देहरादून। दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से आज पूर्वाह्न 11ः30 बजे ‘द रजा फाउंडेशन’ के सहयोग से नमित अरोड़ा द्वारा प्रस्तुत की गई तीन लघु वेब श्रंखलाओं का निशुल्क प्रदर्शन पुस्तकालय में अध्ययन करने वाले युवा पाठकों के लिए किया गया। यह तीन वेब श्रंखलाएं थीं ‘द हडप्पन्स’ (24 मिनट),’द आर्यन्य एण्ड वैदिक ऐज’ (27 मिनट) तथा ‘द मौर्यन्स एण्ड मेगस्थनीज’ (28 मिनट)। यह तीनों वेब श्रंखलाएं ‘द इंडियंस ए ब्रीफ हिस्ट्री आॅफ ए सिविलाइजेशन’ पुस्तक पर आधारित हैं, और भारत के ऐतिहासिक स्थलों की सभ्यता के साथ ही भारत में प्राचीन और मध्यकालीन विदेशी यात्रियों द्वारा की गई यात्राओं की शानदार कहानी बतलाती हैं।
पहली वेब श्रंखला में हड़प्पावासियों ने भारतीय उपमहाद्वीप में पहले शहरों और एक भौतिक संस्कृति का निर्माण किया जिसमें उन्नत शहरी डिजाइन, शहर-व्यापी स्वच्छता और दुनिया में पहला इनडोर शौचालय शामिल थे। इस एपिसोड में नमित अरोड़ा शानदार तरीके से पश्चिमी भारत और पाकिस्तान के स्थलों पर, 2600-1900 ईसा पूर्व, इसकी परिपक्व अवधि की खोज करते हैं। वे हड़प्पा की जीवनशैली और कलाकृतियों, मिट्टी के बर्तनों, मुहरों, मूर्तियों, खिलौनों, आभूषणों, परिधान फैशन, सामाजिक संगठन, आहार मानदंडों से उभरने वाली कहानियों को अपनी ऐतिहासिक नजरों से देखते हैं और उनके धातु विज्ञान, उपकरण, वस्त्र, जहाज, व्यापार और दफन रीति-रिवाजों पर भी गहन तरीके से चर्चा करते हैं।
दूसरी वेब श्रंखला में हमें जानकारी मिलती है कि आर्य और वैदिक युग हड़प्पा सभ्यता के पतन के बाद, 2000-1500 ईसा पूर्व के बीच मध्य एशिया से आर्य प्रवासी आये। ये लोग हल्की त्वचा वाले खानाबदोश-पशुपालक लोग, आर्य उपमहाद्वीप के बसे हुए किसानों और गहरे रंग की वन जनजातियों से सांस्कृतिक रूप से भिन्न थे। अपने साथ आर्य लोग प्रारंभिक संस्कृत, प्रोटो-वेद, वैदिक देवताओं, अग्नि अनुष्ठानों और मौखिक मंत्रों के शौकीन पुजारी वर्ग, नए सामाजिक और लैंगिक पदानुक्रम, घोड़े और रथ को लाए। भरत और पुरु जैसी आर्यकृत जनजातियों के बीच युद्ध आम तौर पर हो गए थे। इसी सामाजिक संघर्षों से महाभारत जैसी शुरुआती कहानियां सामने आईं।
तीसरी वेब श्रंखला में अमित अरोड़ा मौर्य और मेगस्थनीज के युग का वर्णन करते हैं। उनके अनुसार मौर्य दरबार में यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने भारत के बारे में एक आकर्षक विवरण दिया था। मेगस्थनीज ने पाटलिपुत्र के विशाल शहर, उसके लकड़ी के घरों, दीवारों और वॉच टावरों का वर्णन किया है। बाद में अशोक आये जिन्होंने एक विस्तारित कृषि राज्य की बागडोर संभाली । अहिंसा के प्रति उनका सार्वजनिक आलिंगन दुनिया के सम्राटों के बीच महत्वपूर्ण और अद्वितीय था। उन्होंने बौद्ध धर्म को अपना लिया और इसे दूर-दूर तक फैलाया। मौर्य काल में हमें अनेक प्रस्तर कला और आश्चर्यजनक मूर्तिकलाएं मिलती है। इनमें सांची और भरहुत स्तूप जैसे कुछ महत्वपूर्ण धरोहर शामिल हैं।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के प्रोग्राम एसोसिएट चनद्रशेखर तिवारी ने इस बेब श्रंखला पर संक्षिप्त जानकारी दी और कहा कि संस्थान की ओर से पुस्तकालय में विविध प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवा पाठकों के लिए समय-समय पर इस तरह के कार्यक्रम करने के प्रयास किये जाते रहेगें।इतिहासकार डॉ. योगेश धस्माना ने भारत के प्राचीन ऐतिहासिक स्थलों व सभ्यता पर संक्षिप्त जानकारी भी दी।इस अवसर पर ब्रिगेडियर भारत भूषण,कर्नल अरुण ममगाईं, शैलेन्द्र नौटियाल, पूर्व निदेशक राज्य अभिलेखागार, डॉ.लालता प्रसाद, जगदीश बाबला,पर्यावरण मित्र चनन्दन नेगी, दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के सुन्दर सिंह बिष्ट, जगदीश सिंह महर, सुमन भारद्वाज, मधन सिंह,विजय बहादुर सहित पुस्तकालय में अध्ययनरत बड़ी संख्या में युवा पाठक अपस्थित रहे।