डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड की धरती पर ऋतुओं के अनुसार कई अनेक पर्व मनाए जाते हैं । यह पर्व हमारी संस्कृति को उजागर करते हैं, वहीं पहाड़ की परंपराओं को भी कायम रखे हुए हैं । इन्हीं खास पर्वो में शामिल सातूं.आठूं उत्तराखंड में एक लोकपर्व है उत्सव, मेले और त्योहारों का मनुष्य के सामाजिक जीवन में अहम् स्थान होता है। वो किसी भी देश, धर्म, सम्प्रदाय में निवास करता हो लेकिन स्वभावतः मनुष्य उत्सव प्रेमी है। विभिन्न प्रकार के धर्म और सम्प्रदायों में विश्वास करते हुए पूरी दुनियां में मनुष्यों ने हजारों प्रकार के उत्सवों का सृजन किया।
कुछ उत्सव खानपान, रहन.सहन के तौर तरीकों के साथ छोटे रूप में पैदा होकर आदमी के विकास के साथ विकसित हुए। कुछ उत्सव किसी घटना विशेष के बाद अस्तित्व में आयें।
कुछ उत्सव मनुष्य की खास जरूरतों के कारण समाज द्वारा रचाये गये। कुछ उत्सव मौसम के बदलते रूप.रंग से उत्पन्न खुशी के कारण जीवन्त हुए। दुनिया के लोगों में धर्म, क्षेत्र, जाति, सम्प्रदाय, रंग आदि के हिसाब से जितनी विविधता है उतनी ही विविधता इनके उत्सवों में भी है।विहंगम हिमालयी भूभाग को शिव की भूमि माना जाता है। अलग.अलग स्थानों में शिव के कई रूपों में पूजा होती है। उनकी अर्धांगिनी पार्वती हैं। शिव और शक्ति के प्रतीक शिवलिंग का यही अर्थ है।
शिव पुरुष के प्रतीक और शक्तिो स्व।रूपा पार्वती प्रकृति की। पुरुष और प्रकृति के बीच यदि संतुलन न होए तो सृष्टि का कोई भी कार्य भलीभांति संपन्न नहीं हो सकता है। संसार के इसी संतुलन को बनाए रखने का पर्व है सातों.आठों। जो उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। खासकर कुमाऊं के पूर्वोत्तर भूभाग में। सातों.आठों पर्व एक तरीके से बेटी की विदाई का जैसा ही समारोह होता है। जिसमें माता गौरी को मायके से अपने पति के साथ ससुराल को विदा किया जाता है। इस अवसर पर गांव वाले भरे मन व नम आंखों से अपनी बेटी गमरा को जमाई राजा महेश्वर के साथ ससुराल की तरफ विदा कर देते हैं। साथ ही साथ अगले वर्ष फिर से गौरा के अपने मायके आने का इंतजार करते हैं।
उत्तराखंड के कुमाऊँ में मनाया जाने वाला सातूं आठूं पर्व एक अनोखा संगम है परम्परा और आस्था का। सातूं.आंठू पिथौरागढ़ की सोर घाटीएबेरीनागए गंगोलीहाट एवम बागेश्वर के कुछ स्थानों में मनाया जाने वाला एक प्रकृति और मानव के अनन्य प्रेम से जुड़ा लोक.पर्व है! वर्षाकालीन इस पर्व में महिलाओ द्वारा अपने सुहाग और संतान के लिए व्रत रखा जाता है। यदि इस पर्व का गंभीर रूप से अध्ययन किया जाय तो पहाड़ की प्रकृति और उसके लोगों के बीच का जीवंत संबन्ध देखने को मिलता है।भादो की पंचमी को गौरा महेश के निमित्त एक पात्र में पंच धान्य खास तौर पर गेहूं, मास, चना, लोबिया, मटर आदि को दूब सहित भिगोए जाते है जिन्हें बिरूड कहते हैं और इन्हें घर के मंदिर में रखा जाता है। सप्तमी के दिन इन बिरुडो से गौरा महेश पूजे जाते हैं। महिलाएं सातू के दिन हाथ में डोर तथा आठू के दिन गले में डुबड़ा पहनती हैं। सातों.आंठु का यह लोकउत्सव भादो माह की सप्तमी और अष्टमी को मनाया जाता है। एकतरह से यह वर्षाकालीन उत्सव है जिसमें महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना के साथ व्रत रखकर शिव पार्वती की उपासना करती हैं। इस उत्सव में गौरा.महेश ;स्थानीयता भाषा में गवरा मैसरद्ध की गाथा गाई जाती है विहंगम हिमालयी भूभाग को शिव की भूमि माना जाता है। अलग.अलग स्थानों में शिव के कई रूपों में पूजा होती है। उनकी अर्धांगिनी पार्वती हैं। शिव और शक्ति के प्रतीक शिवलिंग का यही अर्थ है। शिव पुरुष के प्रतीक और शक्ति स्वधरूपा पार्वती प्रकृति की। पुरुष और प्रकृति के बीच यदि असंतुलन न हो, तो सृष्टि का कोई भी कार्य भलीभांति संपन्न नहीं हो सकता है। संसार के इसी संतुलन को बनाए रखने का पर्व है सातों.आठों। जो उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। खासकर कुमाऊं के पूर्वोत्तर भूभाग में।तीन.चार दिन तक गांव में प्रत्येक शाम को खेल लगाए जाते हैं।जिसमें अनेक तरह के लोकगीत जैसे झोड़े ए झुमटाए चांचरीए छपेली आदि गाए जाते हैं। महिलाएं और पुरुष गोल घेरे में एक दूसरे का हाथ पकड़कर नाचते.गाते हुए इस त्यौहार का आनंद उठाते हैं। और अपने जीवन के लिए व पूरे गांव की सुख समृद्धि व खुशहाली की कामना करते है।
संस्कृति को जन्म देना आसान है लेकिन इसे संरक्षित करना बहुत मुश्किल है। भावनात्मक लगाव के प्रतीक इस त्योहार की मान्यता हैण् सातूं.आठूं की यह परंपरा प्रत्यक्षतः हिमालय के प्रकृति. परिवेश और जनमानस से जुड़ी हैए गौरा महेश्वर की गाथा में हिमालय की अनेकानेक वनस्पतियों. बांजए देवदारए हिंसालूएघिंगारुए नीबूंए ककड़ी और चीड़ सहित अनेक वन लताओं का मनोहर वर्णन आया है। देवभूमि के नाम से प्रचलित हमारा यह राज्य अपने अंदर संजोये हुए है उन तमाम सांस्कृतिक विरासतों को जिनसे हमारी जड़े जुडी हुई हैं। हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड राज्य, घर है।












