तरह की और पहल की आवश्यकता है।" बरेथ गांव के 52 वर्षीय निवासी भीम सिंह का मानना है कि हिमालय के लिए पेड़+ परियोजना से उनके समुदाय को बहुत लाभ हुआ है। भीम सिंह कहते हैं, "इसने आय का एक स्रोत प्रदान किया है और हमारे क्षेत्र में वन क्षेत्र को बढ़ाने के साथ-साथ हमारी आजीविका का समर्थन करने में मदद की है, जो पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है। हमें खुशी है कि हम इस तरह की वृक्षारोपण गतिविधियों के माध्यम से प्रकृति में योगदान करने में सक्षम थे।" अब विश्व की सबसे नई पर्वतश्रृंखला हिमालय, जो भारतवर्ष का मुकुट है उसकी प्राकृतिक संरचना को ध्वस्त किया जा रहा है। जिस प्रकार भारत सरकार ने जल संरक्षण के लिए जल शक्ति मंत्रालय बनाया है उसी तरह पर्वत शक्ति विभाग जबतक नहीं बनेगा तबतक न तो पहाड़ों की रक्षा हो सकेगी और ना ही इनका संवर्द्धन हो सकेगा, इसलिए जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की गंभीर होती समस्या के निदान हेतु पर्वतशक्ति मंत्रालय का गठन ही एकमात्र विकल्प है। लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।

ShareSendTweet
Previous Post

डोईवाला : कूड़ा बिनने वालो ने रैकी कर फैक्ट्री में की थी चोरी

Next Post

19 दिसंबर से चलेगा सुशासन सप्ताह-प्रशासन गांव की ओर अभियान

Related Posts

उत्तराखंड

एनटीपीसी तपोवन विष्णुगाड हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट में परियोजना के कार्यकारी निदेशक सेवानिवृत्त

July 1, 2025
3
उत्तराखंड

जनगीतों के संकलन ‘मिल के चलो’का हुआ लोकार्पण

July 1, 2025
6
उत्तराखंड

पर्यावरण मित्रों की समस्याओं का समाधान करें

July 1, 2025
4
उत्तराखंड

मुख्यमंत्री ने कैंपा निधि के अंतर्गत संचालित योजनाओं की प्रगति की विस्तृत समीक्षा की

July 1, 2025
4
उत्तराखंड

त्रिस्तरीय पंचायत सामान्य निर्वाचन-2025 के मद्देनज़र पंचायत क्षेत्रों में आदर्श आचार संहिता हुई लागू

July 1, 2025
8
उत्तराखंड

श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल की मेडिकल टीम ने आश्रम के बच्चों का जांचा स्वास्थ्य

July 1, 2025
5

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    0 shares
    Share 0 Tweet 0

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

एनटीपीसी तपोवन विष्णुगाड हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट में परियोजना के कार्यकारी निदेशक सेवानिवृत्त

July 1, 2025

जनगीतों के संकलन ‘मिल के चलो’का हुआ लोकार्पण

July 1, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.