डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
भले की प्रदेश सरकार युवाओं को रोजगार देने की मुनादी करा रही हो, लेककन हकीकत यह है कि युवा सड़कों पर बेरोजगार घूम रहे हैं. प्रदेश में युवाओं को आज आउट सोसस पर नौकरी पाने के लिए भी धक्के खाने पड़ रहे हैं. स्थिकत यह है कक लाखों के प्रोफे शनल कोसस करने और किकियां लेने वाले
युवाओं को 8-10 हजार तक की नौकरी भी नहीं कमल पा रही है. यही नहीं कजस पोस्ट के कलए
क्वाकलकफके शन 10वीं 12वीं रखीं गई है, वहां पर एमएससी और कई कोसस करने वाले युवा आवेदन कर
रहे हैं. 2018 से अब तक मानकनयों के पेंशन, वेतन भत्ों में दो से तीन बार बढोतरी कर दी गई है.
इसको लेकर आलोचनाएं भी शुरू हो गई हैं. तराई से ककसान नेता का कहना है कक काश ऐसा जनता
के बारे में भी सोचा होता. मनरेगा श्रकमकों की आज तक मानदेय नहीं बढाया गया. आंगनबाड़ी,उपनल
से लगे सैकड़ों युवा आज भी न्यूनतम मानदेय पर काम कर रहे हैं. कवधायककका ने कभी उनकी सुध
नहीं ली, लेककन आश्चयसजनक ढंग से चुपचाप अपने वेतन भत्े बढा कदए जा रहे हैं. गणेश उपाध्याय जैसे
कई लोगों का कहना है कक ये पररपाटी अच्छी नहीं है. शायद उत्राखंि अपने पड़ोसी राज्ों में अके ला
ऐसा राज् होगा, जो अपने कवधायकों को इतना अकधक वेतन भत्े दे रहा है. जनवरी 2025 में सुप्रीम
कोटस ने घरेलू कामगारों के व्यापक शोषण और उनके कलए कानूनी सुरक्षा की कमी की ओर ध्यान
आककषसत ककया और कें द्र सरकार को उनके अकधकारों की रक्षा के कलए एक अलग कानून पाररत
करने की संभावना की जााँच करने का आदेश कदया। सुप्रीम कोटस ने कें द्र सरकार को घरेलू कामगारों के
कलए एक अलग कानून बनाने का आदेश कदया। न्यूनतम मजदू री अकधकनयम और समान पाररश्रकमक
अकधकनयम, अन्य श्रम कानूनों के अलावा, घरेलू कामगारों पर लागू नहीं होते हैं। एक अलग कानून
संगकित कवकनयमन की पेशकश कर सकता है। क्ोंकक कोई आकधकाररक ढांचा नहीं है, घरेलू कामगार
अक्सर कबना ककसी कनधासररत वेतन के काम करते हैं और मनमाने व्यवहार के अधीन होते हैं। कनयोक्ता
अपने घरों को “कायसथिल” या खुद को “कनयोक्ता” नहीं मानते हैं, कजससे घरेलू काम मुख्य रूप से
अनौपचाररक और अकनयकमत हो जाता है। चूाँकक उनके काम आकधकाररक रूप से दजस नहीं हैं, इसकलए
श्रकमकों को सामाकजक सुरक्षा या न्यूनतम मज़दू री जैसे बुकनयादी अकधकार नहीं कदए जा सकते हैं। घरेलू
काम में कनयोकजत लोगों में अब मकहलाएाँ सबसे ज़्यादा हैं, कजसे समाज में नारीकृ त और कम आंका
जाता है। कलंग के आधार पर इस असमानता को एक कवशेष कानून द्वारा सम्बोकधत ककया जा सकता है।
सामाकजक अवमूल्यन के कारण, मकहलाओं को अक्सर पुरुषों की तुलना में घरेलू काम के कलए कम
भुगतान ककया जाता है। घरेलू काम की स्थिकतयााँ क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होती हैं। एक प्रकतबद्ध
कानून क्षेत्रीय मुद्ों और समाधानों को ध्यान में रख सकता है। के रल और कदल्ली में कवकनयमों ने कवकभन्न
तरीकों से मज़दू री दरों और रोज़गार पंजीकरण जैसे क्षेत्रीय मुद्ों को सम्बोकधत करने का प्रयास ककया
है। श्रकमकों के अकधकारों को बनाए रखने और उल्लंघन की स्थिकत में कानूनी सहारा देने के कलए स्पष्ट
प्रकियाएाँ एक अलग कानून द्वारा अकनवायस की जा सकती हैं। रोज़गार के दस्तावेज़ों के कबना, घरेलू
कामगारों को अपना वेतन प्राप्त करना मुस्िल हो सकता है, कजसके पररणामस्वरूप शोषण हो सकता
है। कम वेतन के माध्यम से भारत में घरेलू कामगारों का शोषण उनकी चुनौकतयों में से एक है।
घरेलू कामगारों को अक्सर जो कम वेतन कमलता है, वह उनके द्वारा ककए जाने वाले श्रम की मात्रा के
कलए अपयासप्त होता है। न्यूनतम मज़दू री कवकनयमन की अनुपस्थिकत इस समस्या को और भी बदतर
बना देती है। मुंबई के घरेलू कामगारों को लंबे कायसकदवसों के बावजूद अपने बुकनयादी जीवन-यापन के
खचों को पूरा करने में संघषस करना पड़ सकता है, अगर उनका वेतन न्यूनतम वेतन से कम हो जाता
है। उत्पीड़न या अनुकचत व्यवहार से कानूनी सुरक्षा की कमी के कारण, घरेलू कामगार कवशेष रूप से
दुव्यसवहार के कलए अकतसंवेदनशील होते हैं। कदल्ली के कमसचारी को शारीररक या मौस्खक दुव्यसवहार