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पर्वत दिवसः पहाड़ों की जैव विविधता के संरक्षण की जरूरत

11/12/20
in उत्तराखंड, दुनिया
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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
हिमालय पर्वत अपने.अपने क्षेत्रों की जैव विविधता के साथ-साथ संस्कृति, अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने को आवश्यक समर्थन उपलब्ध करवाते हैं। पर्वत दुनिया के कुल भू-क्षेत्र के 27 प्रतिशत पर विद्यमान हैं। वह केवल किसी एक महत्वपूर्ण भूमिका के लिए ही नहीं बल्कि पूरे पृथ्वी ग्रह के पारिस्थिति तंत्र के लिए भी महत्वपूर्ण है। पर्वतों और पहाड़ों के बिना दुनिया अधूरी है, ये पर्वत ही हैं तो हमारी रक्षा भी करते हैं और हमारे मन को खुश भी करते हैं। पर्वतों की खूबसूरती, ऊंचाईयां और हरियाली हर किसी का मन मोह लेती हैं। पर्वतों में बहुत से लोग रहते भी हैं जो यहीं पर काम करके अपना जीवन व्यतीत करते हैं।
हर साल 11 दिसंबर को पूरी दुनिया विश्व अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस के रूप में मनाती है अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस का गठन 1992 में तब हुआ जब एजेंडा 21 के अध्याय 13 के प्रबंधनीय पारिस्थितिक तंत्र सतत पर्वत विकास को पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में अपनाया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2002 को संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय पर्वत वर्ष घोषित किया था और 2003 के 11 दिसंबर से अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस मनाने का संकल्प लिया। अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस का महत्व लोगों को पर्वतों और फ्राकृतिक परिदृश्य को लेकर जागरूक करना है। धीरे.धीरे अब जलवायु और भूमिगत परिवर्तनों के कारण पर्वतों की भूगोलिक स्थिति में परिवर्तन आ रहा है। पर्वतों को काटा जा रहा है और वनों को नष्ट किया जा रहा है। ऐसा करना हमारी आने वाली आबादी के लिए काफी मुश्किल खड़ी कर सकता है। ऐसे में जरूरी है कि लोग पर्वतों के प्रति अपने दायित्वों को समझें।
दुनिया की लगभग 15 प्रतिशत आबादी पहाड़ों में रहती है। हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं कि पहाड़ केवल निवासियों के लिए ही नहीं, बल्कि तराई या लो लैंड्स में रहने वाले लाखों लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। वे दुनिया की प्रमुख नदियों के स्रोत हैं और वाटर साइकिल में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं पहाड़ों के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने, अवसरों पर ध्यान केंद्रित करने और पहाड़ों के विकास पर इस वर्ष के अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस का विषय पर्वतीय जैव विविधता है।
पहाड़ों पर पाई जाने वाली समृद्ध जैव विविधता का जश्न मनाने और उन खतरों का सामना करने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा ये विषय तय किया जाता है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन, निरंतर कृषि प्रथाओं, वाणिज्यिक खनन, लॉगिंग और अवैध शिकार जैसी कई दुर्भाग्यपूर्ण चीजों ने पहाड़ की जैव विविधता पर भारी असर डाला है। इस अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस के विषय का उद्देश्य लोगों को ऐसे कारणों से अवगत कराना है और उन्हें तत्काल प्रभाव से रोकने के लिए कार्रवाई का आह्वान करना है। समृद्ध जैव विविधता और प्राकृतिक परिदृश्य को बचाने के लिए जागरूकता का आह्वान करता है। आबादी और जैव विविधता के अलावा पर्वत मानवता के आधे हिस्से को रोजमर्रा की जिंदगी के लिए ताजा पानी भी प्रदान करते हैं। जलवायु परिवर्तन से पहाड़ पर बसने वाले लोगों का बचना मुश्किल हो गया है। बढ़ते तापमान ने भी पर्वतीय ग्लेशियरों को अभूतपूर्व दरों पर पिघला दिया है जिससे लाखों लोगों के ताजे पानी की आपूर्ति प्रभावित हुई है। वैश्विक स्तर पर ये समस्याएं लगभग सभी को प्रभावित कर रही हैं। इस प्रकार इन प्राकृतिक धरोहरों की देखभाल करना बहुत जरूरी है।
