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नहीं रहे उच्च संस्कारों से परिपूर्ण लेखक, गृहस्थ संत, समाज सेवी शिवराज सिंह रावत निःसंग

03/06/21
in उत्तराखंड, चमोली, पौड़ी गढ़वाल
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फोटो .वरिष्ठ साहित्यकार संदीप रावत के साथ में प्रसिद्ध लेखक शिवराज सिंह रावत ।

कमल बिष्ट।
श्रीनगर गढ़वाल। नहीं रहे उच्च संस्कारों से परिपूर्ण प्रसिद्ध विद्वान लेखक, एक गृहस्थ संत, समाज सेवी एवं अनुकरणीय श्रद्धेय शिवराज सिंह रावत निःसंग, उन्हें अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।

उत्तराखंड गढ़वाल व कुमांऊ क्षेत्र ने देश को कई यशस्वी सैनिक, साहित्यकार, विद्वान, इतिहासकार, भाषा वैज्ञानिक और चिंतक दिए हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत व प्रतिभा से ख्याति अर्जित कर उत्तराखण्ड का नाम रोशन किया है। उनमें एक प्रमुख नाम श्रद्धेय शिवराज सिंह रावत निःसंग का है। जो 02 जून सन् 2021 को सुबह साहित्य सृजन करते हुए 94 वर्ष में अनंत यात्रा पर चले गए। उनका जन्म 15 फरवरी 1928 को गाँव देवर खडोरा गोपेश्वर जिला. चमोली में हुआ था। श्रद्धेय शिवराज सिंह रावत निःसंग अभी देवर खड़ोरा गोपेश्वर में ही रहते थे।

उत्तराखंड की यह दिवंगत महान विभूति हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, गढ़वाली भाषा पर मजबूत एवं समान अधिकार रखती थीं। वे उच्च कोटि के लेखक एवं चिंतक ही नहीं बल्कि एक तरह से हिमालय की उच्च कोटि के साधक भी थे। वे एक गृहस्थ संत थे तो साथ ही एक पत्रकार भी थे। वे एक तरह से ऋषि परम्परा एवं सहज.सरल, सौम्य व्यक्ति थे। उनके दिवंगत होने से साहित्य की ऋषि परम्परा क्षेत्र में जो स्थान रिक्त हुआ है, अब उसकी पूर्ति करना असंभव है। उनके लेखन के प्रमुख विषय आध्यात्म, दर्शन, इतिहास संस्कृति, भाषा आदि थे। विपरीत परिस्थियों में एवं जीवन के अंतिम क्षणों तक भी वे साहित्य सृजन करते रहे। श्रद्धेय शिवराज सिंह रावत निःसंग जी पहले भारतीय सेना में सेवारत रहे तथा देश की सेवा की। सैन्य सेवा से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात वे उत्तर प्रदेश, स्थानीय निकाय प्रशासनिक सेवा में भी रहे। वे ऐसे विरले एवं मूर्धन्य साहित्यकार थे, जिन्होंने सैन्य सेवा के पश्चात् साहित्य सृजन किया। सामाजिक सरोकारों से भी उनका गहरा जुड़ाव था।

यह एक अद्भुत बात है कि जिस उम्र में व्यक्ति शिथिल हो जाता है, आराम करना चाहता है उस उम्र के पड़ाव में उन्होंने लेखन शुरू किया और समाज को उच्च कोटि का साहित्य दिया। वरिष्ठ साहित्यकार संदीप रावत न्यू डांग श्रीनगर गढ़वाल ने बताया कि
यह मेरा सौभाग्य है कि ऐसे मनीषी का आशीर्वाद मुझे प्राप्त हुआ। उत्तराखंड के विद्वान वरिष्ठ साहित्यकार, भाषाविद श्रद्धेय श्री निःसंग के साथ मेरी कई यादें जुड़ीं हैं। मैंने उन्हें प्रथम बार जून, वर्ष .2010 में पौड़ी में साहित्य अकादमी, दिल्ली द्वारा गढ़वाली भाषा पर आयोजित कार्यक्रम में देखा था। परन्तु उनसे आमने .सामने प्रथम बातचीत 14 सितंबर 2011 को हुई। उत्तराखण्ड खबरसार एवं रंत रैबार के गढ़वाली आलेखों के माध्यम से उनसे पहले ही साहित्यिक परिचय हो चुका था। उनके द्वारा मुझे प्रेषित सुन्दर हस्त लिखित पत्र अब मेरे जीवन की अमूल्य धरोहर हैं। चिठ्ठीयों के माध्यम से भी उन्होंने मेरा सदैव उत्साहवर्धन एवं मार्ग दर्शन किया।

जब मानव अधिकार के मूल तत्व पुस्तक का लोकार्पण 12 दिसंबर, वर्ष 2012 को गढ़वाल मंडल विकास निगम, श्रीनगर गढ़वाल में प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी प्रो. डी.आर. पुरोहित एवं प्रो. रामानन्द गैरोला जी के हाथों हुआ था तो श्रद्धेय श्री निःसंग जी ने इस अवसर पर मुझे भी आमंत्रित किया था।

