शंकर सिंह भाटिया
कर्नल अजय कोठियाल ने सेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद पौड़ी संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, हालांकि वह किस दल से चुनाव लड़ेंगे, यह बात उन्होंने नहीं कही। लेकिन माना जा रहा था कि वह भाजपा के टिकट से पौड़ी से चुनाव लड़ना चाहते हैं। माना जा रहा था कि भाजपा से टिकट न मिलने की स्थिति में वह कांग्रेस से भी चुनाव लड़ सकते हैं। पौड़ी सीट पर भाजपा ने अपना टिकट लगभग फाइनल कर दिया है। तीरथ सिंह रावत भाजपा के उम्मीदवार होंगे। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी के बेटे मनीष खंडूड़ी को अपनी पार्टी में शामिल कर पौड़ी से लगभग उनका टिकट फाइनल कर दिया है। इस स्थिति में कर्नल कोठियाल अब अपनी घोषणा के अनुसार पौड़ी से लोकसभा चुनाव लड़ते हैं तो या तो वह निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे या फिर माना जा रहा है कि क्षेत्रीय दल उक्रांद से वह चुनाव लड़ सकते हैं। उक्रांद नेतृत्व की अदूरदर्शिता की वजह से राज्य की लड़ाई लड़कर, राज्य प्राप्त करने वाला संघर्षों का हमराही यह दल आज कहीं हासिये पर खड़ा है। उक्रांद में एक भी ऐसा नेता नहीं दिखाई देता, जो इस क्षेत्रीय दल को नई दिशा दे सके। इस स्थिति में प्रदेश के युवाओं को साथ लेकर चल रहे कर्नल अजय कोठियाल यदि उक्रांद से चुनाव लड़ते हैं तो इस क्षेत्रीय दल के पुनरूद्धार की एक आस जगती है।
यह ठीक है कि कर्नल कोठियाल की पहली पसंद भाजपा थी और दूसरी पसंद कांग्रेस। चुनावी राजनीति में जीतने की संभावना पहली पसंद होती है। उत्तराखंड में आज जो ट्रेंड चल पड़ा है, मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होता है, लेकिन यदि कोई ऐसी ताकत सामने आ जाय जो अपने दम पर इन दोनों दलों को चुनौती देने की स्थिति में हो तो नया समीकरण भी बन सकता है। कर्नल कोठियाल के लिए पिछले कई महीनों से सैकड़ों, हजारों युवा काम कर रहे हैं। इन युवाओं की ताकत हालात को कोई दूसरा मोड़ भी दे सकती है। ये हालात भाजपा तथा कांग्रेस के बर्चस्व को तोड़ने वाले भी साबित हो सकते हैं। उक्रांद के लिए यह एक नया जीवन पाने जैसा होगा। इसलिए उक्रांद नेतृत्व की इतना सब खोकर भी आंखें नहीं खुली हैं, तो फिर इस दल को रसातल में जाने से कोई नहीं बचा सकता है। कर्नल अजय कोठियाल की पहली पसंद भाजपा-कांग्रेस भी रहे होंगे, उक्रांद तीसरी पसंद भी रहा होगा, तब भी उनके इस दल से चुनाव लड़ने का लाभ इस क्षेत्रीय दल को ही मिलेगा। अब उक्रांद के घिसे पिटे नेतृत्व को किनारे कर युवाओं के हवाले इस दल को कर देना चाहिए। मुझे अच्छी तरह याद है, 2012 में जब भुवन चंद्र खंडूड़ी ने भाजपा से किनारा कर क्षेत्रीय संगठनों के साथ एक नई राजनीति करने का मन बना लिया था, तब उक्रांद नेतृत्व की तरफ से एक बयान आया था, जिसमें श्री खंडूड़ी से उक्रांद का नेतृत्व संभालने का आग्रह किया गया था। यह उक्रांद नेतृत्व की हार का नतीजा था, जो भाजपा के अंदर 22-24 साल से घिसे नेता के हाथों अपना नेतृत्व सौंपने को तैयार थे। किसी पुराने भाजपाई, कांग्रेसी के बजाय केवल भाजपा में जाने की ख्वाहिश रखने वाले व्यक्ति से क्षेत्रीय राजनीति को एक नई दिशा देने की बेहतर संभावनाएं बनती हैं। यह बात अलग है कि जब भाजपा हाईकमान ने निशंक को हटाकर खंड़ूड़ी को नेतृत्व सौंपा तो उन्होंने अपना इरादा ही बदल दिया।