आबादी और जैव विविधता के अलावा पर्वत मानवता के आधे हिस्से को रोजमर्रा की जिंदगी के लिए ताजा पानी भी प्रदान करते हैं। जलवायु परिवर्तन से पहाड़ पर बसने वाले लोगों का बचना मुश्किल हो गया है। बढ़ते तापमान ने भी पर्वतीय ग्लेशियरों को अभूतपूर्व दरों पर पिघला दिया है, जिससे लाखों लोगों के ताजे पानी की आपूर्ति प्रभावित हुई है। वैश्विक स्तर पर ये समस्याएं लगभग सभी को प्रभावित कर रही हैं। इस प्रकार इन प्राकृतिक धरोहरों की देखभाल करना बहुत जरूरी है। विश्वव्यापी महामारी कोविड.19 पर्वत दुनिया के सबसे आकर्षक परिदृश्यों में से कुछ हैं। राजसी हिमालय या अन्य पर्वत श्रृंखलाओं की बर्फ से ढकी चोटियों ने दुनिया भर के पर्वतारोहियों को वर्षों से आकर्षित किया है। पर अंतर्राष्ट्रीय पर्वतीय दिवस, सभी पहाड़ और प्रकृति प्रेमी चर्चा करते हैं और इस बात पर कार्य करते हैं कि कैसे नाजुक पहाड़ी पर्यावरण का संरक्षण किया जाए यह समृद्ध जैव विविधता का जश्न मनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र नामित दिन हैए साथ ही पहाड़ों के खतरों का भी सामना करना पड़ता है।
हिमालयी पट्टी के एक छोर से दूसरे तक कौशल विकासए आर्थिक सशक्तिकरण, धरोहर संभाल, ऊर्जा प्रबंधन, पर्यटन तथा आधारभूत ढांचा विकास रेलवे लाइनें, पुल, सड़कें सहित सरकार की ओर से कई जारी ऐसे में जैव विविधताओं पर संकट मंडरा रहा है। हिमालय और इसकी हिमखंडीय पारस्थितिकी के लिए हम सक्रिय और दीर्घकालिक राजनीतिक एवं अकादमिक अंतर्राष्ट्रीय भागीदारियां भी शुरू कर सकते हैं विषम भूगोल और 71 फीसद वन भूभाग वाला उत्तराखंड तमाम दिक्कतें झेलने के बाद भी पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभा रहा है। इसमें जंगलों का योगदान सबसे ज्यादा है। सरकारी आंकड़ों पर ही नजर दौड़ाएं तो राज्य द्वारा प्रतिवर्ष दी जा रही तीन लाख करोड़ से अधिक की पर्यावरणीय सेवाओं में अकेले वनों का योगदान एक लाख करोड़ रुपये के आसपास है।हालांकिए वनों का संरक्षण उत्तराखंड की परंपरा का हिस्सा हैए लेकिन वन कानूनों की बंदिशें भी कम नहीं हैं। वन कानूनों के कारण सड़क से लेकर पेयजल योजनाओं तक के लिए वन भूमि हस्तांतरण को ऐड़ियां रगड़नी पड़ रही हैं। इसके अलावा वन्यजीवों के खौफ ने जीना दुश्वार किया हुआ है।
राज्य गठन से लेकर अब तक 600 से ज्यादा लोग वन्यजीवों के हमलों में मारे जा चुके हैं, जबकि इसके चार गुना तक घायल हुए हैं। इस सबके मद्देनजर ही उत्तराखंड ग्रीन बोनस की मांग केंद्र से कर रहा है, ताकि क्षति की कुछ भरपाई हो सके। लोगों का बचना हैण्दरअसलए ट्रेकिंग के शौकीनों को अक्सर पहाड़ों पर ट्रेकिंग करने में मज़ा आता है, लेकिन कोविड.19 महामारी के कारण बहुत से ट्रेकर्स घर पर ही अटक गए हैं। हालांकि साल 2020 खत्म होने को है, ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले साल यानी 2021 में हालात सामान्य हो जाएंगे और ट्रेकर्स ट्रेकिंग का आनंद ले सकेंगे हिमालय और इसकी हिमखंडीय पारस्थितिकी के लिए हम सक्रिय और दीर्घकालिक राजनीतिक एवं अकादमिक अंतर्राष्ट्रीय भागीदारियां भी शुरू कर सकते हैं।

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