डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पौष्टिक आहार की जरूरत पड़ती है। पौष्टिक आहार से शरीर को ऊर्जा मिलती है। इसकी कमी से शरीर कुपोषण का शिकार हो जाता है। तरह-तरह की बीमारियां शरीर को घेरने लगती हैं। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता क्षीण पड़ जाती है। पौष्टिक आहार क्या है? पौष्टिकता तो हर खाद्य-वस्तु में होती है। फल, सब्जियां, दालें, तिलहन, विभिन्न प्रकार का अन्न, मेवे, दूध, दही, घी आदि। फर्क अनुपात का है। जहां तक अन्न की बात है तो गेहूं, चावल अधिकतर घरों में उपयोग में लाया ही जाता है। हालांकि, आजकल ‘जंक फूड’ का भी प्रचलन काफी बढ़ चुका है। जिसके कारण लोग अन्न से भी दूर होने का प्रयास कर रहे हैं। ‘जंक फूड’ को आलसियों का खाना माना जा सकता है। जिसे बनाने में न ज्यादा समय लगता है न ज्यादा मेहनत। कुछ तो इतना भी झंझट नहीं पालते बल्कि बाजार से बना-बनाया मंगा लेते हैं। जंक फूड से क्षुधा नहीं मिटती ना ही पेट भरता है, अपितु शरीर में अनावश्यक बीमारियां जरूर पैदा हो जाती हैं। शरीर के लिए अन्न आवश्यक है। जहां गेहूं, चावल की खेती कम होती है या होती ही नहीं वहां मोटा अनाज उपयोग में लाया जाता है। मोटा अनाज के तहत रागी, ज्वार-बाजरा, रामदाना, कुटकी, सावा, झंगोरा, मंडुआ, चीना आदि आता है। जिस मोटे अनाज को कभी गरीबों का खाना कहा जाता था वही आज अमीरों की थाली की शान बन रहा है। अब इसके गुणों को लोग पहचानने लगे हैं। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण व अन्य उपयोग जैसे पशु-चारा आदि के तौर पर इसकी उपयोगिता बढ़ती जा रही है। मोटे अनाज में औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। मोटे अनाज की खेती करने के लिए सिंचित भूमि की आवश्यकता नहीं पड़ती। पहाड़ी इलाकों के ऊंचाई वाले इलाकों में सिंचाई के साधन न होने के कारण मंडुआ, झंगोरा आदि की खेती अधिक की जाती है। मैदानी इलाके जहां केवल बारिश पर ही निर्भर रहना पड़ता है वहां ज्वार-बाजरा, रागी जैसे मोटा अनाज की खेती की जाती है। मार्च 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा भारत की ओर से पेश वर्ष 2023 को ‘अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष’ (इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर) घोषित करने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया। जिसे 70 देशों से अधिक का समर्थन मिला। भारत सरकार मोटे अनाज के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए बढ़-चढ़कर प्रचार-प्रसार कर रही है। इसको बढ़ावा देने के लिए ‘श्री अन्न योजना’ शुरु की गयी है साथ ही देश के विभिन्न भागों में इससे संबंधित महोत्सवों का आयोजन किया जा रहा है।स्वास्थ्य और सेहत को ध्यान में रखते हुए लोगों ने अब अपने खानपान में परिवर्तन किया है. ऐसे में एक बार फिर से मोटे अनाज के प्रति लोगों में रुझान देखा जा रहा है. लोगों को स्वस्थ रहने के लिए डॉक्टर भी मोटे अनाज खाने की सलाह दे रहे हैं. ऐसे में अब मोटे अनाज खाने का चलन फिर से लौट आया है. मोटे अनाज की डिमांड को देखते हुए अब सरकार भी किसानों को इनके उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कई तरह की योजनाएं चला रही है. जिससे किसान ज्यादा से ज्यादा मोटे अनाज की पैदावार करें और अपनी आर्थिक मजबूती के साथ-साथ लोगों को खाने के लिए मोटा अनाज मिल सके. रामदाना जिसको मोटे अनाज के तौर पर भी जाना जाता है. रामदाना में कई विटामिन और पोषक तत्व पाए जाते हैं. हमारे शरीर के लिए आवश्यक एंटीऑक्सीडेंट की करीब 70 प्रतिशत पूर्ति रामदाना करता है. इसके अलावा रामदाना में कई औषधीय गुण छुपे हुए होते हैं. रामदाना हड्डियों को मजबूती देने के साथ-साथ बैड कोलेस्ट्रॉल को भी कम करता है. इसमें पाए जाने वाले फाइबर की वजह से यह पाचन तंत्र को भी मजबूत करता है. रामदाना में उच्च क्वालिटी का फाइबर, प्रोटीन, फॉस्फोरस, कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, आयरन और कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. इतना ही नहीं इसमें प्रचुर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट भी पाए जाते हैं. जिसकी वजह से यह कई बीमारियों से निजात दिलाता है. रामदाना में कैंसर रोधी गुण पाए जाते हैं. इसके अलावा यह मधुमेह और दिल की बीमारियों से भी राहत देता है. रामदाना में पाए जाने वाले फाइबर की वजह से यह पेट के लिए बेहद अच्छा माना जाता है रामदाना या राजगीरा के दानों को फुलाकर कई तरह के खाद्य पदार्थ, खासकर लड्डू बनाना अधिक प्रचलित है. इसके अलावा कई प्रकार के बेकरी खाद्य पदार्थ जैसे बिस्किट, केक पेस्ट्री, केक आदि भी बनाए जाते हैं. राजगीरा से बनाए गए बच्चों के आहार को सबसे अच्छा माना जाता है. इतना ही नहीं, इसकी पत्तियों में ऑक्जलेट और नाइट्रेट की मात्रा कम होती है जो पशुओं के चारे के लिए सबसे अच्छा माना जाता है. इसका हरा चारा पौष्टिक होने के साथ ही सुपाच्य भी होता है. राजगीरा का तेल ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारी में अच्छा काम करता है. प्रदेश में मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने किसानों को बड़ी सौगात दी है। चयनित मोटे अनाज के बीज और उर्वरक किसानों को 80 फीसदी अनुदान पर मिलेगा। वहीं, इसकी बुवाई को प्रोत्साहित करने के लिए किसानों को 1500 से लेकर 4000 रुपये प्रति हेक्टेयर धनराशि दी जाएगी।कैबिनेट में उत्तराखंड राज्य मोटे अनाज की नीति के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। राजगिरा के बीजों में फाइटोस्टरोल होते हैं जिस वजह से कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करने में ये मददगार होता है। ये बॉडी में शुगर लेवल को मैनेज करता है और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है। इसमें असंतृप्त वसीय अम्ल और घुलनशील फाइबर होता है, जो कि ब्लड कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मददगार होता है। चौलाई में पेप्टाइड्स होते हैं जिस वजह से ये इन्फ्लामेशन और दर्द को कम करता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स भी होते हैं जो शरीर से फ्री रेडिकल बाहर निकालने में सहायक होते है।प्रोटीन, आयरन और विटामिन की तरह कैल्शियम शरीर के लिए एक जरूरी पोषक तत्व है। यह खासकर हड्डियों और दांतों के स्वास् और उनकी मजबूती के लिए जरूरी है। इसके अलावा मांसपेशियों के स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी है। यह नर्वस सिस्टम को बेहतर रखता है, खून के थक्के बनाने में मदद करता है और दिल की धड़कन को नियमित करता है।कैल्शियम की कमी के नुकसान क्या हैं? कैल्शियम की कमी से ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ सकता है जिससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। इसकी कमी से मांसपेशियों में कमजोरी और ऐंठन हो सकती है, दांत कमजोर और उनमें सड़न हो सकती है, तंत्रिका तंत्र की समस्याएं जैसे झुनझुनी, सुन्नता और मांसपेशियों में ऐंठन हो सकती हैं।सरकार के प्रयास रंग लाए तो श्रीअन्न यानी मोटे अनाज के उत्पादन में उत्तराखंड निकट भविष्य में लंबी छलांग लगाएगा। स्टेट मिशन मिलेट के अंतर्गत मंडुवा, झंगोरा व रामदाना जैसे मोटे अनाज का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए घाटियों एवं अन्य क्षेत्रों में ऐसी बेकार पड़ी कृषि योग्य भूमि तलाशी जा रही है, जिसमें इनकी खेती हो सकती है। इसके पीछे सरकार की मंशा क्षेत्रफल बढ़ाकर उत्पादन में बढ़ोतरी करना है, ताकि श्रीअन्न की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके।उत्तराखंड में पहाड़ से लेकर मैदान तक अलग-अलग भू-आकृतियां हैं। स्थान की ऊंचाई के साथ जलवायु और वनस्पतियां बदलती रहती हैं।पहाड़ में बजरी व हल्की बनावट वाली मिट्टी होती है, जो लंबे समय तक पानी नहीं रखती। इसे मंडुवा, झंगोरा, रामदाना जैसे स्माल मिलेट के लिए उपयुक्त माना जाता है। ये फसलें अपने लचीलेपन के लिए जानी जाती हैं। यानी ये विविध परिस्थितिक स्थिति में तालमेल बैठाने में सहायक होती हैं। यही कारण है कि राज्य के 10 पर्वतीय जिलों में इनकी खेती होती आई है। ये फसलें पूरी तरह जैविक होने के कारण इनकी मांग भी अधिक है। बावजूद इसके, मोटे अनाज का क्षेत्रफल घट रहा है।आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2000-01 में राज्य में मंडुवा का क्षेत्रफल 127733 हेक्टेयर था, जो वर्ष 2021-22 में घटकर 85880 हेक्टेयर पर आ गया। यह बात अलग है कि उत्पादकता में वृद्धि हुई है। वर्ष 2000-01 में मंडुवा की उत्पादकता 12.71 क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी, जो अब बढ़कर 14.78 हो गई है।इसी तरह झंगोरा का क्षेत्रफल भी घटकर 40814 हेक्टेयर पर आ गया है, लेकिन इसकी उत्पादकता में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।इस बीच केंद्र सरकार ने श्रीअन्न यानी मोटे अनाज को प्रोत्साहन देने की कसरत प्रारंभ की तो उत्तराखंड ने भी वर्ष 2023-24 से 2027-28 तक के लिए स्टेट मिलेट मिशन की घोषणा की। इसके लिए 73.16 करोड़ का प्रविधान किया गया, जिसमें मोटे अनाज का क्षेत्रफल व उत्पादन बढ़ाने के दृष्टिगत कृषि विभाग को 53.16 करोड़ और मंडुवा, झंगोरा, रामदाना की खरीद के लिए सहकारिता विभाग को 20 करोड़ की राशि प्रदान की गई। चालू वित्तीय वर्ष में अब 7429 किसानों से 16500 मीट्रिक टन मोटे अनाज की खरीद हो चुकी है।सरकार ने मोटे अनाज को प्रोत्साहन के दृष्टिगत सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से प्रति राशन कार्ड एक किलो मंडुवा उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही महिला एवं बाल पोषाहार की योजनाओं में मिलेट को शामिल किया गया है। ऐसे में वर्तमान में मंडुवा, झंगोरा का जितना उत्पादन हो रहा है, वह इस आपूर्ति के लिए कम पड़ सकता है। इसी के दृष्टिगत अब इसका क्षेत्रफल बढ़ाने को कसरत चल रही है।गुणों से भरपूर रामदाना सभी प्रकार की जलवायु में आसानी से उगने वाला है। इसका प्रयोग भोजन के रूप में भारत और दक्षिणी अमेरिका में हजारों वर्षों से होता आया है। रामदाना को अनेक इलाकाई नामों से जाना जाता है जैसे अनारदाना, चौलाई, राजगिरा, चुआ वगैरह. छत्तीसगढ़ के पहाड़ी और मैदानी इलाकों में ठंड के मौसम में रामदाना की खेती की जाती है. कम पानी व कम खाद के हालात में भी उत्पादन पर कोई खास असर नहीं पड़ता. इस के दानों में 12-19 फीसदी प्रोटीन, 63 फीसदी कार्बोहाइडे्रट व 5.5 फीसदी लायसिन होता है.लोहा, बीटा केरोटिन व फोलिक एसिड का यह बहुत अच्छा स्रोत है जिस की क्वालिटी मछली में उपलब्ध प्रोटीन के बराबर है. इस के दानों में पाया जाने वाला तेल दिल की बीमारी, रक्तचाप वगैरह बीमारियों में काफी फायदेमंद देखा गया है. इस की पत्तियों में विटामिन ‘ए’, कैल्शियम व लौह तत्त्व प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. मिलेट में एंटीऑक्सीडेंट तत्त्व होते हैं जो शरीर में फ्री रेडिकल्स के प्रभाव को कम करते हैं। यह त्वचा को जवां बनाए रखने में मददगार हैं। मिलेट में केराटिन, प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन और जिंक हैं जो बालों से संबंधित समस्याओं को दूर करते हैं। मिलेट शरीर को डीटॉक्सीफाई करते हैं क्योंकि इसमें क्वेरसेटिन, करक्यूमिन, इलैजिक एसिड कैटिंस जैसे एंटीऑक्सीडेंट होते हैं। सुबह और शाम के नाश्ते में अगर हम मोटे अनाज की निश्चित मात्रा को अपने भोजन में शामिल कर लें तो अनेक रोगों से बचा जा सकता है। बस जरूरत है तो जागरूकता और सरकारी सहयोग की। इस समय पूरी दुनिया में मोटे अनाज की मांग बढ़ रही है। अत: कृषकों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार की उम्मीद की जा सकती है क्योंकि मोटे अनाज की खेती कम खर्च में की जा सकती है एवं मौसम की मार का जोखिम भी नहीं रहता। यह खेती पर्यावरण हितैषी भी है। उपेक्षित मोटे अनाज की श्रेणी में रखा गया है जबकि यह सबसे बारीक है और दुनिया में जितने अनाज हैं, उनमें पौष्टिकता की दृष्टि से रामदाना शिखर पर है। *लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*