पृथक राज्य के लिए सर्वाधिक संघर्ष करने वाले पौड़ी के नागरिकों के हिस्से में सिर्फ उपेक्षा और पलायन की त्रासदी ही रही है। गढ़वाल कमिश्नरी पौड़ी में कुल 3 कर्मचारी रह गए हैं। शेष 22 कर्मचारी/ अधिकारी देहरादून कैंप कार्यालय में संबद्ध कर दिए गए हैं। इसी तरह कृषि निदेशालय एवं पलायन आयोग के अध्यक्ष सहित, अधिकांश कर्मचारी देहरादून में डेरा जमाए हुए हैं।
पौड़ी गांव के मूल निवासी और पलायन आयोग के अध्यक्ष डॉ एसएस नेगी चुपचाप अपनी पैतृक संपत्ति बेचकर देहरादून चले आए थे। ऐसी स्थिति में पूर्ववर्ती त्रिवेंद्र सरकार का पौड़ी में कैबिनेट बैठक का आयोजन करना महज कमिश्नरी की मौत का जश्न मनाना ही समझा गया था। निशंक, खंडूरी मुख्यमंत्री सहित आधे दर्जन से अधिक मंत्री होने के बावजूद पौड़ी निवासियों की आम जिंदगी मौत के जश्न के चलते खामोश हो गई है।
जबकि नैनीताल में समाज कल्याण विभाग, महिला डेयरी दुग्ध विकास के साथ ही राज्य प्रशासनिक अकादमी और निदेशालय हल्द्वानी से संचालित हो रहे हैं। पौड़ी की इस उपेक्षा के लिए सभी जनप्रतिनिधि जिम्मेदार हैं। पौड़ी में हाई कोर्ट की बेंच की स्थापना के लिए हमारा अधिवक्ता समाज क्यों नहीं आगे आता है? आखिर किस मनसा और आशा भरी दृष्टि से पहाड़वासी गैरसैंण में ग्रीष्म कालीन राजधानी का सपना देख रहे हैं? 50 वर्षों के बाद भी पौड़ी के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। इस व्यवस्था के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है? यदि जनता जागरूक है, तो उसे आगामी चुनाव में नेताओं से इस प्रश्न का जवाब पूछना ही होगा।
लोकप्रिय मुख्यमंत्री से भी आग्रह है की पौड़ी की इस उपेक्षा का संज्ञान लेते हुए अविलंब इस दिशा में उचित कार्रवाई करने का कष्ट करें।
डॉ योगेश धस्माना