जगदीश कलौनी
10 मार्च, 1971 को पिथौरागढ़ जनपद के सिरालीखेत गाँव में जन्मे महेश चन्द्र पुनेठा उत्तराखण्ड के एक ऐसे चर्चित युवा कवि . लेखक, शिक्षक हैं, जिन्होंने विगत दो दशकों के दौरान हिन्दी साहित्य जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है।
कवि लेखक के रूप में प्रतिष्ठित होने के साथ-साथ उन्होंने उत्तराखण्ड के दूर-दराज इलाकों में अध्यापन कार्य करते हुए, एक प्रबुद्ध व सर्वाधिक सक्रिय शिक्षक के तौर पर न केवल बच्चों के लिए रोचक व भयमुक्त शिक्षा के वातावरण सृजन एवं वैज्ञानिक चेतना के विकास के उद्देश्य से अनेक शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना हेतु पहल कदमी की है, बल्कि छात्र-छात्राओं की रचनात्मकता को बढ़ाने और पढ़ने की आदत को विकसित करने के लिए दीवार पत्रिका एक अभियान का भी संचालन किया है।
यह अभियान आज देश भर में लोकप्रिय हो चुका है और एक हजार से अधिक स्कूलों के विद्यार्थी व शिक्षक इससे लाभान्वित हुए हैं। वे पढ़ने की संस्कृति के विकास के लिए गाँव-गाँव में पुस्तकालय खोलने जैसे अति महत्वपूर्ण अभियान में भी जुटे हुए हैं।
सही शिक्षा की समझ को विकसित करने और उसे व्यावहारिक रूप देने के लिए वे अपने कथाकार व शिक्षक मित्र दिनेश कर्नाटक के साथ पिछले 10 वर्षों से शिक्षा पर केन्द्रित एक विचारवान पत्रिका शैक्षिक दख़ल के सम्पादन प्रकाशन का कार्य जारी रखे हुए हैं। जिसके अब तक 17 अंक निकल चुके हैं।
दो कविता संग्रहों भय अतल में व पंछी बनती मुक्ति की चाह के अलावा शिक्षा से सम्बन्धित उनकी दो अन्य पुस्तकें दीवार पत्रिका और रचनात्मकता व शिक्षा के सवाल छप चुकी हैं।
2018 में प्रकाशित शिक्षा के सवाल मौजूदा शिक्षा और शिक्षा व्यवस्था से जुड़ी अधिकांश समस्याओं का गहराई से विश्लेषण करने एवं उनके समाधान की ओर भी संकेत करने वाली उनकी एक बेहद अर्थवान किताब है, जिसमें अलग-अलग समय में लिखे गए ये 29 छोटे बड़े विविध लेख संकलित किए गए हैं।
शिक्षा में सृजनशीलता का प्रश्न और मौजूदा व्यवस्था, शिक्षा में बदलाव या बदलाव के लिए शिक्षा, समान और सबको शिक्षा का एक मात्र विकल्प सरकारी शिक्षा बाऊचर प्रणाली के खतरे, लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और वैज्ञानिक चेतना के विकास का सवाल शिक्षा की असफलता, बच्चे स्वभावतः वैज्ञानिक अप्रोच लिए होते हैं, आवश्यकता है, शिक्षा को जीवनोन्मुखी बनाने की। बच्चे को फेल करना कोई समाधान नहीं। भयमुक्त वातावरण विचार और वास्तविकता, पाठ्यपुस्तकों के बोझ तले सिसकती रचनात्मकता, नई पाठ्यपुस्तकें और शिक्षक प्रशिक्षणों की गुणवत्ता, आपराधिक प्रवृत्तियाँ, गलत परिवेश का परिणाम, शिक्षण का माध्यम परिवेश की भाषा ही होनी चाहिए। अपने शिक्षण अनुभवों को दर्ज करना भी एक जिम्मेदारी, भाषायी दक्षता के विकास में दीवार . पत्रिका की भूमिका, रचना के बहाने थोड़े से बच्चे और बाकी बच्चे, अपनी भाषा और समान शिक्षा के पक्ष में एक महत्वूवर्ण पहल, रोजगार, प्रशासन और पहचान का सवाल, अनुभव, बच्चों को बस अवसर देने की आवश्यकता है। एक प्रयास जिसकी भ्रूण .हत्या हो गई, शिक्षण को प्रभावशाली बनाती हैं यात्राएँ, डायरी के पन्ने, अखबारी टिप्पणी, राष्ट्रीय सहमति के दस्तावेज की उपेक्षा चिन्ताजनक, सृजनशीलता के विकास में बाल कार्यशालाओं की भूमिका, पहला स्कूल और पहला अध्यापक, पढ़ने की संस्कृति का अभाव, शिक्षक को अपना काम करने दिया जाए, प्राथमिक शिक्षा में गुणवत्ता का सवाल, जिम्मेदार कौन।
शिक्षा के सवाल निश्चित रूप से शिक्षकों के साथ साथ अभिभावकों को भी चिन्तन मनन करने, अनेक प्रचलित अवधारणाओं पर पुनर्विचार करने तथा सम्यक शिक्षा की दिशा में पहलकदमी करने की प्रेरणा देने में सक्षम है।