11 नवम्बर, वर्ष 2016 को जब उनके गाँव देवर.खडोरा गोपेश्वर जाने का सौभाग्य तो मैंने यह प्रत्यक्ष देखा एवं महसूस किया कि . वास्तव में श्रद्धेय श्री निःसंग इस उमर में भी एक ऋषि की तरह अपने साहित्यिक कर्म में लगे हैं। उनके साथ भाषा साहित्य सम्बंधी बहुत सारी बातें हुईं थीं। मैंने उनसे उनके लेख गाड़ म्यळैकि गंगा अर बोली म्यळैकि भाषा के सम्बन्ध में भी चर्चा की जो कि मैंने गढ़वाली पाक्षिक उत्तराखंड खबरसार एवं गढ़वाली साप्ताहिक रंत रैबार में पढ़ा था और बाद में उन्होंने स्वयं भी मुझे वह आलेख डाक द्वारा प्रेषित किया था। यह एक गढ़वाली भाषा सम्बन्धी सार गर्भित आलेख था। वर्ष 2014 में मेरी गढ़वाली गद्य की पुस्तक गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा बिनसर पब्लिकेशन देहरादून की भूमिका लिखकर उन्होंने मुझे कृतार्थ किया।

डॉ. चरण सिंह केदारखण्डी द्वारा सम्पादित श्रद्धेय श्री निःसंग के अभिनन्दन ग्रन्थ .शिवराज सिंह रावत निःसंग प्रकाशन वर्ष 2018 में भी मेरा उनके साथ संस्मरणात्मक आलेख प्रकाशित है, जिसके कुछ अंश यहाँ पर आ चुके हैं।

श्रद्धेय श्री निःसंग जी बड़े धार्मिक एवं उच्च कोटि के लेखक थे। उनके द्वारा दर्जनों लिखित पुस्तकाें के विषय भी भिन्न भिन्न थे। जिनमें महत्वपूर्ण पुस्तकें. गायत्री उपासना एवं दैनिक वंदना, श्री बदरीनाथ धाम दर्पण, उत्तराखंड में नंदा जात, कालीमठ .काली तीर्थ, पेशावर गोलीकांड का लोह पुरुष वीर चंद्र सिंह गढ़वाली, भारतीय जीवन दर्शन और सृष्टि का रहस्य, केदार हिमालय और पंच केदार, षोडस संस्कार क्यों, गढ़वाली .हिंदी व्याकरण, भाषा तत्व और आर्य भाषा का विकास, भारतीय जीवनदर्शन और कर्म का आदर्श, गीता ज्ञान तरंगिणी, मानव अधिकार के मूल तत्व आदि प्रमुख हैं।

उत्तराखण्ड भाषा संस्थान द्वारा वर्ष 2010.11 के लिये उन्हें गुमानी पंत साहित्य सम्मान, वर्ष 1997 में उमेश डोभाल स्मृति सम्मान, चन्द्र कुंवर बर्त्वाल स्मृति हिन्दी सेवा सम्मान 2005, उत्तराखण्ड सैनिक शिरोमणी सम्मान 2008, गोपेश्वर में पहाड़ सम्मान, चमोली जिला पत्रकार परिषद द्वारा स्व. रामप्रसाद बहुगुणा स्मृति पुरस्कार, साहित्य विद्या वारिधि सम्मान सहित उन्हें अन्य कई संगठनों/संस्थाओं द्वारा समय .समय पर सम्मानित किया गया।

गढ़वाली साहित्य के उन्नयन में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अखिल गढ़वाल सभा देहरादून के सौजन्य से स्व. भगवती प्रसाद नौटियाल जी के प्रबंध संयोजन में संस्कृति विभाग, उत्तराखंड द्वारा सन .2014 में प्रकाशित गढ़वाली.हिन्दी.अंग्रेजी में 6000 से अधिक गढ़वाली शब्द देकर इस शब्दकोश निर्माण में उनकी अहम भूमिका रही। पहाड़ की वीरांगना तीलू रौतेली पर आधारित उनका गढ़वाली खण्डकाव्य वीरबाला, गढ़वाली गीतिकाव्य माल घुघूती उनकी महत्वपूर्ण गढ़वाली रचनाएं हैं। गढ़वाली पाक्षिक समाचार पत्र उत्तराखंड खबरसार एवं गढ़वाली साप्ताहिक रंत रैबार में उनके बहुत सारगर्भित, शोधपरक गढ़वाली लेख छपे।

वर्ष 2010 में प्रकाशित उनकी भाषा तत्व और आर्य भाषा का विकास पुस्तक भाषा विज्ञान सम्बन्धी एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। यह पुस्तक भाषा के विकास के साथ .साथ हिंदी एवं गढ़वाली भाषा की उत्पति की नवीन अवस्थापनाओं को स्थापित करने में सफल रही है। जीवन के अंतिम दिनों में उनके द्वारा कुछ सृजित साहित्य अभी अप्रकाशित रह गया है। उनकी कमी जीवन में सदैव खलेगी। अपना सम्पूर्ण जीवन साहित्य की सेवा में लगाने वाले, साधक, समाज सेवी, हम सबके प्रेरणा श्रोत श्रद्धेय शिवराज सिंह रावत निःसंग को मेरी एवं आखर समिति की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि एवं शत.शत नमन। ईश्वर उनकी पुण्य आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे एवं उनके परिवार को इस बड़ी वेदना को सहने की अपार शक्ति प्रदान करे।

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