• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar

पहली रक्तहीन क्रांति थी कुली बेगार प्रथा

17/01/22 - Updated on 18/01/22
in उत्तराखंड
Reading Time: 1min read
0
SHARES
377
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला:
कुमाऊँ के बागेश्वर में सरयू-गोमती के संगम पर उत्तरायणी का विशाल मेला लगता था।. इस साल कुमाऊं मंडल के बागेश्वर के शताब्दी वर्ष का ऐतिहासिक उत्तरायणी मेला भी आखिर कोरोना की भेंट चढ़ गया. जिला प्रशासन की ओर से मेले में धार्मिक अनुष्ठान के साथ केवल स्नान और जनेऊ संस्कार की अनुमति दी गई है और मेले की शोभा बढाने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों और व्यापारिक गतिविधियों पर रोक लगा दी गई है इस उत्तरायणी मेले का पौराणिक, धार्मिक व व्यावसायिक महत्व होने के साथ ही ऐतिहासिक महत्व भी है.

बागेश्वर के उत्तरायणी मेला ऐतिहासिक महत्त्व का है. इस दिन सरयू तट पर जनता ने कुली बेगार के खिलाफ आन्दोलन का सूत्रपात किया था. जिसे आज भी याद किया जाता है. इस दिन यहाँ पर पवित्र स्नान करने के साथ-साथ स्थानीय हस्तशिल्प तथा अन्य उत्पादों की खरीद, फ़रोख्त तो की ही जाती है. अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़े व ऐतिहासिक आन्दोलन के कारण यह मेला अपनी विशिष्ट ऐतिहासिक पहचान भी रखता है.स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कुली बेगार प्रथा के खिलाफ शुरू हुए जनांदोलन ने खूब सुर्खियां बटोरी थी।

मकर संक्रांति यानी उत्तरायणी के दिन ही इस कुप्रथा का अंत हुआ था। ब्रिटिशकाल में कुमाऊं कमिश्नरी के अंतर्गत बेगार प्रथा करीब 105 वर्ष तक यानी 1815 से 1921 तक रही। लेकिन इस प्रथा का प्रतिरोध प्रारंभ से ही होता रहा। 1913 के बाद बेगार प्रथा के खिलाफ जनांदोलन ऐसा भड़का कि 1921 में उत्तरायणी के बागेश्वर में कुली कुप्रथा का ही खात्मा कर दिया।उत्तराखंड का समग्र राजनीतिक इतिहास में उल्लेख है कि कमिश्नर ट्रेल ने इस प्रथा को हटाने और खच्चर सेना को विकसित करने का प्रयास किया था,

लेकिन प्रथा समाप्त न की जा सकी। 1840 में ग्रामीणों ने अपने उत्पादों को लोहाघाट छावनी में रख दिया। साथ ही सैनिक सामग्री को ले जाने से भी मना कर दिया। इससे 1844 में तीर्थयात्रियों को सोमेश्वर से अल्मोड़ा के बीच पर्याप्त कुली नहीं मिले। 1850 में जब बिसाड़ पिथौरागढ़ के ग्रामीणों से बेगारी कराई तो उन्होंने विरोध करते हुए खुद को बेगार मुक्त कराया। 1857 में कमिश्नर रैमजे को जेल के कैदियों को इस काम में लगाना पड़ा। कुमाऊं परिषद के काशीपुर अधिवेशन में ही यह निर्णय लिया गया था कि उत्तरायण के मेले में जब पहाड़ के कोने-कोने से जनता एकत्रित होगी तो उनके मध्य बेगार विरोधी प्रचार अधिक सफल होगा। नागपुर कांग्रेस से लौटने के बाद 10 जनवरी 1921 को चिरंजीलाल साह, बद्रीदत्त पांडे, हरगोविंद पंत सहित कुमाऊं परिषद के लगभग 50 कार्यकर्ता बागेश्वर पहुंचे।

