भारत की पुण्य भूमि पर भागीरथी अमृत बेला में परमादरणीय श्री अटल बिहारी बाजपेई ने संयोगवश “लेखकों की अभिव्यक्ति के लिए यथोचित स्थान होना चाहिए जो उनके सृजन की तीर्थ स्थली हो सके “ऐसा आचमन मन्त्र ,अविराम पुरुषार्थी शिक्षा नीति 2020 के प्रणेता हमारे पूर्व शिक्षा मन्त्री माननीय डॉक्टर रमेश पोखरियाल “निशंक” जी के कर्ण-कहुरू में ऐसा फूंका कि वह निशंक जी के मानस -हंस का शिव संकल्प हो गया जिसकी सतत् गूंज उन्हें आन्दोलित करती रही।सच भी है जब लेखक अपने भाव-थाल में चुन चुन कर अक्षर-सुमन सजाता है ,अनहद नाद के उर नेवेद्य संयोजित कर दीपित विषय जाग्रत करता है तो अपनी आराधना के लिए उसे ऐसा रुचिर मन्दिर अभीष्ट होता है जहां समाधिस्थ होकर वह अपनी संवेदना को उकेर सके।ऐसी ही उर्वर- धरा की एषणा निशंक जी के मन में वह स्वप्न बुनने लगी जो आज के “लेखक गाँव “के रूप में प्रत्यक्ष साकार है। देहरादून से जरा हट कर हवाई पत्तन से जरा सट कर हिमालय की गोद में गङ्गा के प्रवाह -सातत्य से अभिषिक्त यह लेखक गाँव नैसर्गिक सम्पदा से आवेष्टित जीवन की दिव्य भव्यता का साकार स्वरूप है जिसमें निम्नौच्च शस्य शृंगशृंखलाएँ लेखक गाँव में जीवन-दर्शन रचती सी परिलक्षित होती हैं,जहाँ पुस्तकालय की भित्तियों से लिपटी ज्ञान शिखाएँ मुक्त होकर ज्योतिर्लेखाएँ बनने को आतुर हैं। जीवन की विसंगतियाँ सौहार्द की लहरों में लय होकर ऊर्जस्वित होना चाहती हैं।यह सुरम्य धरा विश्व गुरु के पुनर्निर्माण की आकाँक्षा करती है।
25 अक्टूबर 2024 के प्रभा सूर्य ने लेखक गाँव में नूतन रश्मियों के साथ ऐसा अनुराग छिटका कि कण-कण से संजीवनी फूटने लगी। देश-विदेश की वीथियों से उठ कर थानों देहरादून की तपोभूमि में अभ्यागत आँखों की चमक, चेहरों पर दमक, अंग अंग में उल्लास ,रोम रोम का उच्छवास अलौकिक आनन्द-स्रोत में निमज्जित। वर्दी से झांकती उद्घाटन कीआभा में लिपटे अनुशासन से दैदिप्यमान ललाट वाले बी एस एफ के जवानों का उत्साह, सामने श्यामला पहाड़ियों के आँचल में शुभ्र कुटजों की विलसती विभाएँ, अपनी समग्रता में निहित पुस्तकालय के अक्षर-धाम की ज्ञान-परम्परा का आह्लादक आमन्त्रण, अन्नपूर्णा का अक्षुण्ण भोजनालय, प्राणवन्त संजीवनी वाटिका,निहाल थे हमऔर दिग्दिगंत से आये हमारे लालायित सहचारी।
उद्घाटन महोत्सव की पूर्व पीठिका,सभागार की विशालता सबको अपने में समाहित करने के लिए पर्याप्त से कहीं अधिक। सद्य अवचित खिले गुलदावदी और नीले ऑरकिड से मानो नीलोत्पल से श्रृंगार किये गये मञ्च पर
भारत की महिमामंडित गरिमा का अवतरण।अपने अपने पद की अहमियत को त्याग लेखनी की आस्था से सुगन्धित महान विभूतियों से अलंकृत महोत्सव का प्रथम सोपान।
शिक्षा-नीति 2020 के सकार स्वरूप की पूर्व प्रक्रिया को अपने शब्दों से अनुस्यूत पृष्ठों पर मानवीय संवेदनाओं को अंकित करते पूर्व राष्ट्रपति महामहिम श्रीरामनाथ कोविंद,अपनी गहन विस्तृत झोली में अनेकशः आशीषों को ले आये सृजन की क़लम पकड़े महामण्डलेश्वर श्रीयुत अवधेशानन्द जी महाराज, हृदय-कैनवास पर शब्दों के इन्द्रायुध रंगों से कृत्रिम बुद्धिमता की कुटिल चारित्रिक विशमताओं को उद्धृत कर अपनी वेदनाओं को उकेरते विख्यात साहित्यकार डॉक्टर प्रसून जोशी जी, शत सहस्त्र हाथों से लेखक गाँव जैसी सांस्कृतिक थाती को अपनी आश्वस्ती से संवारते उत्तराखंड के संवेदनशील पुरुषार्थी मुख्यमन्त्री आदरणीय धामी जी ,अंततः उत्तराखंड के कुलाधिपति सभी के वक्तव्यों के सत्व को पिरोते हुए शहादत की वेदिका से राष्ट्रीय चेतना को जागृत कर प्रत्येक आयाम के वातायन से अपनी ऊर्जस्वित उष्मा से हम सबको आलोक पथ पर आने का आग्रह करते जनरल महामहिम श्री गुरमीत सिंह जी।