विजयपाल सिंह भंडारी
उत्तराखंड राज्य के लिए जब आन्दोलन चल रहा था तो आन्दोलनकारियों ने कभी सपने में भी ये नहीं सोचा होगा कि जिस राज्य की मांग हम अपने आने वाली अगली पीढियों के सुरक्षित भविष्य के लिए कर रहे है वो राज्य बनने के बाद नेताओं और अधिकारियों का आपसी गठजोड़ बनकर रह जाएगा।
भाजपा सरकार भले ही जीरो टालरेंस का दावा करे, मगर सच्चाई ये है कि उत्तराखंड में कोई भी विभाग भ्रष्टाचार से अछूता नहीं रह गया है। मगर ताजा मामला व्यासी जलविद्युत परियोजना से जुड़ा है।
परियोजना निर्माण में जब पावर हाऊस और सुरंग निर्माण का कार्य शुरू हुआ तो उसके मलबे के लिए हथयारी के पास एक डंपिंग जोन बनाया गया। अब सुरंग और पावर हाऊस का मलबा यहां पर एकत्रित होने लगा। मलबा नीचे यमुना नदी में न जाए, इसके लिए निगम द्वारा 40 लाख रूपये जूट मैटिंग और प्लांटेशन का टेंडर निकाला गया। तर्क ये दिया गया कि अगर ये मलबा यमुना नदी में गया तो डाकपत्थर स्थित निगम के बैराज को बहुत क्षति पहुंचा सकता है। और जब इस मलबे पर जूट मैटिंग और प्लांटेशन का कार्य हो जाएगा तो उसकी जड़ों के सहारे ये मलबा कस जाएगा और यहां पर एक सुन्दर प्लांट भी उग आयेगा।
मगर जब हमने इस बात की पड़ताल की तो हथयारी के इस डंपिंग जोन में जूट मैटिंग और प्लांटेशन के नाम पर कुछ भी दिखाई नहीं दिया। यहां दिखा तो सिर्फ जंगली घास और मलबे में पड़ी बड़ी बड़ी दरारें जो कभी भी आपदा का शिकार हो सकती है और सारा मलबा नीचे यमुना नदी मे जाकर पूरे डाकपत्थर बैराज क्षेत्र को अपने आगोश में ले सकता है।
अब सवाल ये उठता है कि निगम द्वारा जो 40 लाख रूपये इस डंपिंग जोन में खर्च दिखाया गया है, वो गये तो गये कहाँ? क्या अधिकारी और ठेकेदार आपस में मिलकर उसकी बंदरबांट कर गये। सवाल तो ये भी है कि ये विभाग प्रदेश के मुख्यमंत्री स्वयं देख रहे है अगर मुख्यमंत्री से संबंधित विभाग में ही इस कदर भ्रष्टाचार है और बेलगाम नौकरशाही को डर ही नहीं है तो और विभागों का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
कल ही मुख्यमंत्री ने आईएएस अधिकारी रामविलास यादव को भ्रष्टाचार मे लिफ्त होने के कारण सस्पेंड कर दिया है। मगर मुख्यमंत्री अपने इस विभाग की सुध क्यों नहीं ले रहे है? उत्तराखंड जलविद्युत निगम भ्रष्टाचार का हब बनता जा रहा है।
1800 करोड़ रूपये से बनी ये परियोजना पूरी तरह से फेल हो चुकी है। विभाग द्धारा दावा तो 120 मेगावाट बिजली उत्पादन का किया जा रहा था और उसके लिए निगम ने 60-60 मेगावाट की दो टरवाईने भी लगाई हैं, मगर बमुश्किल से हथयारी पावर हाउस में एक टारवाईन ही चल पाती है, वो भी सिर्फ 6 घंटे, क्योंकि उसके बाद सुरंग का जो हैड है, पानी उससे नीचे चला जाता है। जिसके बाद टारवाईन बंद कर टैम में पानी भरने का इंतजार किया जाता है।
जब ये परियोजना बन रही थी तो हम सबने इस परियोजना से पूर्ण प्रभावित लोहारी गांव के रोते बिलखते बूढे, बच्चे, औरतों और मर्दों को देखा था, जो चीखचीख कर ये कह रहे थे कि जल विघुत निगम के अधिकारियों ने हमारे साथ धौखा किया है। ग्रामीणों का आरोप है कि जबसे व्यासी जलविद्युत परियोजना का निर्माण कार्य शुरू हुआ है तबसे लेकर आजतक हमें सरकार द्धारा किश्तों मे 9 बार मुआवजा दिया गया है जितनी जमीन की आवश्यकता निगम को होती थी सरकार उतना मुआवजा हमें पकडा देती थी। जबकि हमनें कहीं बार सरकार से आग्रह किया कि इस परियोजना में जब हम पूर्ण रूप से प्रभावित है तो हमें पूरी जमीन का मुआवजा एकमुश्त दिया जाए और हमारे गांव को कहीं एकसाथ बसाया जाए मगर न सरकार के जिम्मेदार अधिकारियों और न निगम के अधिकारियों ने हमारी एक भी बात सूनी।
जिस कारण आज हमें दर दर की ठोकरें खानी पड़ रही है। अगर सरकार हमें एकमुश्त सारा मुआवजा दे देती तो उस रकम से हम कुछ न कुछ अपने और अपने परिवार के लिए अच्छा कर लेते। अब हमें सरकार की बेरुखी के कारण सरकारी स्कूल में शरण लेकर रहना पड़ रहा है। इस परियोजना में आंशिक रूप से प्रभावित ग्रामीणों का भी कहना है कि जब भी पूरे देश में कहीं इस प्रकार की परियोजना बनती है तो, सरकार द्धारा उस क्षेत्र के आसपास के बच्चों के लिए स्कूल खेल मैदान आदि सबकुछ बनाकर सारी सुविधाएं देती है मगर निगम ने इन सभी सुविधाओं से पूरे क्षेत्र को वंचित रखा। ऊपर से आये दिन निगम के अधिकारियों पर कोई न कोई भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते है।