शंकर सिंह भाटिया
सन् 2010 की बात थी, तारीख याद नहीं-
मैं अपनी पुस्तक ‘‘उत्तराखंड के सुलगते सवाल’’ को अंतिम रूप देने के लिए पहाड़ की यात्रा पर निकला था, देहरादून से चलकर मेरा पहला पड़ाव पौड़ी था। पौड़ी सर्किट हाउस में रुका, वहां कई अन्य मित्रों के साथ बी मोहन नेगीजी से भी मुलाकात हुई। मैंने मित्रों से साथ में चलने का प्रस्ताव किया तो बी मोहन नेगी एक दो दिन के लिए अल्मोड़ा तक साथ चलने को तैयार हो गए। अगले दिन हम पौड़ी से चलकर रुद्रप्रयाग पहुंचे।
रुद्रप्रयाग जिले का बर्सू गांव मेरी किताब के मुख पृष्ठ पर है, इस यात्रा में बी मोहन नेगी के साथ बर्सू गांव तक जाना तय हुआ। बर्सू गांव रुद्रप्रयाग टाउन से करीब साढ़े तीन किमी ऊपर चीड़ के जंगलों को पार करते ही आता अपेक्षाकृत इस समतल गांव में कभी 80 परिवार रहते थे। 2009 तक इस गांव में एक परिवार और कुछ नेपाली रहते थे, लेकिन अब यह गांव पूरी तरह से खाली हो चुका था। जब हम गांव में पहुंचे तो वहां नागराज विचरण कर रहे थे। नेगीजी की पारखी नजरों ने इस गांव में घरों के चैखटों तथा तिबारियों पर नक्कासी से उकेरे गए कलाकृतियों को देखा।
वह अपने कैमरे में उनकी फोटो तथा वीडियो बनाने लगे। उन्होंने लकड़ी में उकेरे गए भित्ति चित्रों की बहुत सारी वीडियो बनाई, इस दौरान उन्हें एक बड़े से घर की खोली पर उकेरा गया गणेश का चित्र भी मिल गया, सबसे अधिक वीडियो उन्होंने इसी के बनाए। इतना ही नहीं उन्हें एक खोली में उन्हें गणेश जगह हल जोतते हुए किसान की कलाकृति देगी। उसका भी उन्होंने वीडियो बनाया। यह मकान गांव के किनारे की तरफ था।
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उन्होंने बताया कि वह दौर शायद छुआ-छूत मानने वाला था। तब अनुसूचित जाति के लोगों की खोली पर गणेश के चित्र उकेरे जाने की मनाही थी। खोली पर गणेश की जगह किसान चित्र इसीलिए उकेरा गया होगा। उन्होंने वापसी पर विस्तार से बताया कि किस तरह उत्तराखंडी मांगल गीतों में खोली के गणेश की अराधना की जाती प्रसिद्ध उत्तराखंडी मांगल गीत ‘‘दैणा होया खोली का गणेशा….’’ इसका सबसे सटीक उदाहरण उसके बाद हम गैरसैंण की तरह चल दिए। उस दिन का विश्राम हमें गैरसैंण में ही करना था। बी मोहन नेगी के साथ उत्तराखंड की संस्कृति पर बहुत अधिक चर्चा होती रही। यात्रा में चलते हुए भी और होटल में रात्रि विश्राम करते हुए भी। हालांकि इन चर्चाओं में हुई बहुत सारी बातें अब याद नहीं आ रही हैं। बहुत सारी यादें धूमिल हो गई हैं।
अगले दिन हम रानीखेत होते हुए अल्मोड़ा पहुंचे। उस दिन का रात्रि विश्राम अल्मोड़ा में ही होना था। अल्मोड़ा वन विभाग के विश्राम गृह में हम लोग रुके। बी मोहन नेगीजी के साथ यह सफर दो दिन, दो रात्रि का ही था। लेकिन उत्तराखंड की संस्कृति से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर जो चर्चाएं उनसे इन दिनों में होती रही, वह मेरे लिए काफी ज्ञानवर्धक थी। अगले दिन सुबह उन्हें कर्णप्रयाग होते हुए पौड़ी वापस जाना था।
अपने वाहन से उन्हें सुबह बस अड्डा छोड़ आया। हम तो वापस गेस्ट हाउस आ गए, लेकिन उसके बाद उन्होंने अपने साथ अल्मोड़ा बस अड्डे पर हुई घटना के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि श्रीनगर की तरफ जाने वाली बस माल रोड बस अड्डे पर थोड़ा आगे की तरफ अगले मोड़ पर खड़ी थी। लेकिन एक टैक्सी चालक ने उन्हें बताया कि बस जा चुकी टैक्सी चालक ने उन्हें ग्वालदाम तक ही छोड़ा, वहां से टैक्सी बदलते-बदलते वे श्रीनगर पहुंच पाए। जिसमें काफी वक्त भी लगा और दिक्कत भी हुई। इस बात को लेकर वह काफी आहत और आश्चर्यचकित थे कि उत्तराखंड में भी लोग अब ठगी पर उतर आए हैं। सवारी को सही जानकारी देने के बजाय अपने थोड़े से स्वार्थ के लिए मिसगाइड करते हैं। फिर सवारी को रास्ते में ही छोड़ देते हैं। उन्होंने पौड़ी वापस पहुंचने के बाद अपने साथ घटी इस घटना के बारे में बताया और उसके बाद जब भी उनसे मुलाकात हुई, वे बार-बार इस घटना का उल्लेख करते हुए आश्चर्य जताते रहे। इस घटना ने उनके मर्म को गहरी चोट पहुंचाई थी।
वास्तव में बी मोहन नेगी एक सच्चे इंसान थे, किसी भी पहाड़ी व्यक्ति की तरह। अपने स्वार्थ के लिए इस तरह के लिए ठग लोगों से पाला पड़ा तो उनका आहत होना स्वाभाविक था। उन्हें आश्चर्य इस बात को लेकर हुआ कि अब पहाड़ में भी लोगों को सही रास्ता बताने में लोग कतराने लगे हैं, जबकि पहाड़ में सही रास्ता बताने का पुण्य माना जाता एक सच्चे, नेकदिन इंसान के लिए पहाड़ में ऐसे लोगों का होना किसी अजूबे से कम नहीं था। लेकिन अपनी सच्चाई में मगन नेगीजी को शायद यह पता नहीं था कि पहाड़ में भी अब सच्चे लोग लगातार कम होते जा रहे हैं। दूसरों को ठग कर स्वार्थ सिद्धि करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही