डॉ योगेश धस्माना
पहाड़ टूट सकता है पर झुक नही सकता है । यह केवल एक कहावत भर नही है , वरन इस स्वाभिमान भरे व्यक्तित्व का नाम है , प्रॉफेसर आदित्य नारायण पुरोहित । उन्होंने चमोली जनपद के थराली विकासखंड के किमनी गांव से जीवन संघर्ष की गाथा लिखते हुए यूरोप , अमेरिका , कनाडा तक अपने पुरुषार्थ और संघर्ष से जो हासिल किया , उसकी गाथा है उनकी आत्मकथा । हाल में प्रकाशित ‘अनजानी यात्रा पर ‘ उन्होंने जीवन के अनवरत संघर्ष और ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर चलते हुए , अपने बच्चों को पहाड़ी और भारतीय परिवेश के संस्कारों में ढालने के लिए कनाडा से इस्थाई नौकरी छोड़ कर , भारत में संघर्ष की जो कहानी लिखी है , उसे हर युवक को पढ़ना चाहिए । पुस्तक से यह भी सीख मिलती है कि, यदि आपकी योग्यता ,साहस और कुछ कर गुजरने की इच्छा शक्ति मन में हो तो , बाधाएं और तूफान आपको लक्ष्य प्राप्ति से विचलित नहीं कर सकती है ।
मेरा यह मानना है की गढ़वाल विश्वविद्यालय में विज्ञान संकाय , हाईप्रेक और गोविंद वल्लभ पंत पर्यावरण विकास संस्थान को इस्थापित कर उच्च स्तरीय सोच के लिए विश्व का ध्यान भारत की ओर आकर्षित करने में भी सफलता प्राप्त की ।
पुस्तक में प्रोफेसर ए.न. पुरोहित ने देश के भीतर प्रौतिभाओं के साथ अन्नाय , गंदी राजनीति और गढ़वाल – कुमाऊं के बीच जातीय इलाकवाद की राजनीति और वैमनस्यता से लड़ते हुए , देश में अपनी एक पहचान बनाई ।
प्रोफेसर ए.न. पुरोहित ने अपने शोधकार्यों से पहाड़ की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण संतुलन के लिए जो कार्य किया , उससे उनके गुरु प्रोफेसर के.के. नंदा , प्रोफेसर मेनन यहां तक अब्दुल कलाम आज़ाद भी खासे प्रभावित थे । फलस्वरूप उन्हें 1998 में पद्मश्री सम्मान और 1999 में गढ़वाल विश्वविद्यालय का कुलपति नामित किया गया। आज 87 वर्ष पूर्ण करने के बाद भी हृदय रोग की बीमारी से चलते हुए भी अपने लैपटोप के साथ सक्रिय दिखाई देते हैं । पत्नी मालती के निधन से आहत जरूर हैं , किंतु हर दिन कुछ नया करने की इच्छा दिल में संजोए हुए हैं। इस बातचीत में उनके साथ इनके पारिवारिक दामाद शक्ति खंडूरी और उनकी पत्नी उपस्थित थी। प्रोफेसर ए.न. पुरोहित के शोधार्थियों की टीम देश विदेश में उनके पुरुषार्थ के कारण ही समृद्ध होती हुई दिखाई ।