डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला:
देश को रोशन करने के लिए बनाए गए एशिया के सबसे बड़े बांध टिहरी में अभी न जाने कितने और गांवों की बलि चढ़ेगी। इस प्रश्न का उत्तर न तो शासन-प्रशासन के पास है और न ही टिहरी बांध का निर्माण करने वाली संस्था टीएचडीसी के पास। टिहरी जल विद्युत परियोजना शुरू होने और नई टिहरी में विस्थापितों को बसाये जाने के बाद भी गांवों के उजड़ने का सिलसिला रुका नहीं है। यहां के ग्रामीणों के लिये ना पुनर्वास की व्यवस्था है ना ही किसी तरह के मुआवजे की। टिहरी डैम की झील से सटे गांवों में इस बार फिर दहशत का माहौल बन गया है. बारिश के चलते झील का जलस्तर बढ़ने लगा है, तो गांवों में भूस्खलन और भूधंसाव की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. लोग रात भर सो नहीं पा रहे हैं क्योंकि उनके मकान जर्जर और खतरनाक हो चुके हैं.
17 गांवों के 415 परिवार दहशत के साये में जीने को मजबूर हैं, लगातार अफसरों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन सालों से विस्थापन के नाम पर ग्रामीणों को सिर्फ आश्वासन ही मिल रहे हैं हर साल टिहरी डैम की झील के पानी के उतार चढ़ाव के चलते झील के आसपास के गांवों में भूस्खलन और भूधंसाव लगातार बढ़ रहा है. इस साल फिर लगातार हो रही बारिश से टिहरी डैम की झील का जलस्तर 759.95 मीटर पहुंच गया है, जिससे झील से सटे रामगांव, तिवाड़गांव, उप्पू, भटकंडा, सिराई में भूस्खलन और भूधंसाव हो रहा है. मकानों में दरारें आ गई हैं, तो कई मकान पूरी तरह से टूट चुके हैं. वहीं खेती योग्य भूमि में भी धंसाव के चलते लोग खेती छोड़ने पर मजबूर हैं.
प्रभावित ग्रामीण हर साल मकानों की रिपेयरिंग करवाते हैं, लेकिन एक ही बारिश के बाद फिर वही हाल हो जाता है. कई मकानों में दरारें पड़ चुकी हैं, तो कई जगह फर्श उखड़ चुका है. कई मकान तो ऐसे हैं जो बल्लियों के सहारे टिके हुए हैं. इस पूरी तस्वीर का मतलब यही है कि कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है. स्थानीय लोग कहते हैं कि बरसात में मकान गिरने की चिंता के कारण वो रात भर सो भी नहीं पाते. लोगों का कहना है कि कई बार डीएम से लेकर तमाम अफसरों को शिकायत की जा चुकी है.
पुर्नवास निदेशक का कहना है कि ग्रामीणों को नुकसान से हुए भुगतान की कार्रवाई शुरू कर दी गई है. श्रीवास्तव ने कहा कि संबंधित विभाग से स्वीकृति भी आ चुकी है और लोगों की ज़रूरत पूरी की जा रही है. वहीं आपदा प्रबंधन और पुनर्वास मंत्री ने कहा कि जिस गांव को भी विस्थापन की ज़रूरत होगी, किया जाएगा. इस मामले में बजट की कोई दिक्कत नहीं है, जिस ज़िले से रिपोर्ट आएगी, वहां विस्थापन की कार्रवाई की जाएगी.हर साल की कहानी यही है कि बारिश ज़्यादा हो जाती है तो सैकड़ों परिवार खतरे की ज़द में आ जाते हैं. शासन प्रशासन की सुस्त कार्यप्रणाली ग्रामीणों पर भारी पड़ रही है और किसी भी समय बड़ी दुर्घटना की आशंका लगातार बनी हुई है.
टिहरी बाँध भारत का सबसे ऊचा तथा विशालकाय बाँध है। यह भागीरथी नदी पर बना हुआ है टिहरी बांध दुनिया का आठवा सबसे बड़ा बाँध है जिसका उपयोग हम सिचाई तथा बिजली पैदा करने हेतु कर रहे है। अगर टिहरी बांध की ऊंचाई की बात करें तो यह 260 मीटर ऊंचा है तथा इसकी लंबाई की बात करें तो यह 575 मीटर लंबा है झील का जलस्तर बढ़ने के साथ ही अब सांप और बिच्छू जैसे जहरीले जानवर भी घरों में घुसने लगे हैं। जिससे कई बार हादसे होते होते बचे हैं लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं है और पुर्नवास विभाग निरीक्षण की बात कह रहा है। डैम के बनने के बाद 9 राज्यों को बिजली और पानी मिलने लगा है. लेकिन ये सुविधा पहाड़ी क्षेत्रों में नहीं पहुंच पा रही है.
भूकंप से नुकसान को रोकने के लिए डैम को रॉकफिल बनाया गया. इसमें टिहरी बांध की झील का पानी रोकने के लिए बनी दीवार पूरी तरह से पत्थर और मिट्टी से बनाई गई है. डैम बनने से झील के जल स्तर में लगातार उतार-चढ़ाव होने के कारण आस-पास के गांव आज भी खतरे की जद में हैं. फिलहाल टिहरी बांध परियोजना से अन्य राज्यों को बिजली और पानी दिया जाता है. चूंकि उत्तराखंड उत्तर प्रदेश के पर्वतीय हिस्सों को अलग करके एक पर्वतीय राज्य बनाया गया लेकिन व्यावहारिक तौर पर पर्वतीय प्रदेश की जीवन पद्धति के हिसाब से विकास का आधारभूत ढांचा बनाने के बारे में सिर्फ जुबानी जमा खर्च होता रहा.
असल में अतीत से ही इस संवेदनशील पर्वतीय अंचल की समस्याएं बाकी उत्तर प्रदेश से एकदम जुदा थीं. लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि राज्य बनने के बाद यहां बदला कुछ भी ज्यादा नहीं. देहरादून में राजधानी उत्तर प्रदेश की राजधानी के एक्सटेंशन कांउटर की तरह काम कर रही है. पर्वतीय लोगों की पहचान को संरक्षित करने, रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य और विकास का मॉडल यहां के भौगोलिक परिवेश की तर्ज पर ढालना ही पर्वतीय राज्य के आंदोलन और राज्य बनाने के मकसद की मूल अवधारणा थी. लेकिन सालों में इस राज्य की सरकारों ने इन लक्ष्यों को पाने के लिए कैसे काम किया, पलायन आयोग की रिपोर्ट उसी नाकामी का दस्तावेज है. लेकिन पहाड़ी क्षेत्र आज भी इसके लाभ से अछूते हैं. यहां के लोगों को आज भी इसका कोई लाभ नहीं मिलता रहा है.











