योगी के नाम का बेजा इस्तेमाल कर विधायक के सैर.सपाटे का मामला
सबसे पहले कहां से आया यूपी के सीएम का नाम
गर विधायक ने किया इस्तेमाल तो मौन क्यों अफसर
न्यूज वेट ब्यूरो
देहरादून। यूपी के सीएम के नाम का बेजा इस्तेमाल का मामला जब लखनऊ में गूंजा तो अब उत्तराखंड सरकार जांच की बात कर रही है। यह अलग बात है कि अफसरों की चूक की बात करके सरकार मामले को खुद ही हल्का कर रही है। इतना ही नहीं, उत्तराखंड सरकार ने अभी तक जांच अधिकारी भी नामित नहीं किया है। इस पूरे प्रकरण में बड़ा सवाल यह है कि योगी के नाम का इस्तेमाल सबसे पहले कहां से शुरू हुआ।
यूपी के एक विधायक अमनमणि त्रिपाठी और उनके साथियों की सैर.सपाटे के लिए अफसरों ने पहले तो पास जारी करने में बड़ा खेल किया। मामला तूल पकड़ा और यूपी सरकार हरकत में आई तो उत्तराखंड सरकार भी चेती। शासकीय प्रवक्ता इस मामले की जांच की बात तो कर रहे हैं पर इरादा नेक नहीं लग रहा है। अहम बात यह है कि उत्तराखंड सरकार इसे कोई खेल न मानकर महज एक चूक ही साबित करने की कोशिश में हैं। जांच कब और कौन करेगा, इस बारे में भी उत्तराखंड सरकार ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। वैसे भी इस मामले में आरोप शासन के सबसे बड़े दूसरे अफसर ओमप्रकाश पर है। इन्हें मुख्यमंत्री का बेहद नजदीकी माना जाता है। एसीएस इस मामले में पहले ही गेंद देहरादून के डीएम के पाले में डाल चुके हैं। ऐसे में जांच का नतीजा क्या होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है।
इस पूरे मामले में अहम पहलू यह है कि योगी के नाम का इस्तेमाल सबसे पहले किसने किया? क्या विधायक ने योगी जी का नाम लेकर ही पास के लिए पत्र लिखा। अगर ऐसा है तो विधायक के खिलाफ भी एक्शन होना चाहिए। और अगर विधायक ने मौखिक ही योगी जी का नाम लिया तो अपर मुख्य सचिव ने डीएम को लिखे अपने सिफारिशी पत्र में उनके नाम का जिक्र क्यों किया। अगर उत्तराखंड सरकार ने वास्तव में कोई जांच कराई और जांच निष्पक्ष हुई तो कई चेहरों से नकाब उतरेगा।