डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के मशहूर लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी का गीत आज भी सामयिक है। यह गीत वर्तमान राजनीतिक
परिदृश्य पर मजाकिया लहजे में गहरी चोट करता है। इसमें चुनावों के दौरान रुपये और शराब बांट कर वोट
बटोरने वाले नेताओं पर निशाना साधा गया है। गाने का लब्बो-लुआब ये है कि एक दल के निशान से चुनाव
लड़ने वाले दल ने व्हिस्की पिलाई और दूसरे के निशान वाले राजनीति दल ने रम पिलाकर आवभगत की। छोटे
दल और निर्दलीय उम्मीदवारों ने कच्ची शराब से ही हमारे वोट खरीदने की कोशिश की। ऐसे चुनाव में तो मजे
ही मजे हैं, दारू भी मिलती है और पैसा भी।प्रदेशभर में निकाय चुनाव के लिए जमकर शराब और मादक पदार्थ
इस्तेमाल किए जा रहे हैं। आबकारी और पुलिस की कार्रवाई से साफ हो रहा कि कोई व्हिस्की पिला रहा, तो
कोई रम, कोई ड्रग्स दे रहा है, तो कोई अन्य मादक पदार्थ।निर्वाचन आयोग के निर्देश पर इस बार सख्त कार्रवाई
हो रही है। अब तक सात करोड़ रुपये से अधिक के मादक पदार्थ और 37 लाख से अधिक की शराब पकड़ी जा
चुकी है। राज्य निर्वाचन आयोग के निर्देश पर पुलिस और आबकारी की टीमें निकाय चुनाव में शराब, पैसे,
मादक पदार्थ की सप्लाई की निगरानी कर रही हैं।आयोग के सचिव ने बताया, अब तक सभी जिलों में 5,975
लीटर शराब पुलिस और 2,749 लीटर शराब आबकारी विभाग पकड़ चुका है। इसी प्रकार पुलिस ने अब तक
216 किलो ड्रग्स व अन्य मादक पदार्थ बरामद किए हैं। यह सभी सामग्री गैर कानूनी तरीके से चुनाव के लिए
लाई गई थी।बताया, अब तक कुल 7,78,09,617 रुपये कीमत के मादक पदार्थ और 37,56,566 रुपये कीमत
की शराब बरामद की जा चुकी है। संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ पुलिस और आबकारी की टीमों ने कार्रवाई की
है। उत्तराखंड में इस बार नगर निकाय चुनाव में सवा पांच लाख वोटर बढ़ गए हैं। वर्ष 2018 में हुए चुनावों में
प्रदेश में मतदाताओं की संख्या 25,36,408 थी। इस बार के चुनाव में यह संख्या बढ़कर 30,63,143 पर पहुंच
गई है। इसमें 14,82,809 महिला और 15,79,789 पुरुष मतदाता है। इनके अलावा 545 अन्य मतदाता भी
शामिलहैं।उत्तराखंड के 11 नगर निगम में 540 पार्षद के पद हैं। प्रदेश के 46 नगर पंचायतों में 298 वार्ड
सदस्य हैं। इसी प्रकार 43 नगर पालिका क्षेत्र में 444 सभासदों का चुनाव होना है। निर्वाचन आयोग की घोषणा
के बाद भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के साथ तमाम राजनीतिक दलों ने चुनाव तैयारियां शुरू कर दी
हैं।दक्ष और संवेदनशील प्रशासन का विकल्प नहीं होता।
लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।