जहां तक उत्तराखंड के खासकर पहाड़ों के हालात बदतर होते जाने का सवाल है उसके लिए भाजपा-कांग्रेस की सरकारें तो जिम्मेदार हैं ही, उक्रांद नेतृत्व सबसे अधिक जिम्मेदार है। यह तय है कि भाजपा तथा कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के राज में पहाड़ों के हालात बद से बदतर ही होते रहेंगे। साल दर साल ये हालात इस कदर खराब होते चले जाएंगे कि फिर उन्हें कोई भी पटरी पर नहीं ला सकता है। जिस क्षेत्रीय दल की परिकल्पना बीसवीं सदी के अस्सी के दशक में प्रो.डीडी पंत ने की थी, 1980 के वन कानून के खिलाफ संघर्ष हो या फिर 1994 का उत्तराखंड आंदोलन उक्रांद उन अपेक्षाओं पर पूरी तरह खरा उतरा। कांग्रेस के बड़े नेताओं की छत्रछाया में अपना वजूद भूल गए उत्तराखंडियों को उक्रांद ने ही सच्चाई से रू-ब-रू कराया था। उन्हें उत्तराखंड की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार किया था, लेकिन राज्य बनने के बाद इन 18-19 साल में उक्रांद नेतृत्व ने सत्तालोलुपता और बेपैदे के लोटे की तरह भाजपा-कांग्रेस का पिछलग्गू बनने का जो चरित्र दिखाया है, उससे उत्तराखंड के जन मानस में इस क्षेत्रीय दल की विश्वसनीयता मिट्टी में मिल गई है। उक्रांद के खराब परफारमेंस से निराश लोगों ने राज्य में क्षेत्रीय दल के एक अन्य प्रयोग के रूप में रक्षा मोर्चा की तरफ भी आस भरी नजरों से देखा था, लेकिन इस दल का नेतृत्व कर रहे जनरल टीपीएस रावत ने जिस तरह का पलायनवादी चरित्र दिखाया, क्षेत्रीय दलों के प्रति लोगों का रहा सहा विश्वास भी डगमगा गया।
यह तय है कि भाजपा-कांग्रेस के सत्ता में रहते हुए उत्तराखंड के मैदानों में चाहे जितना विकास हो जाए, पहाड़ रसातल की तरफ ही जाना है। पहाड़ों का विकास करना है तो क्षेत्रीय ताकत को ही इस राज्य की सत्ता में आना पड़ेगा। पहाड़ों के लिए काम करने की इच्छा लेकर भाजपा-कांग्रेस से विधायक-सांसद बना कोई व्यक्ति पहाड़ के हालातों को सुधारने में एक रत्ती भी योगदान नहीं कर सकता। वह जनप्रतिनिधि इन दलों के दायरे में इस कदर फंसा दिया जाता है कि वह उससे बाहर ही नहीं निकल सकता है। इसीलिए पहाड़ों को पटरी पर लाने के लिए क्षेत्रीय दल की आवश्यकता महसूस हो रही है। उत्तराखंड में क्षेत्रीय दल की बात आती है तो नजरें उक्रांद पर ही जाकर टिकती हैं। राज्य बनने से पहले इस क्षेत्रीय दल का इतिहास जितना गौरवशाली रहा, राज्य बनने के बाद इसका चरित्र उतना ही ढुलमुल और सत्तालोलुप रहा है। यही वजह है कि उक्रांद के खांटी कार्यकर्ता अब कहीं बिलों में छुप गए हैं। इस दल से किसी भी तरह की आस अब शेष नहीं रह गई है। जनता के सामने उक्रांद नेतृत्व की विश्वसनीयता धूल फांक रही है।
इन हालात में कर्नल कोठियाल के नेतृत्व में युवा इस क्षेत्रीय दल में नई जान फूंक सकते हैं। जिसकी आज महति आवश्यकता है। पहाड़ के लिए काम करने और नई दिशा देने के लिए राजनीति में आने का दावा करने वाले कर्नल कोठियाल जैसे लोगों का दायित्व नहीं है कि वह अपनी जिम्मेदारियों को सही परिप्रेक्ष समझें? भाजपा-कांग्रेस से सांसद बनकर वह कुछ नहीं कर पाएंगे, इन पर्टियों से बने सांसदों ने ऐसा कुछ किया हो, इसका कोई उदाहरण सामने नहीं है। यदि पहाड़ को बचाना है तो यह काम क्षेत्रीय ताकत ही कर सकती है। भाजपा-कांग्रेस की सत्ता पहाड़ के हालात को दिन प्रतिदिन और खराब करते ही चली जाएगी। उन्नीस साल में यह प्रमाणित हो चुका है। इसलिए उक्रांद नेताओं में इस क्षेत्रीय विचारधारा को बचाए रखने के प्रति यदि थोड़ी भी हमदर्दी बची है तो इसी तरह के युवा नेतृत्व को आगे लाना होगा, उनके सामने प्रो.डीडी पंत की थ्योरी को रखकर उन्हें इसी राह पर आगे बढ़ने का अवसर देना होगा। तभी इस पहाड़ को बर्बादी से बचाया जा सकता है। इसलिए उक्रांद नेतृत्व को चाहिए कि वह कर्नल अजय कोठियाल को सम्मानपूर्वक आमंत्रित करे, इस क्षेत्रीय ताकत को नई दिशा देने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपे।