शंकर सिंह भाटिया
देहरादून। उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश का ख्वाब दिखाने वाले राजनीतिज्ञों की मेहरबानी से इस पर्वतीय राज्य के अपार जल संसाधन इस कदर विवादों में फंस गए हैं कि 30 हजार मेगावाट से अधिक के जल संसाधनों से संपन्न उत्तराखंड राज्य पांच हजार मेगावाट जल विद्युत उत्पादन तक सिमटकर रह गया है। इसकी भरपाई संभावनाओं से भरे सौर ऊर्जा उत्पादन से संभव है, लेकिन डबल इंजन वाली सरकार ने इसे भी बट्टे खाते में डाल दिया है।
जब उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ तो दिल्ली से लेकर देहरादून तक नेताओं ने इसे बिना ऊर्जा उत्पादन के ऊर्जा प्रदेश कहना शुरू कर दिया। दो बड़े राष्ट्रीय राजनीतिक दलों भाजपा-कांग्रेस की खींचतान में उत्तराखंड के जल स्रोत अपनी क्षमता का प्रदर्शन किए बिना आगे बढ़ गए। अब हालात यह हैं कि उत्तराखंड की प्रस्तावित 30 से अधिक बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। छोटी-बड़ी लगाकर विवाद में उलझी सभी परियोजनाओं की संख्या सौ से अधिक है। सरकारी सर्वेक्षण में उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजनाओं से 30 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता आंकी गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस क्षमता को हासिल कर लिया जाता तो उत्तराखंड के लिए किसी और संसाधन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। हालात यह है कि उत्तराखंड वर्तमान में पांच हजार मेगावाट जल विद्युत उत्पादन के आसपास मडरा रहा है। आगे की संभावनाएं लगभग क्षीण हो चुकी हैं।
इस स्थिति में सौर ऊर्जा उत्पादन उत्तराखंड के लिए बरदान साबित हो सकती है। केंद्र और राज्य दोनों में एक ही पार्टी की सरकार होने की वजह से दो साल पहले माना जा रहा था कि सौर ऊर्जा उत्पादन उत्तराखंड में नई ऊंचाइयों को छू जाएगा। इससे उलट पिछले दो सालों में सौर ऊर्जा उत्पादन की संभावनाओं को बहुत बड़ा आघात लगा है। इस संबंध में कुछ आंकड़ों पर नजर डाली जा सकती है।
भारत में दिसंबर 2018 तक 26000 मेगावाट क्षमता के सोलर प्लांट की स्थापना की जा चुकी है, उत्तराखंड में अभी तक 235 मेगावाट सौर ऊर्जा प्लांटों की स्थापना हुई है, जिसमें अधिकांश मैदानी क्षेत्रों में है।
उत्तराखंड में लगभग 20000 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन की क्षमता बताई जा रही है, यदि इसका बेहतर उपयोग किया जा सका तो जल विद्युत उत्पादन में हुए नुकसान की भरपाई सौर ऊर्जा उत्पादन से की जा सकती है। उत्तराखंड में सौर ऊर्जा उत्पादन की संभावनाओं के साथ केंद्र सरकार रूफ टाॅप और स्माल सोलर प्लांट के लिए 70 प्रतिशत अनुदान देती है। यूपीसीएल को हर साल 400-450 मेगावाट बिजली सोलर प्लांट से खरीदना अनिवार्य किया गया है।
इन हालात में पिछले दो सालों में उत्तराखंड में एक भी नया भी नया प्रोजेक्ट नहीं लगा। पिछली राज्य सरकार द्वारा आवंटित किए गए सोलर प्लांट पर भी केंद्र सरकार ने रोक लगा रखी है। केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार होने की वजह से माना जा रहा था कि ये सभी बाधाएं दूर हो सकेंगी। खासकर पर्वतीय क्षेत्र जो उद्योग विहीन हैं, वहां सोलर प्लांट लगाकर उद्योगों की स्थापना की जा सकेगी। लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि सरकार की प्राथमिकता में यह क्षेत्र है ही नहीं। सरकार पर्वतीय क्षेत्र में वहां के मूल निवासियों के लिए पांच मेगावाट तक की क्षमता के सोलर पावर प्लांट लगाने की योजना लेकर आई थी, योजना बनाने वालों को जमीनी ज्ञान न होने की वजह से कई तरह की खामियां उस योजना में हैं, इसके बाद भी न तो उन्हें दूर करने की पहल की गई और न योजना को आगे बढ़ाया गया।