देहरादून। पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही 24 घंटे के अंदर अफसरशाही को एक कड़ा संदेश दिया है। उन्होंने बहुतचर्चित ओमप्रकाश की छुट्टी कर एसएस संधू को उत्तराखंड का नया मुख्य सचिव नियुक्त किया है। अपनी निरंकुशता के लिए कुख्यात उत्तराखंड की नौकरशाही को मुख्यमंत्री का यह कड़ा संदेश है।
4 जुलाई 2021 को मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रिमंडल के साथ पद एवं गोपनीयता की शपथ ली थी। अभी उसके 24 घंटे भी नहीं हुए थे कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नौकरशाही को एक कड़ा संदेश देने की कोशिश की है। सचिवालय के वातानुकूलित कमरों में बैठककर जिस उत्तराखंड की खून पसीने की गाड़ी कमाई ये अफसर उड़ा रहे हैं, उसी के खिलाफ इन्हें षडयंत्र करते हुए देखा गया है। ऐसे ही एक निरंकुश बने अफसर ओमप्रकाश को रास्ता दिखाकर मुख्यमंत्री ने कड़ा संदेश दिया है। माना जा रहा है कि नए मुख्य सचिव के आने के बाद चाहे कुछ ही समय के लिए सही अफसरशाही के कान जरूर खड़े हो जाएंगे। जमीन पर कुछ काम होते हुए जरूर दिखाई देगा।
आश्चर्यजनक यह है कि जिन बहुत सारे कामों के लिए पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हाई कमान ने बाहर का रास्त दिखाया था, उनमें से ज्यादातर के सूत्रधार उनके खास विश्वासपात्र अफसर ओमप्रकाश ही थे। हालांकि हाई कमान ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाने के कोई कारण नहीं बताए, लेकिन जो उत्तराखंड के शासन प्रशासन की थोड़ी सी समझ रखते हैं, उन्हें पता है कि किन-किन कामों को लेकर त्रिवेंद्र रावत को चार साल का कार्यकाल भी पूरा नहीं करने दिया गया। मुख्यमंत्री बदल गया लेकिन इन गलत कामों का राजदार फिर भी बना रहा। तीरथ सिंह रावत की नौकरशाही पर कमजोर पकड़ का यह बहुत बड़ा उदाहरण है कि उन्होंने ऐसे अफसरों को छेड़ा तक नहीं। नए मुख्यमंत्री ने आते ही जिस तरह से इस दुखती रग पर हाथ रखा है, यह उनके तेज तर्रार होने का प्रमाण भर है।
इसका यह मतलब नहीं है कि अब नौकरशाही पर नजर रखने की जरूरत नहीं है। नए मुख्य सचिव की कई विशेषताएं हो सकती है, जिनसे बेहतर तरीके से काम लिया जा सकता है, जो राज्य के हित में होगा, लेकिन मुख्यमंत्री को यह नहीं भूलना चाहिए कि एसएस संधू का यदि पिछला रिकार्ड देखा जाए तो उनका उत्तराखंड के मुकाबले पंजाब प्रेम किसी से छिपा नहीं है। उत्तराखंड की यह दुर्भाग्य है कि चाहे कारण जो भी हो, नेता उत्तराखंड के हैं, लेकिन उन्हें उत्तराखंड से अधिक उत्तर प्रदेश की चिंता होती रही है। यदि किसी राज्य के नेता ऐसे होंगे तो अफसरशाही पर कौन नकेल लगाएगा, यदि वह उत्तराखंड के मुकाबले दूसरे राज्य को अधिक महत्व देते होंगे।