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Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड में अखरोट उत्पादन की बेहतर संभावनाएं

21/11/19
in उत्तराखंड, जॉब
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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
अखरोट का उद्भव एशिया से माना जाता है, परन्तु विश्व में मुख्य रूप से भारत, मेक्सिको, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, यूक्रेन, इटली, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, श्रीलंका, अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान तथा अरमेनिया में भी इसकी खेती की जाती है। इन देशों में अखरोट की बहुत ज्यादा अनुवांशिक विविधता पायी जाती है। भारत में अखरोट की खेती किसी भी हिमालयी राज्य में व्यवसायिक रूप से तो नहीं की जाती है, ना ही व्यवस्थित रूप से कहीं अखरोट के बागान देखने को मिलते हैं, केवल जम्मू कश्मीर का भारत के कुल अखरोट उत्पादन में 90 प्रतिशत का योगदान है जो कि 2.69 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर जो 83,613 भूमि पर इसका उत्पादन किया जाता है। जबकि उत्तरी पश्चिमी हिमालय के अन्य राज्य सिक्किम, हिमाचल, अरूणाचल, दार्जिलिंग तथा उत्तराखण्ड में भी अखरोट का पारम्परिक उत्पादन किया जाता रहा है। भारत में प्रमुख रूप से काठी अखरोट, मध्य काठी तथा कागजी अखरोट मुख्यतः पाये जाते हैं।
जहाँ तक भारत में उगाये जाने वाली अखरोट की प्रजातियों की बात की जाय तो जम्मू कश्मीर, हिमाचल में विल्सन, गोविन्द, यूरेका तथा उत्तराखण्ड में चकराता सलेक्शन का उगाया जाना साहित्य में वर्णित है। जहां तक अखरोट की वैज्ञानिक विश्लेषण की बात की जाय तो विश्व में मुख्यतः दो ही प्रजातियां पायी जाती हैं, एक पारसियन अखरोट तथा दूसरा काला अखरोट। पारसियन अखरोट का उद्भव पर्सिया से माना जाता है जबकि काला अखरोट का उद्भव पूर्वी उत्तरी अमेरिका से माना जाता है। काला अखरोट स्वाद में तो पारसियन अखरोट से बेहतर पाया जाता है परन्तु कठोर सेल होने की वजह से व्यवसायिक रूप नहीं ले पाया, जबकि एक अन्य प्रजाति रूट स्टॉक के लिये प्रयोग की जाती है, जबकि केवल जम्मू कश्मीर में अखरोट के व्यवसाय से ही 200 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है।
इसी के मध्यनजर उत्तराखण्ड सरकार द्वारा गतवर्ष अखरोट के 4500 पौधे फ्रांस से आयात किये गये, ताकि इस महत्वपूर्ण फल को उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में एक व्यवसाय का रूप दिया जा सकेराज्य में अखरोट की खेती 17564 हेक्टेयर में होती है और उत्पादन है 21170 मीट्रिक टन। अब इसे बढ़ावा देने की दिशा में केंद्र का संबल बड़ा काम करेगा। मिशन हार्टिकल्चर के निदेशक श्रीवास्तव के अनुसार अखरोट की पौध तैयार करने के लिए राज्यभर में ब्रिटिशकाल से चले आ रहे कागजी अखरोट के 70 पेड़ चिह्नित किए गए हैं। राज्य में वर्ष 2007.08 में लाई गई अखरोट की आठ प्रजातियों के सोनीए चौबटियाए मगराए जरमोला व बरौंथा स्थित राजकीय उद्यानों में 2004 पौधे जीवित हैं। इसके अलावा काशीपुर में छह हजार पौधे तैयार हैं और जल्द ही इनकी संख्या 10 हजार हो जाएगी।राज्य में बादाम की खेती को बढ़ावा देने के लिए पहली बार नर्सरी तैयार होगी। इसके लिए जम्मू.कश्मीर से करीब तीन हजार पौधे लाए जाएंगे और इन्हें राज्य में तीन स्थानों पर लगाया जाएगा। जिन्हें जल्द चिह्नित किया जाएगा फिर इनमें से किसी एक जगह नर्सरी स्थापित की जाएगी। केंद्र सरकार ने चार पर्वतीय राज्यों उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल और जम्मू.कश्मीर में अखरोट और बादाम को ग्रामीण आर्थिकी संवारने का अहम जरिया बनाने का निर्णय लिया है।
इस क्रम में इन राज्यों के लिए अखरोट व बादाम की आठ नर्सरियां स्वीकृत की गई हैं, जिनमें से दो उत्तराखंड के हिस्से में आई हैं। अभी तक आपने सूखे मेवे अखरोट की पैदावार में जम्मू कश्मीर को अव्वल पाया गया है लेकिन अब जल्द ही इसमें उत्तराखंड का नाम भी शामिल हो सकता है। सरकार की कोशिशें अगर रंग लाई तो उत्तराखंड अखरोट के उत्पादन में जम्मू कश्मीर को पीछे छोड़ सकता है। इस सिलसिले में इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च की श्रीनगर स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट आफ टेंपरेट हार्टिकल्चर सीआईटीएस और जापान को.ऑपरेशन एजेंसी जायका के बीच एक करार किया गया है। दोनों संस्थानों के बीच 6 साल का करार किया गया है। इस करार के तहत सीआईटीएस प्रदेश को अखरोट के 1 लाख पौधे मुहैया कराएगा। यहां बता दें कि जापान को.ऑपरेशन एजेंसी जायका के सहयोग से चल रही वन संसाधन प्रबंधन परियोजना और सीआईटीएस के बीच तीन करोड़ की परियोजना का करार हुआ है। यही नहीं, जायका की ओर से अखरोट के ग्राफ्टेड प्लांट तैयार करने को इस साल 1500 मातृ पौधे नर्सरी में लगाए गए हैं।
