————— प्रकाश कपरुवाण।
ज्योतिर्मठ।
नौ वर्ष पूर्व दिसंबर 2016मे उत्तराखंड सरकार ने सीमांत पैनखंडा जोशीमठ अब ज्योतिर्मठ के पैनखंडा समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग की राज्य सूची मे शामिल किया था, जिसका लाभ राज्य स्तरीय सेवाओं व शिक्षण संस्थाओं मे प्रवेश आदि के लिए तो मिलना शुरू हुआ लेकिन केंद्रीय सेवाओं के लिए यह लागू नहीं हो सका। पैनखंडा संघर्ष समिति द्वारा लगातार राज्य सरकार व राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग से पत्राचार किया गया, लेकिन इस दिशा मे कोई कार्यवाही नहीं हो सकी।
केंद्रीय ओबीसी की सूची मे शामिल किए जाने के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा संस्तुति सहित एक प्रस्ताव केंद्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को भेजा जाना है, जो नहीं भेजा गया। केंद्रीय ओबीसी की सूची मे शामिल होने की आस लगाए सीमांत पैनखंडा समुदाय के लोगों का अब सब्र का बाँध भी टूटने लगा है।
देश की आजादी से पहले व आजादी के बाद देश का पहला परगना पैनखंडा जो भारत -चीन सीमा से सटा है, यहाँ के निवासी सत्तर के दशक से ही परगना पैनखंडा को जनजाति या पिछड़ा वर्ग मे शामिल किए जाने की मांग करते आ रहे हैं, सत्तर के दशक मे ही तब कई सामान्य जातियों को छोड़कर सीमावर्ती गावों के निवासियों को जनजाति घोषित किया गया, तब से ही समय समय पर संपूर्ण पैनखंडा जोशीमठ को जनजाति क्षेत्र घोषित करने की मांग की जाती रही।
पैनखंडा वासियों की इस जायज मांग का समर्थन करते हुए वर्ष 1998-99 मे नगरपालिका परिषद जोशीमठ, क्षेत्र पंचायत जोशीमठ एवं जिला पंचायत चमोली द्वारा अपने अपने सदनों से पैनखंडा जोशीमठ को जनजाति क्षेत्र घोषित करने का प्रस्ताव पारित किया गया, तब उत्तर प्रदेश सरकार ने तो इसमें रूचि नहीं ली लेकिन उत्तराखंड राज्य गठन के बाद अतंरिम विधानसभा द्वारा पैनखंडा जोशीमठ सहित राज्य के अन्य सीमावर्ती विकास खंडो को जनजाति क्षेत्र घोषित करने का संकल्प पारित कर केन्द्र सरकार को अवश्य भेजा गया।
वर्ष 2011 मे उत्तराखंड सरकार द्वारा सीमावर्ती जनपद पिथौरागढ़ व उत्तरकाशी के कुछ हिस्सों को ओबीसी मे शामिल किया गया, तब जनजाति क्षेत्र की आस लगाए पैनखंडा वासियों ने भी सीमांत परगना पैनखंडा को पिछड़ा क्षेत्र घोषित किए जाने की मुहिम शुरू कर दी, भरत सिंह कुंवर एवं एडवोकेट रमेश चन्द्र सती के नेतृत्व मे पैनखंडा संघर्ष समिति का गठन हुआ, प्रदेश सरकार से लेकर केंद्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग तक पत्राचार हुआ, एसडीएम से लेकर सीएम तक ज्ञापनों का सिलसिला भी शुरू हुआ।
लेकिन इस मुहिम को धार तब मिल सकी जब विश्व पर्यावरण दिवस 5जून 2016 को तत्कालीन विधायक राजेन्द्र भण्डारी मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि के तौर पर कार्यक्रम मे सम्मलित होने उर्गम पहुंचे और उन्होंने मुख्यमंत्री की ओर से पैनखंडा को ओबीसी की सूची मे शामिल करने की घोषणा कर डाली।
बस यही एक महत्वपूर्ण क्षण था जिसने घोषणा पर अमल न होने पर आंदोलन का रूप ले लिया जो आमरण अनशन तक की स्थिति मे पहुंचा, तब सरकार को झुकना पड़ा और 21दिसंबर 2016को पैनखंडा समुदाय को ओबीसी मे शामिल करने का शासनादेश जारी हुआ। पैनखंडा वासियों को राज्य पिछड़ा वर्ग की सूची मे शामिल होने का लाभ भी मिला लेकिन केंद्रीय सेवाओं के लाभ से यह समुदाय आज भी वंचित है।
केंद्रीय ओबीसी की सूची मे शामिल होने की लंबी प्रतीक्षा के बाद अब पैनखंडा वासियों के सब्र का बाँध टूटता जा रहा है जो पुनः एक बड़े आंदोलन का रूप भी ले सकता है।
ओबीसी की राज्य सूची मे शामिल किए गए विकासखण्डो या क्षेत्रों को केंद्रीय ओबीसी की सूची मे शामिल करने की पहल उत्तराखंड सरकार कब तक कर सकेगी इस पर वर्षों से केंद्रीय ओबीसी की सूची मे शामिल होने की वाट जोह रहे पैनखंडा समुदाय की भी नजरें रहेंगी।