देहरादून। आय से अधिक संपत्ति मामले में आयकर आयुक्त श्वेताभ सुमन पर करीब डेढ़ दशक की जद्दोजहद के बाद मामला नतीजे तक पहुंचा है। नेताओं पर चल रहे इसी तरह के मामले किस तरह भटक रहे हैं, सभी देख रहे हैं। इसीलिए आय से अधिक संपत्ति के मामलों को उनकी मैरिट से देखने के बजाय राजनीतिक चश्मे से देखा जाता रहा है। आयकर आयुक्त जैसे पद तक पहुंचे एक भ्रष्ट व्यक्ति को जेल की सलाखों तक पहुंचाने में सफल रही सीबीआई के लिए यह एक बड़ी सफलता है। जब तक राजनीतिक लोगों के खिलाफ ऐसे मामलों में वस्तुनिष्ठ निर्णय नहीं होते आय से अधिक के मामले हमेशा संदेह के घेरे में ही रहेंगे।
सन् 2000 के बाद का दौर था। राज्य गठन हुआ ही था। श्वेताभ सुमन मीडिया के लिए एक जाना पहचाना चेहरा बन गया। बड़ी-बड़ी आदर्श बातें, मीडिया के लोगों से नजदीकियां, श्वेताभ सुमन की खासियत थी। जबकि वास्तविकता यह है कि आयकर विभाग के अफसर सामान्य तौर पर मीडिया से बहुत नजदीकी नहीं बनाते हैं। हम मेरठ अमर उजाला से देहरादून आए थे, डेस्क पर थे, रिपोर्टिंग करने वाले मित्रों को अक्सर श्वेताभ सुमन के बारे में बात करते हुए सुनते थे और उसकी खबरें में भी खूब छपती थी। जब 2004-05 में सुमन के खिलाफ शिकायत हुई और जांच की प्रक्रिया शुरू हुई तो बहुत सारे लोग यहां तक कि मीडिया के लोग भी इससे सहमत नहीं थे।
अब कोर्ट इस नतीजे पर पहुंची है कि श्वेताभ सुमन ने आठ सालों में आय से 337 प्रतिशत अधिक संपत्ति अर्जित की थी। आंकलन में श्वेताभ सुमन की यह संपत्ति 3.14 करोड़ रुपये सामने आई। यदि जमीनी हकीकत देखी जाए तो 3.14 करोड़ रुपये आय से अधिक अर्जित करना कोई बड़ी बात नहीं है। देहरादून में ही ऐसे नेता तथा अफसरों की संख्या हजारों में होगी, जिन्होंने इतनी या इससे अधिक अघोषित संपत्ति अर्जित की होगी। लेकिन ऐसे अफसरों तथा नेताओं के खिलाफ न तो मामले दर्ज हुए हैं और यदि उन्हें सत्ता का समर्थन हासिल हो तो उनके खिलाफ सच साबित करना संभव ही नहीं है। यदि बड़े स्तर पर देखें तो मुलायम सिंह तथा मायावती जैसे नेताओं पर सिर्फ नकेल कसने के लिए इस तरह के मामले दर्ज किए गए हैं। कौन नहीं जानता कि ऐसे नेताओं ने कितनी अघोषित संपत्ति अर्जित की है, लेकिन उन्हें सजा दिलाने के बजाय सिर्फ काबू में करने के लिए इस कानून का उपयोग केंद्र में सत्ताधारी पार्टियां करती रही हैं।
श्वेताभ सुमन ने भी केंद्रीय वित मंत्री की अनुमति को झुठलाने के लिए कितने पैंतरे चले थे, कभी हाईकोर्ट में तो कभी निचली अदालतों में इस अनुमति को चुनौती देकर मामले को लटकाने के प्रयास किए। इन्हीं करतूतों के खिलाफ नैनीताल हाई कोर्ट ने श्वेताभ सुमन पर एक लाख रुपये का दंड भी लगाया था। अवैध संपत्ति हासिल करने के लिए कितने हथकंडे अपनाए गए थे, कोर्ट में गवाहों के बयानों में बाद सच्चाई सामने आई है। भ्रष्ट अफसरों के मामले में यह एक अच्छा निर्णय आया है, लेकिन जब तक हर भ्रष्ट अफसर और नेता या फिर कोई आम आदमी जो इस तरह की संपत्ति अर्जित करता है, सलाखों के पीछे नहीं पहुंचेगा, तब तक इक्का दुक्का मामलों में हुई सजा का समाज पर बहुत गहरा असर नहीं पड़ने वाला है।