अखरोट उत्तराखण्ड का एक महत्वपूर्ण फल है जो कि केवल मुख्यतः पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता हैंण् अखरोट में मौजूद ओमेगा.3 और 6 फैटी एसिड, 60 प्रतिशत तेल की मात्रा होने की वजह से यह पोष्टिक, औषधीय एवं औद्योगिक रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह ब्लड में कोलेस्ट्रोल का स्तर कम करने के साथ.साथ रक्त वाहनियों की क्रियाओं के सुचारू संचालन तथा मैमोरी बढ़ाने में भी सहायक होता है। वैज्ञानिक तौर पर यह परिवार से सम्बन्ध रखता है तथा हिमालयी राज्यों में 900 से 3000 मीटर तक की ऊँचाई तक पाया जाता है। विश्व भर में जीनस अन्तर्गत लगभग 21 प्रजातियां पायी जाती हैं जिसमें पारसियन अखरोट सबसे ज्यादा व्यवसायिक रूप से उगायी जाती है। पारम्परिक रूप से अखरोट के पौधे के विभिन्न भागों को पारम्परिक रूप से कीटनाशक तथा औषधीय के रूप में प्रयोग किया जाता है जैसे क्रीमी, अतिसार, उदर रोग, अस्थमा, त्वचा रोग तथा थायराईड विकार निवारण के लिय भी प्रयुक्त किया जाता है।
वैज्ञानिक विश्लेषणों के अनुसार अखरोट में ओमेगा 3 व 6 होने की वजह से बेहतर एंटीऑक्सीडेंट क्षमता के साथ रक्त में कालेस्ट्रोल का स्तर कम करने के साथ.साथ इन्फ्लामेशन को भी कम करता है। ओमेगा 3 व 6 फैटी अम्ल के अलावा इसमें लिनोलेइक, पालमेटिक, स्टेरिक तथा मेलोटोनीन एंटीऑक्सीडेंट भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो कि निद्रा रोग निवारण में काफी सहायक होता है। इसी महत्वपूर्ण पोष्टिक एवं औषधीय गुणों की वजह से अखरोट को महत्वपूर्ण पौधों की सूची में सम्मिलित किया है। फूड ड्रग एडमिनिसट्रेशन के अनुसार यदि अखरोट को खाद्य कड़ी में सम्मिलित किया जाय तो यह हृदय विकार को काफी हद तक कम कर देता है। भारत द्वारा वर्ष 2013.14 में 6726.36 मीट्रिक टन का अखरोट निर्यात किया गया जिससे लगभग 324.53 करोड़ का आर्थिक उपार्जन किया गया। एक परिपक्व पेड़ से लगभग 40 से 50 किलोग्राम तक अखरोट प्राप्त किये जा सकते हैं। उत्तराखण्ड प्रदेश की भौगोलिक स्थितिए जलवायु को दृष्टिगत रखते हुये यदि इसकी वैज्ञानिक रूप से व्यवस्थित खेती की जाय तो यह प्रदेश के रेवन्यू में सहायक सिद्ध हो सकता हैण् पहाड़ी जिले पिथौरागढ़ए चमोली ए उत्तरकाशी में पाए जाने वाला फल है अखरोट मानव और वन्य जीवन दोनों के लिए पोषक तत्वों का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। पलायन से वीरान हो के उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना ने खुशहाली लौटाने की बीड़ा उठाई है। इसके लिए इको टास्क फोर्स केजवानों द्वारा इन क्षेत्रों में अखरोट के पौधे रोपित किए जा रहे हैं। शुक्रवार को विकासखंड धारचूला के खेत गांव में 50 हजार अखरोट के पौधे रोपित किए गए।थल सेनाध्यक्ष विपिन रावत की पहल पर गढ़वाल क्षेत्र में चमोली जिले के मलारी व कुमाऊं क्षेत्र में पिथौरागढ़ जिले के दूरस्थ खेत गांव में अखरोट पौधरोपण की योजना बनाई गई है। प्रथम चरण व द्वितीय चरण में मलारी गांव में विगत 24 अक्टूबर को स्वयं थल सेनाध्यक्ष द्वारा अभियान का उद्घाटन किया गया। जिसके तहत मलारी व उसके आसपास के गांवों में इंफैंट्री बटालियन ;टीएद्ध इकोलॉजिकल गढ़वाल राइफल द्वारा निश्शुल्क 50 हजार पौधे रोपित किए गए। द्वितीय चरण में ही शुक्रवार को कुमाऊं क्षेत्र के पिथौरागढ़ जिले धारचूला के खेत गांव में 50 हजार अखरोट के पौधे लगाए गए। अभियान का शुभारंभ कमांडर पंचशूल ब्रिगेड ब्रिगेडियर एसके मंडल सेना मेडल द्वारा किया गया। ब्रिगेडियर ने कहा कि यह अभियान न सिर्फ क्षेत्र की आर्थिकी, बल्कि सामरिक लिहाज से भी महत्वपूर्ण होगा। कुछ सालों से अखरोट की गिरी की मांग भी काफी ज्यादा हुई है। जानकारों के अनुसार फूड कंपनियां गिरी की डिमांड ज्यादा करते हैं और इसके दाम 800 से 1200 रुपए प्रति किलो तक देते हैं। यह नया प्रचलन चला है जो ग्रामीणों को अतिरिक्त आय अच्छा जरिया जाएगा। पर्वतीय क्षेत्रों में अखरोट की अत्याधिक सम्भावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में अखरोट को पोत्साहन दिया जाए। खेती के लिये पोत्साहित करने के लिये पचार.पसार किया जाए।

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