जगमग था मञ्च इनआलोकित प्रदीप्तों से।मध्य मध्य पहाडी गीत ,उत्तराखंड के नृत्य आदि परिचित करा रहे थे उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर से।मन नहीं भरा।किन्तु तृप्ति विराम भी तो है।नहीं चाहते तृप्त होना ।हमें तो अभीष्ट है यहाँ बार बार आना ,अपने समाज को सर्वदा अपने साथ रखना।
भोजन के उपरान्त, जमुना पण्डाल में लेखक-संवाद में अध्यक्ष गुरु जी,हाँ जिन्हें हर तीसरा विद्वान डाक्टर योगेन्द्र “अरुण “जी को गुरु जी कह कर सम्बोधित कर रहा था।अनेक अनेक विद्वान की आवाजाही।आदरणीय निशंक जी को भी मुख्य वक्तव्य के लिये मञ्च पर आना था।थोड़ा-बहुत बैठे भी,किन्तु ममता कालिया जी को सामने पण्डाल में बैठा देख उनके पास आकर बैठ गये थे। चर्चा बहुत सारगर्भित रही जिसमें एक बात वो भी आदरणीय निशंक जी के अधर-सम्पुट से व्यंजित हुई। दिल्ली से आईं किसी प्रखर वक्ता के द्वारा नकारात्मक लोगों के लिए “इसके द्वार बन्ध करना श्रेयस्कर होगा”कहने पर आदरणीय निशंक जी ने अपनी वाणी से तत्काल उस तथ्य का परिमार्जन किया और कहा लेखक-गाँव इतना मंगलमय वातावरण बनाने का प्रयास करेगा कि नकारात्मक से नकारत्मक व्यक्ति भी यहां आकर सकारात्मक हो जायेग। संध्याकाल , दिनमान धीरे धीरे मानो हमारे लिए अनुराग लिखने लगा।इधर कोई चाय पी रहा है तो कहीं चित्रकला की वैभवी अपने पास आने का आमन्त्रण दे रही है, जमुना पण्डाल में कविता सजधज करने लगी है,गंगा -पण्डाल में कहानी बुनी जा रही है। समग्र वातावरण चहक रहा है। मुख्य सभागार में सुविख्यात अन्तरराष्ट्रीय भारतीय नृत्यांगना आदरणीय सोनल मानसिंह के नूपुरों की झंकार से कण कण,तृण तृण झंकृत था। निःशुल्क आवासीय व्यवस्था इतनी सुविधापूर्ण ,इतनी रम्य ,शुभता शुचिता पूर्ण कि जो रहा वही अनुभव कर सकता है ,शब्दातीत,सरस और निराली।
महोत्सव का दूसरा दिन विदशी प्रतिभागियों के साथ आत्मसात होने का दिन।गङ्गा पण्डाल का शैत्य लिपटाकर यमुना पण्डाल में ,आदरणीय गुरुजी की अध्यक्षता में प्रातःकालीन सत्र का कलरव भोर की किरणों के साथ-साथ।
अपनी सांस्कृतिक राष्ट्रीय भाषा हिन्दी के प्रचार प्रसार के विभिन्न आयामों पर चर्चा ,राष्ट्रीयता में अवगाहन, विद्या वारिधि महान विभूतियों के साथ मेरे जैसे अकिंचनों का भी
अभिनन्दन ।तदनु भोजनालय में हम सभी का सौहार्द मेला ,आत्मा से आत्मा के मिलने का मेला,विदेशी अधरों पर खिले हिन्दी के फूलों का मेला। सांध्य- रश्मियों में दिवाकर की लालिमा को संजोये विदशी देह में उतरती भारत की योग भंगिमायें,मञ्च पर स्वदेश से इतर वागेन्द्री से मुखर कविताओं में अपनी हिन्दी की हठखेलियां,एन एस डी के प्रशिक्षुओं की नाट्य-संहिताएँ रचती रही सांस्कृतिक रंगोलियां।बाहर भीतर एकमन,एकभाव एक चेतना।अनुपम पाथेय में अनूठी चेतना।
लेखक गाँव के इस तीर्थ की ज्ञान की बहुविध लहरियों में अवगाहन का पुण्य फिर ले आए हमें यहां, जी सकें हम पुनः पुनः ,बाँच सकें स्वयं को,बाँट सकें प्राणवायु अनेक तूलिकाओं में,आत्मसात करलें वह सत्य जिसकी धारणा रच सके यथार्थ की भूमि पर आदर्श की भूमिका और समर्पित कर सकें आभार की कुछ प्रणालियाँ और उनका नवनीत राष्ट्रीय तपस्वी आदरणीय निशंक जी के प्रति जिन्होंने प्रतिष्ठित किया है “हिमालय में राम”
डॉक्टर हरीश चन्द्र अंडोला