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Uttarakhand Samachar

हथिया नौला का नायाब शिल्प

28/10/20
in उत्तराखंड, चम्पावत
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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में जल की आपूर्ति का परंपरागत साधन नौला रहा है। सदियों तक पेयजल की निर्भरता इसी पर रही है। चम्पावत जिले में ऐतिहासिक कलाकृतियों की कमी नहीं है। यहां के प्राचीन मंदिरों में ऐसी अनेक बेजोड़ कलाकृतियां देखी जा सकती हैं। ऐसी ही एक कलाकृति है एक हथिया नौला। यह नौला अपनी बनावट और शिल्प कला के कारण मंदिर के समान लगता है। नौले को शिल्पकार ने इस तरह से तराशा है कि इसे देखने के बाद कोई भी शिल्पकला और शिल्पकार की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकता। कहा जाता है कि इस नौले को एक हाथ वाले शिल्पकार ने तराशा था। जिला मुख्यालय के पश्चिम में स्थित ढकना गांव से दो किमी दूर यह नौला बनाया गया है। एक हाथ से निर्मित होने के कारण इसका नाम एक हथिया पड़ा।
माना जाता है कि चंद राजाओं का राजमहल व कुमाऊं की स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध बालेश्वर मंदिर का निर्माण करने वाले मिस्त्री जगन्नाथ का एक हाथ चंद शासकों ने कटवा दिया था। ताकि बालेश्वर जैसा निर्माण दोबारा न हो सके। लेकिन एक हाथ कट जाने के बाद भी जगन्नाथ ने अपनी कला को जिंदा रखा और उसने अपनी पुत्री कुमारी कस्तूरी की सहायता से ढ़कना गांव से दो किमी दूर जंगल में पानी के जल स्रोत को नौले का भव्यतम रूप दिया। नौले में लगे पत्थरों पर लोक जीवन के विभिन्न दृश्यों नृतकए वादकए गायक और कामकाजी महिलाओं का सजीव चित्रण किया गया है। यह कला की दृष्टि से कुमाऊं की बेजोड़ कलाकृतियों में से एक है। खास बात यह है कि नौले का निर्माण केवल पत्थरों से किया गया है जिसमें गारे का प्रयोग नहीं हुआ है। इस नौले का संरक्षण पुरातत्व विभाग के पास है। आज भी इस नौले को देखने के लिए स्थानीय लोग और बाहर से आने वाले पर्यटक जाते रहते हैं।
आबादी से दूर होने के कारण इस नौले के पानी को पीने के काम में नहीं लाया जाता लेकिन जंगल में घास व जलौनी लकड़ी लाने वाले लोग और ग्वाले नौले के पानी को पीकर अपनी प्यास बुझाते हैं। एक हथिया नौला जंगल में होने के कारण इसकी उचित देख रेख नहीं हो पा रही है। ग्वाले और जंगल जाने वाले कई लोग इस नौले के पत्थरों के साथ छेड़ छाड़ कर रहे हैं। इसकी छत के कुछ पटाल दुबारा लगाए गए हैं। जिला पर्यटन अधिकारी ने बताया कि एक हथिया नौला चम्पावत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शामिल है। इसके संरक्षण की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग के पास है। पर्यटन विभाग ने इस नौले को अपनी धरोहर में भी शामिल किया है। पर्यटकों को इस नौले के बारे में ऑनलाइन जानकारी भी दी जा रही है ताकि वे इसे देखने के लिए जा सकें। एक हथिया नौला आज भी स्थापत्य कला प्रेमियों के लिये आकर्षण का केन्द्र है। जनश्रुति के अनुसार एक शिल्पी के माध्यम से किसी राजा ने कहीं कोई बेजोड़ रचना बनवाई थी, उस रचना को पुनः कहीं और न बनाया जाये इस कारण शिल्पी के दाएँ हाथ को कटवा दिया गया। शिल्पी द्वारा एक हाथ से ही पुनः उससे अच्छी रचना के रूप में इस नौले का निर्माण किया गया था, यद्यपि यह नौला भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है, लेकिन वीरान जगह होने के कारण इस नौले की दुर्दशा को देखकर दुख होता है।आवश्यकता इस बात की है कि इस जल संचयन परम्परा को पुनर्जीवित करने हेतु गांव समाज की पहल पर चौड़ी पत्ती के पौधों का रोपण व चाल.खाल निर्माण को प्राथमिकता दी जाय।
साथ ही, सरकारी स्तर पर समुचित नीति निर्धारिण के साथ समाजोन्मुखी विकास को केन्द्र में रखकर जल.संरक्षण की ऐसी दीर्घकालिक योजनाओं का क्रियान्वयन किया जाए, जिसमें ग्रामीण व स्थानीय आम लोगों की प्रत्यक्ष भागीदारी सुनिश्चित हो। इस तरह पर्यावरण का सतत विकास तो होगा ही साथ ही सांस्कृतिक विरासत के तौर पर हिमालय की यह पुरातन परम्परा पुनः समृद्धता की ओर कदम बढ़ा सकेगी। नौलों के ह्रास का कारण हमारी भौतिकतावादी संस्कृति है। जहाँ हम विकास के नाम पर भूमिगत पाइप लाइनों को घर के अधिकांश कमरों में जलापूर्ति हेतु लाये हैं। इससे प्रकृति पर हमारी निर्भरता कम कर रही है। अतः नौला जैसी प्राचीन धरोहर जो हमारे जीवन की मूल आवश्यकताओं से जुड़ी है, को संरक्षित करना होगा। यदि समय रहते समाज में इनके प्रति सही सोच पैदा नहीं हुई तो नौला भी अतीत का हिस्सा बन जाएँगे।

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