उरगम घाटी, लक्ष्मण सिंह नेगी। कल्पवीर जोशीमठ चमोली पंच केदार की चतुर्थ केदार रुद्रनाथ में होते हैं भगवान शंकर की मुखारविंद के दर्शन। हिमालय के रुद्र क्षेत्र में 10,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ का मंदिर अत्यंत रमणीक एवं सुंदर है।
हिंदुओं के पंच केदारओं में से एक केदार रुद्रनाथ है जहां पर भगवान शंकर के मुखारविंद की पूजा का विधान है ऊंची हिमालय क्षेत्र में स्थित यह मंदिर एक गुफा में है जहां भगवान शंकर के मुखारविंद तिरछी आकार में है ऐसी मान्यता है कि उस समय सती और भगवान शंकर के साथ रुद्रनाथ में विराजमान थे। ऐसी मान्यता है, उसी समय हरिद्वार के कनखल में दक्ष प्रजापति के यहां हवन किया गया था, किंतु इस कार्यक्रम में राजा दक्ष ने भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। जब देव ऋषि नारद के द्वारा समाचार रुद्रनाथ में माता सती को बताया गया तो उन्होंने भगवान शंकर से कहा कि मैं अपनी मायके जाती हूं। भगवान शंकर ने उन्हें काफी समझाया कि बिना बुलाए हुए मित्र के घर और पिता के घर स्त्री को नहीं जाना चाहिए। विशेष करके जब कोई बड़ा उत्सव हो उस कार्यक्रम में बुलावे पर ही जाना चाहिए। मां सती को शंकर समझाते रहे परंतु उन्होंने एक नहीं मानी। वह अपने शिव गणों के साथ अपने पिता के द्वारा आयोजित यज्ञ में कनखल हरिद्वार पहुंच गए और वहां सभी देवता गण उपस्थित थे, किंतु भगवान शंकर का कोई भी भाग पूजा में नहीं रखा गया था, जिससे नाराज होकर सती ने अपने पिता दक्ष से कहा कि तुमने मेरे पति का भाग इस यज्ञ में नहीं रखा है।
दक्ष ने कटु शब्दों में सती को कहा कि मैं उस शिव का नाम भी नहीं सुन सकता हूं पूजा का भाग तो दूर है। पति का अपमान सती नहीं सह पायी। देवताओं से भी ब्रह्मा विष्णु इंद्र आदि देवताओं से कहा कि इस तरह का अपमान मेरे पति का क्यों किया जा रहा है? जब यहअसहनीय हो गया तो सती ने वही यज्ञ कुंड में अपना शरीर भस्म कर दिया। यह सारी घटनाएं भगवान शंकर को रुद्रनाथ में जब पता चली। और शिव गणों ने यह खबर दिया तो शंकर को बताया भगवान शंकर अत्यधिक क्रोधित हो गये और उन्होंने अपने जटा को खोल दिया जिससे उन्हें वीरभद्र पैदा किया और कहा कि उस दक्ष का सर काट दो और उसका विनाश कर दो। यह सुनकर के शिवगण हरिद्वार गये और उन्होंने वहां शिव के आदेश पर दक्ष का सर काट दिया और वापस कैलाश अर्थात की रुद्रनाथ लौट आये।
ऐसी मान्यता है कि आज भी भगवान शंकर का रुद्रनाथ में रूद्र स्वभाव है। यहां के पुजारी भी कभी.कभी रूद्र स्वभाव में दिखाई देते हैं। भगवान शंकर के यहां गुफा में एक लिंग है जो अत्यधिक सुंदर और डरावना भी लगता है। ऐसा लगता है कि भगवान शंकर बहुत ही क्रोध में होंगे। यहां हर वर्ष मई माह में भगवान शंकर के कपाट विधिवत रूप से खुले जाते हैं। और अक्टूबर में यहां भगवान शंकर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते हैं। मिलों तक फैले हुए बुग्याल यहां पहुंचने वालों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं हैं। यहां कई प्रकार के तीर्थ का वर्णन केदार खंड स्कंद पुराण में किया गया है। यहां सरस्वती कुंड मानस कुंड विष्णु कुंड नारद कुंड सहित कई स्थान हैं। जहां पवित्र एवं तीर्थ के लिए माने जाते हैं। मीलो तक फैले हुई मखमली बुग्गलो का दृश्य यहां आने वाले आनंदित हो जाते हैं। थोड़ी देर इधर.उधर निहारते हुए लोगों की थकान समाप्त हो जाती है यहां रुकने के लिए धर्मशाला एवं टेंट की व्यवस्था हो जाती है यहां गर्म कपड़े ले जाना जरूरी है।
यहां कैसे पहुंचे।
ऋषिकेश से बस कार मोटरसाइकिल साइकिल से यात्रा कर रुद्रनाथ के लिए गोपेश्वर से सागर तक मोटर मार्ग है जो लगभग 230 किलोमीटर के लगभग है रात्रि विश्राम गोपेश्वर मैं कर सकते हैं यह जिला मुख्यालय चमोली है। यहां से 3 किलोमीटर सग्गर गांव से 19 किलोमीटर पैदल की चढ़ाई का रास्ता तय कर पनार पित्र कुड़ी देवदर्शनी होते हुए रुद्र पहुंचा जाता है रास्ते में जगह.जगह पर चाय नाश्ते की दुकान मिल जाती है।
कब यात्रा करें।
मई.जून में यात्रा बहुत ही सुखद रहती है यदि यआपने प्रकृति का आनंद लेना है तो अगस्त सितंबर और अक्टूबर का महा बहुत ही सुंदर रहता है उस समय सुगम यात्रा कर सकते हैं रुद्रनाथ पहुंचने के लिए अन्य मार्ग भी है आप रुद्रनाथ की यात्रा पंच केदार के कल्पेश्वर से भी कर सकते हैं।












