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बायो मेडिकल वेस्ट के पहाड़ में पर्यावरण पर नजर रखने को नहीं

09/01/22 - Updated on 18/01/22
in उत्तराखंड
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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला:

कभी शुद्ध हवा व कचरा रहित वातावरण के लिए जाने, जाने वाले पहाड़ों पर भी तरह-तरह का प्रदूषण बढ़ने लगा है। इसे लेकर विशेषज्ञ चिंतित हैं। इसके चलते पहली बार पांच पहाड़ी जिलों में प्रदूषण की मॉनिटरिंग और इस पर नियंत्रण का एक्शन प्लान बनने जा रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। चिंता की बात है कि बात अगर खतरनाक बायोमडिकल वेस्ट की करें तो पिछले करीब दो साल में पहाड़ों पर भी बायो मेडिकल वेस्ट लगभग 4 गुना हो गया है।

अब तक मैदानी इलाकों में प्रदूषण की समस्या थी, जिसके चलते देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, काशीपुर, रुद्रपुर और नैनीताल जैसे जिलों में ही प्रदूषण की निगरानी और उससे बचाव के उपाय किए जाते हैं। पर, अब पहाड़ों की ओर प्रदूषण बढ़ने लगा है, जो चिंता का विषय है। पीसीबी अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत, उत्तरकाशी और चमोली के लिए विशेष प्रदूषण नियंत्रण एक्शन प्लान नहीं है।पीसीबी में इनके लिए अलग-अलग ड्राफ्ट भी तैयार कर लिए हैं।

इसमें वायु, जल व ध्वनि प्रदूषण की निगरानी के अलावा बायो मेडिकल वेस्ट को इकट्ठा करने, इसको दूसरे कचरे से अलग करने और वैज्ञानिक तरीके से निस्तारित करने के उपाय किए जाएंगे। पहाड़ों पर प्रदूषण की बड़ी वजह वहां पिछले कुछ दशकों से वनाग्नि और वाहनों की बढ़ती संख्या है। इसके अलावा पहाड़ों पर भी छोटे-छोटे उद्योग पनपने लगे हैं, जो कहीं ना कहीं, वहां के पानी और वायु को दूषित कर रहे हैं।  पहाड़ों पर ऑलवेदर रोड सहित कई सड़कें, रेल लाइन व अन्य परियोजनाएं भी प्रदूषण बढ़ा रही हैं।

इनसे निकलने वाले कचरे का सही तरह से निस्तारण नहीं हो रहा है। इनसे निकलने वाले धूल मिट्टी आदि प्रदूषण बढ़ा रहे हैं। खतरनाक बायोमडिकल वेस्ट की करें तो पिछले करीब दो साल में पहाड़ों पर भी बायो मेडिकल वेस्ट लगभग 4 गुना हो गया है। लेकिन वहां अभी तक इसके सही निस्तारण की पूरी व्यवस्थाएं नहीं है।

पिछले कुछ साल से पहाड़ों पर भी प्रदूषण में वृद्धि देखने को मिल रही है, जो चिंताजनक है। वहां बायोमेडिकल वेस्ट भी तीन से चार गुना बढ़ गया है। ऐसे में एनजीटी के निर्देश पर पांच पहाड़ी जिलों के लिए प्रदूषण रोकने का विशेष एक्शन प्लान बनाया जा रहा है। इसका ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है। उत्तराखंड में कोरोना के बढ़ते केसों के बीच उत्तराखंड सरकार ने सख्ती शुरू कर दी है। थूकने और कूड़ा इधर-उधर फेंकने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

घर से बिना मास्क घूमने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के भी निर्देश दिए गए हैं। मुख्य सचिव ने कोविड को लेकर नोडल अधिकारियों के साथ बैठक में सभी नोडल अफसरों को एक्टिव रहने के निर्देश दिए। उत्तराखंड में सात दिन में सात गुना केस बढ़ चुके हैं लेकिन टेस्टिंग में तेजी नहीं आई है। एक जनवरी को एक दिन में जहां 118 केस आए थे वहीं आठ जनवरी को 814 केस आए। टेस्ट अब भी 15 हजार के आस पास है। एक जनवरी को 118 केस आए, टेस्ट 15090 हुए।

दो जनवरी को केस 259 सामने आए, टेस्ट सिर्फ 13529 हुए। तीन जनवरी को 189 केस सामने आए, टेस्ट 15528 हुए। चार जनवरी को 310 केस सामने आए, टेस्ट 15915 हुए।पांच जनवरी को 505 केस आए, टेस्ट 18447 हुए। छह जनवरी को 630 केस आए, टेस्ट 16844 हुए। सात जनवरी को 814 केस आए, टेस्ट 14566 हुए। सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटी फाउंडेशन के संस्थापक ने बताया कि जब तक टेस्टिंग नहीं बढ़ेगी, कोविड की सही तस्वीर सामने नहीं आएगी।

इसके लिए केंद्र के निर्देशानुसार कोविड टेस्टिंग बढ़ाई जाए।बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण में यदि किसी भी प्रकार की लापरवाही बरती जाती है तो इसका सीधा असर आमजन की सेहत पर पड़ेगा। खासकर कोरोना के दौर में खुले में पीपीई किट और मास्क फेंकने से संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ गया है।

ऐसे में यह सुनिश्चित कराया जाए कि कहीं भी खुले में इस्तेमाल की हुई पीपीई किट और मास्क न फेंके जाएं। यदि कोई ऐसा करता पकड़ा जाए तो उसके खिलाफ भी नियमानुसार कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। डॉ. कंसल का कहना है कि अस्पतालों और श्मशान घाटों के पास खुले में पीपीई किट मास्क पाए जाते हैं तो इसको इकट्ठा करने की जिम्मेदारी संबंधित नगर निगम व नगर पालिकाओं की है। ऐसे पीपीई किट व मास्क वैज्ञानिक विधि से निस्तारित कराए जाएं। 

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