कमल बिष्ट/उत्तराखंड समाचार।
कोटद्वार। भक्ति केवल शब्दों, आयोजनों तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह एक गहरे आत्मिक संबंध का मार्ग है, जिसमें मन, हृदय और आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है। यह एक ऐसी साधना है, जो व्यक्ति को आत्मिक शांति, प्रेम और सद्भाव की ओर प्रेरित करती है। भक्ति का वास्तविक अर्थ तब समझ में आता है जब व्यक्ति अपनी आत्मा को परमात्मा के साथ जोड़ने का प्रयास करता है, न कि केवल सांसारिक माया से। देहरादून से पधारे वीरेंद्र सिंह रावत ने सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के पावन संदेश को देते हुए यह विचार प्रस्तुत किए। उनका कहना था कि भक्ति केवल बोलने, सुनने और कहने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक जीवन शैली है, जिसमें हर कार्य परमात्मा के प्रति प्रेम और समर्पण से भरा होता है। सच्ची भक्ति का अनुभव तब होता है जब व्यक्ति अपने हृदय को निर्मल करता है और उसे परमात्मा के प्रेम से भरता है। यही भक्ति का मार्ग है, जो केवल गुरु की कृपा से संभव होता है।उन्होंने आगे कहा कि सच्ची भक्ति का अर्थ है सांसारिक झगड़ों और अहंकार से मुक्त होना। जब भक्त अपने हृदय को गुरु की कृपा से निर्मल करता है, तब उसे भक्ति का वास्तविक अनुभव होता है। सच्ची भक्ति का मार्ग त्याग और गुरु के आदेशों के पालन में है, न कि केवल बाहरी दिखावे में। भक्ति का वास्तविक रूप तब प्रकट होता है जब हम केवल परमसत्ता को जानने, मानने और अपनाने का प्रयास करते हैं। ईश्वर निराकार और निर्गुण हैं, और उनकी भक्ति का मार्ग केवल सतगुरु की कृपा से ही संभव है।
मिशन के सिद्धांतों के अनुसार, भक्ति का असली मार्ग ज्ञान, समर्पण और परमात्मा को जानने से प्राप्त होता है। यह मार्ग भक्तों को आत्मिक शांति और संतोष की ओर प्रेरित करता है। संत ने सभी से आह्वान किया कि वे भक्ति को बाहरी आडंबर से मुक्त होकर, उसके असली रूप को समझें तथा जीवन में उसका पालन करें, ताकि वे परमात्मा से जुड़ सकें और सच्ची भक्ति का अनुभव कर सकें। यह संदेश उपस्थित सभी भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना, जो जीवन में आत्मिक विकास और भक्ति के सही मार्ग को अपनाने की ओर अग्रसर हो रहे हैं।