12 जनवरी को दो बजे बागेश्वर में जलूस निकला। जुलूस की परिणति विशाल सभा के रूप में हुई, जिसमें 10 हजार से अधिक लोग उपस्थित थे। 13 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन दोपहर एक बजे के आसपास सरयू नदी के किनारे पर आमसभा आयोजित की गई। इसी समय कुछ मालगुजारी अपने गांव के कुली रजिस्टरों को सरयू में डुबो दिया। 14 जनवरी 1921 को बद्रीदत्त पांडे ने अत्यधिक उत्तेजनापूर्ण भाषण देते हुए समीप में स्थित बागनाथ मंदिर की ओर संकेत करते हुए जनता को शपथ लेने का आह्वान किया। सभी लोगों ने एक स्वर में कहा, हम कुली नहीं बनेंगे और कुली रजिस्टर फिर से सरयू में फेंक दिए गए।इसे पहली रक्तहीन क्रांति के नाम से भी संबोधित किया जाता है।

जिस समय बागेश्वर में कुली उतार, कुली बेगार व कुली बर्दायश नामक कुप्रथा को समाप्त करने के लिऐ जनता उत्तेजित थी, उस समय डिप्टी कमिश्नर डायबिल जनता को गोलियों से भून देना चाहता था लेकिन तब कूर्मांचल केसरी बद्रीदत्त पांडे की ललकार और अपनी शक्ति सीमित देखकर डिप्टी कमिश्नर ने गोली चलाने का निर्णय वापस ले लिया। 15 जनवरी, जिस दिन अंग्रेज अधिकारियों को यहां से वापस लौटना था, उन्हें कुली नहीं मिले।अंग्रेज अधिकारी पहाड़ के भ्रमण पर जाते थे, उनके सामान को उठाने के लिए स्थानीय जनता को निश्शुल्क व्यवस्था करनी होती थी।

इसे कुली उतार कहा जाता था। अंग्रेज अधिकारियों के लिए उस दौरान निश्शुल्क काम करना पड़ता था। इसे कुली बेगार कहा जाता था जबकि अंग्रेज अधिकारियों के लिए भोजन व्यवस्था करने वाले को कुली बर्दायश कहा जाता था। बागेश्वर के लोगों ने ब्रिटिश हुकूमत की ओर से थोपी गई कुली बेगार प्रथा का अंत कर दिया था। तब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने प्रभावित होकर इसे रक्तहीन क्रांति का नाम दिया था।बागेश्वर में लगने वाले उत्तरायणी मेले का धार्मिक के साथ ही ऐतिहासिक महत्व भी है। उस दौर में राष्ट्रीय स्तर पर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बड़े आंदोलन की तैयारी चल रही थी। तब पर्वतीय क्षेत्र में आवागमन के साधन नहीं होने के कारण ब्रिटिश सरकार कुली उतार और कुली बेगार जैसी अमानवीय व्यवस्था का सहारा ले रही थी। कुली बेगार आंदोलन को सौ वर्ष पूरे होकर 14 जनवरी 2022 में 101 वर्ष हो जाएंगे।

लेकिन इस बार कोविड की तीसरी लहर के कारण उत्तराणी मेले पर प्रतिबंध है। लेकिन धार्मिक कार्य संचालित होंगे। जिसके लिए बागनाथ मंदिर सजन और संवर गया है। वर्ष 1910 में पहली बार एक किसान ने इस प्रथा के खिलाफ इलाहाबाद न्यायालय में याचिका दायर की। न्यायालय ने बेगार प्रथा को गैर कानूनी प्रथा करार दिया। एड. भोलादत्त, पांडे, कुमांऊ केसरी बद्री दत्त पांडे, विक्टर मोहन जोशी, हरगोविंद पंत, रिटायर्ड डिप्टी कलक्टर बद्रीदत्त जोशी, तारा दत्त गैरोला ने आंदोलन को धार दी थी।

सूर्य के धनु राशि से निकलकर मकर में प्रवेश करने के पर्व मकर संक्रांति को कुमाऊं में घुघुतिया त्यार नाम से जाना जाता है। मकर संक्रांति पर पवित्र नदियों में स्नान करने के साथ दान व पुण्य का महत्व तो है ही, कुमाऊं में मीठे पानी में से गूंथे आटे से विशेष पकवान बनाने का भी चलन है। बागेश्वर से चम्पावत व पिथौरागढ़ जिले की सीमा पर स्थित घाट से होकर बहने वाली सरयू नदी के पार (पिथौरागढ़ व बागेश्वर निवासी) वाले मासांत को यह पर्व मनाते हैं यह आंदोलन स्थानीय उद्यम, संगठन और मुहावरे के साथ सुव्यवस्थित प्रचार और प्रेस की शक्तिशाली भूमिका के कारण सफल हुआ। अल्मोड़ा अखबार, गढ़वाल समाचार, गढ़वाली, पुरुषार्थ, शक्ति जैसे पत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

शक्ति तो आजादी की लड़ाई का मुखपत्र ही बन गया। इसके अधिकांश संपादक जेल गए। वर्ष 2018 में शक्ति ने अपने सौ यशस्वी साल पूरे किए। इस आंदोलन में ग्रामीण असंतोष और प्रतिरोध कस्बाती जागृति और जिम्मेदारी से जुड़ सका। एक ओर इस आंदोलन ने बेगार की प्रथा को सदा के लिए समाप्त कर दिया, वहीं तीन हजार वर्गमील में फैले जंगलों में ग्रामीणों के हक वापस किए गए। जंगलात के बहुत से अन्य अधिकार बहाल हुए। इस आंदोलन में एक ओर कस्बाई पत्रकार, वकील, रिटायर्ड अधिकारी जुड़े थे, दूसरी ओर गांवों से शहर आया या गांवों में सक्रिय रहा वर्ग था। समाज के सरकार परस्त हिस्सों को आंदोलन ने झकझोर दिया था।

जंगलों को राज्य अधिकार में लेने का सिलसिला तो 1860 के बाद ही शुरू हो गया था, जो 1878, 1893 और 1911 के बाद बढ़ता चला गया। जंगलों के बिना पहाड़ों में खेती, पशुपालन, कुटीर उद्योग, वैद्यकी, भवन निर्माण, सांस्कृतिक कार्यकलाप संभव नहीं थे। एक रक्तहीन युद्व की घोषणा जिसमें सम्पूर्ण कुमांउ का स्वर्ग सम्मालित था तथा नेताओं के राष्ट्रीय धरातल पर देखा जाए तो उत्तराखंड को यह श्रेय भी जाता है कि समूचे देश में अंग्रेजों की हुकूमत के विरुद्ध जो आजादी की लड़ाई का पहला बिगुल बजा, उसका निर्भीक नेतृत्व कुमाऊं और गढ़वाल के स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा उत्तराखंड की वादियों में ही किया गया था.

उत्तराखंड के इसी उत्तरायणी के जन आंदोलन से ही गांधी जी को ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ आजादी की लड़ाई के लिए सत्याग्रह की प्रेरणा मिली थी. उत्तराखंड के इतिहास की दृष्टि से भी सन् 2021के उत्तरायणी मेले का यह साल स्वतंत्रता आंदोलन का शताब्दी वर्ष होने के कारण विशेष महत्त्वपूर्ण है.किंतु विडम्बना यह है कि न तो हमारे उत्तराखंड की राज्य सरकार और न केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के इस उत्तरायणी मेले के शताब्दी वर्ष का कोई संज्ञान लिया और न ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी ने,जिसके नेतृत्व में कुली बेगार प्रथा के विरुद्ध यह आंदोलन लड़ा गया था.

एक इतिहासकार का कथन है कि यदि आपको अपनी आजादी की रक्षा करनी है तो अपने स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को सदा याद रखना चाहिए और उन स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित भी करना चाहिए.हमारी उत्तराखंड की सांस्कृतिक संस्थाओं के लिए भी आज उत्तरायणी महज एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में याद है,इसके शताब्दी वर्ष के राष्ट्रीय महत्त्व के प्रति वे उदासीन ही नज़र आते हैं.

आजादी के लिए संघर्ष हेतु इसी राजनैतिक अभियान के तहत कुली बेगार आन्दोलन 14 जनवरी,1921 में बागेश्वर स्थित उत्तरायणी के अवसर पर कुमाऊं केसरी बद्री दत्त पाण्डे की अगुवाई में ब्रिटिश हुकुमत के विरुद्ध हुआ था. क्योंकि इस मेले में कुमाऊं गढ़वाल, नेपाल आदि दूर दराज के इलाकों से भी लोग शरीक होने के लिए आते थे. इस वजह से इस कुली बेगार समाप्ति की मुहिम का प्रभाव सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में ही नहीं बल्कि समूचे देश के स्वतंत्रता आंदोलन पर भी पड़ा. देखते ही देखते इस आंदोलन ने जन आंदोलन का रूप धारण कर लिया.कुमाऊं मण्डल में इस कुप्रथा की कमान बद्रीदत्त पाण्डे जी के हाथ में थी तो वहीं गढ़वाल मण्डल में इसकी कमान अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के हाथों में थी.

