डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के पहाड़ों की 80 प्रतिशत से ज्यादा खेती असिंचित है। बारिश न होने से वर्षा आधारित किसान जिन्हें गेहूं, जौ, मसूर जैसी फसलें बोनी थीं, वह शत प्रतिशत खत्म हो गई, किसान बुवाई नहीं कर पाए, खेत सूखे बंजर रह गए। कम या बेमौसम बारिश का सीधा असर किसानों की आजीविका पर है” “पहले तो कभी ऐसा होता नहीं था। गेहूं की बीज बुवाई के लिए तो बारिश आ ही जाती थी। बागवानी पर भी इसका बड़ा संकट आएगा। बारिश हो जाती तो पेड़ों में फूल अच्छे खिलते। मौसम से सबसे ज्यादा प्रभावित छोटे किसान ही होते हैं। हमारे पहाड़ों में ज्यादातर छोटे किसान ही हैं। किसानों की इस स्थिति की ओर किसी का ध्यान नहीं है”।86 प्रतिशत से अधिक पर्वतीय क्षेत्र वाले उत्तराखंड में ज्यादातर सिंचित खेती मैदानी जिलों तक सीमित है। जबकि पर्वतीय क्षेत्र में सिर्फ 14 प्रतिशत खेत ही सिंचित हैं।राज्य में पहाड़ के किसानों को सितंबर के बाद न के बराबर बारिश मिली है। मौसम विभाग के मुताबिक एक अक्टूबर से 24 नवंबर के बीच उत्तराखंड में सामान्य से तकरीबन 90 प्रतिशत कम बारिश हुई है। पिथौरागढ़ और बागेश्वर को छोड़ दें तो बाकी 11 जिले सूखे ही रहे। वहीं पड़ोसी हिमालयी राज्यों की ओर देखें तो इस दौरान हिमाचल प्रदेश में सामान्य से 98 प्रतिशत कम और जम्मू-कश्मीर में सामान्य से 68 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई। मौसम विभाग ने अपने एक बयान में कहा कि हिमालच प्रदेश में पिछले 123 वर्षों में तीसरा सबसे सूखा अक्टूबर महीना गुजरा, जिसमें 97 प्रतिशत कम बारिश हुई।आमतौर पर एक साल में सबसे कम बारिश मॉनसून के बाद अक्टूबर से दिसंबर के बीच होती है। नवंबर का महीना साल का सबसे कम बारिश का महीना होता है।देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह बताते हैं, सितंबर तक देश में मॉनसून रहता है और जब इसकी वापसी होती है तो हवा में मौजूद नमी की वजह से अक्टूबर में भी बारिश मिलती रहती है। पश्चिमी विक्षोभ राज्य में मध्य दिसंबर से आने शुरू होते हैं। जिसके बाद दिसंबर अंत में बारिश और बर्फबारी मिलती है। सर्दियों की बारिश जनवरी, फरवरी और मार्च में होती है। अप्रैल से मानसून पूर्व बरसात शुरू होती है और मई अंत तक चलती है। जून से मानसूनी हवाएं अपने साथ बादलों का झुंड लाती हैं।
राज्य में मॉनसून बाद अक्टूबर से दिसंबर के बीच सामान्य तौर पर 55 मिलीमीटर बारिश होती है। अक्टूबर में 31 मिमी, नवंबर में 6.4 और दिसंबर में 17.6 मिमी सामान्य है। जबकि मानसून में 1,162 मिमी, मानसून-पूर्व 185 मिमी और सर्दियों में 101 मिमी बारिश औसतन होती है।बिक्रम सिंह कहते हैं कि मॉनसून के बाद बारिश की मात्रा कम होने के चलते इसमें उतार-चढ़ाव अधिक दिखता है, “नवंबर की 6.4 मिमी बारिश बताती है कि इस समय पश्चिमी विक्षोभ नहीं आता। हालांकि जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में इसका थोड़ा बहुत असर होता है लेकिन उत्तराखंड में नहीं”।पश्चिमी विक्षोभ की ठंडी हवाओं का सिलिसिला भूमध्य सागर और उससे सटे क्षेत्रों से शुरू होता है। हिंदुकुश पर्वत श्रृंखलाओं से टकराकर ये हवाएं उत्तर भारत और हिमालयी क्षेत्रों की दिशा में आती हैं और अपने साथ बारिश और बर्फ लाती हैं। जो किसानों के लिए, जलस्रोतों को रिचार्ज करने के लिए और ग्लेशियर पर बर्फ की परत चढ़ाने के लिए बेहद जरूरी होती है।पिछले कुछ समय में पश्चिमी विक्षोभ में भी बदलाव देखा जा रहा है। वैश्विक तापमान बढना और जलवायु परिवर्तन से जोड़कर इसे देखा जा रहा है। शोध पत्र “वेदर एंड क्लाइमेट डायनेमिक्स” में प्रकाशित के एक अध्ययन के मुताबिक पश्चिमी विक्षोभ अब गर्मियों के महीने में अधिक होने लगे हैं जबकि पहले ऐसा बेहद कम होता था। पिछले 20 वर्षों में जून के महीने में पश्चिमी विक्षोभ की संख्या पिछले 50 वर्षों की तुलना में दोगुनी हो गई है।पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी पश्चिमी विक्षोभ का असर उत्तरी भारत में मानसून पूर्व गर्मियों के मौसम में अधिक देखने को मिला। जबकि मॉनसून के बाद की बारिश कम हुई। गेहूं बुवाई के लिए खेत तैयार करने वाले किसानों का इंतजार अभी खत्म नहीं हुआ है।किसान विजय जड़धारी याद करते हैं कि पिछले साल भी दिसंबर तक बारिश बहुत कम हुई थी और पहाड़ों में भी गर्मी चरम पर रही। अगर इस साल भी यही हाल रहा तो अगली गर्मियां भी जबरदस्त होंगी। सिंचित खेती पर भी इसका असर पड़ेगा। क्योंकि नदियों का जलस्तर कम हो जाएगा। पहाड़ों की पेयजल व्यवस्था भी सीधे बारिश पर निर्भर है। नवंबर के आखिरी हफ्ते में जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में बर्फबारी ने हिमालयी क्षेत्र के लोगों की बड़ी राहत दी है। लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ अब भी बर्फ और बारिश का इंतजार कर रहे हैं। इस साल उत्तराखंड का मौसम बेहद अलग रूप में नजर आ रहा है. पहले मानसून के बाद बारिश पड़ती थी, जिसके बाद सर्दियां बढ़ने लगती थी, लेकिन इस साल ऐसा कुछ नहीं हुआ. मानसून के बीते हुए लंबा वक्त बीत गया है, लेकिन अब तक उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में पानी की एक बूंद तक नहीं गिरी और न ही पहाड़ों पर बर्फ नजर आ रही है, जो इस समय तक बर्फ की चादर लपेटे हुए नजर आते थे.बता दें कि बारिश के न होने से मौसम शुष्क बना हुआ है, जिससे लोगों की सेहत पर भी बहुत बुरा असर पड़ रहा है. मौसम विभाग के अनुसार, अगले कुछ दिनों तक मौसम साफ रहेगा. अगर मौसम इसी तरह से शुष्क बना रहा और बारिश नहीं हुई, तो इस साल कम ठंड पड़ेगी और सूखी ठंड सभी के लिए नुकसानदायक होगी. बारिश के न होने से वातावरण में उठ रहा फॉग सांस के मरीजों को परेशान कर रहा है.।लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।