इस आन्दोलन की सफलता के कारण अंग्रेज हुक्मरानों को कुली बेगार जैसे काले कानून को वापस लेना पड़ा.इस जन आंदोलन के सफल होने के बाद बद्रीदत्त पाण्डे जी को ‘कुमाऊं केसरी’ और अनुसूया प्रसाद बहुगुणा जी को ‘गढ़ केसरी’ का खिताब जनता द्वारा दिया गया था. उत्तराखंड के जन आंदोलन का यह इतना सशक्त आंदोलन था जिसकी परिणति बाद में सन 1942 में अगस्त की सल्ट क्रांति के रूप में हुई.

नगर के ऐतिहासिक उत्तरायणी मेले पर इस साल भी कोरोना की मार पड़ गई है। इस बार भी उत्तरायणी का मेला नहीं होगा। डीएम ने शासन को कोविड गाइडलाइन को देखते हुए यह फैसला लिया है। मेले में धार्मिक अनुष्ठान होंगे। स्थानीय व्यापारियों और स्थानीय उत्पादकों को ही दुकान लगाने की अनुमति रहेगा। यह पहला मौका है, जब लगातार दूसरे साल उत्तरायणी मेला नहीं होगा। राज्य सरकार ने 2022 के सार्वजनिक अवकाश की सूची का कैलेंडर जारी करते हुए उत्तरायणी मेले पर छुट्टी से इसे अभी वंचित रखा है।

जब की छुट्टी के कैलेंडर में छठ पूजा को जगह दी गई है स्वतंत्र भारत में यह स्थान और अवसर राजनीतिक दलों की बात रखने वाले स्थान के रूप में हुई। हर साल भाजपा, कांग्रेस, उक्रांद समेत तमाम दल उत्तरायणी पर अपना मजमा लगाते रहे हैं और लोगों को यहां से राजनीतिक संदेश देते रहे हैं, लेकिन इस बार बागेश्वर के बगड़ में राजनीतिक मजमा भी नहीं लगेगा. बागेश्वर का उत्तरायणी मेला एक हफ्ते तक चलता है. इस अवसर पर यहां भारी संख्या में लोग स्नान और मेला देखने को पहुंचते हैं. हालांकि, कोविड से जुड़े प्रतिबंधों के चलते यहां रौनक कम होगी.

ShareSendTweet
http://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/02/Video-National-Games-2025-1.mp4
Previous Post

देश रक्षा में उत्तराखंड के जवानों का सानी नहीं, आजादी से अब तक मिले 1343 वीरता पदक

Next Post

नए जिलों का फिर दांव, क्या चुनावी दंगल में छोड़ेगा प्रभाव

Related Posts

उत्तराखंड

द्रौपदीमाला की महक, इसे दो राज्‍यों ने घोषित किया अपना राज्यपुष्प

June 15, 2025
10
उत्तराखंड

श्री बदरीविशाल के क्षेत्र रक्षक श्री घंटाकर्ण महावीर माणा घन्याल मंदिर के कपाट खुले

June 15, 2025
11
उत्तराखंड

हेलीकाप्टर एवं विमान हादसे में दिवंगतों की आत्म शांति हेतु श्री बदरीनाथ – केदारनाथ मंदिर समिति कर्मचारी संघ ने शोक सभा आयोजित की

June 15, 2025
14
उत्तराखंड

ऑल्टो कार दुर्घटनाग्रस्त, दो व्यक्तियों की अकाल मौत

June 15, 2025
8
उत्तराखंड

क्राइम: नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने वाला अभियुक्त दिल्ली से गिरफ्तार

June 15, 2025
113
उत्तराखंड

रुद्रप्रयाग हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त के जांच के आदेश, लापरवाही बरतने वालों के खिलाफ होगी सख्त कार्रवाई

June 15, 2025
7

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    0 shares
    Share 0 Tweet 0

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

द्रौपदीमाला की महक, इसे दो राज्‍यों ने घोषित किया अपना राज्यपुष्प

June 15, 2025

श्री बदरीविशाल के क्षेत्र रक्षक श्री घंटाकर्ण महावीर माणा घन्याल मंदिर के कपाट खुले

June 15, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.