डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
बेर का वैज्ञानिक नाम ज़िज़िफस मौरिशियाना है जो कुछ हद तक खजूर के समान दिखता है और इसलिए दुनिया भर में रेड डेट लाल खजूर, चाइनीज़ डेट, चीनी खजूर, कोरियन डेट, कोरियाई खजूर आदि के रूप में भी जाना जाता है। इस फल का पेड़ छोटा तथा सदाबहार झाड़ी के रूप में होता है, जिसकी ऊंचाई 15 मीटर तक हो सकती है। फल का आकार और इसकी आकृति अस्थायी होती है जो थोड़ा पक जाने पर रसदार हो जाता है जिसमें विशिष्ट सुगंध आने लगती है। इसकी त्वचा चिकनी, चमकदार और पतली होती है। बेर के रंग विभिन्न होते हैं किंतु सूखे बेर ज्यादातर गहरे लाल या बैंगनी रंग के होते हैं। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि इसमें विटामिन सी, ए और बी कॉम्प्लेक्स की मात्रा भरपूर होती है। माना जाता है कि इस प्रजाति की उत्पत्ति दक्षिण.पूर्व एशिया के इंडो.मलेशियाई क्षेत्र में हुई। बेर की फसल आज दक्षिणी अफ्रीका, भारत, चीन, इंडोमलाया, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि देशों में उगायी जाती है।
भारत में बेर उत्पादित करने वाले प्रमुख राज्य हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु हैं। भारत में इस फल की कुछ किस्में अक्टूबर के अंत में पकती हैं जबकि कुछ फरवरी के मध्य से मार्च के मध्य तक या मार्च के मध्य से अप्रैल के अंत तक पकती हैं। उत्तर भारत में बेर के पेड़ों की उपज 80 से 200 किलोग्राम होती है। भारत में बेर की लगभग 125 किस्में पाई जाती हैं जिनमें उमरान, गोला, सीओ, मेहरून, कैथली, कांथा आदि महत्वपूर्ण किस्में शामिल हैं। झरबेर एक कंटीली झाड़ी है, जिसमें बेर जैसे फल लगते हैं। इसे झड़बेर या जंगली बेर भी कहते हैं। इन फल को चाहे तो कच्चा खाया जाता है भारत मै ये सर्दियो की शुरूआत में पक जाता है। झरबेरी के सेवन से मन प्रसन्न होता है। यह आमाशय और दिल को बलवान बनाता है। इसका सुखा हुआ चूर्ण कब्जकारक है, गर्मी की उल्टी और दस्तों में लाभकारी है। रंग झरबेरी का कच्चा फल हरे रंग का, पका फल लाल व पीले रंग का होता है।
उत्तराखंड में जंगली फल न केवल स्वाद, बल्कि सेहत की दृष्टि से भी बेहद अहमियत रखते हैं। बेडू, तिमला, मेलू मेहल, काफल, अमेस, दाड़िम, करौंदा, बेर, जंगली आंवला, खुबानी, हिंसर, किनगोड़, खैणु, तूंग, खड़ीक, भीमल, आमड़ा, कीमू, गूलर, भमोरा, भिनु समेत जंगली फलों की ऐसी सौ से ज्यादा प्रजातियां हैं, जो पहाड़ को प्राकृतिक रूप में संपन्नता प्रदान करती हैं। इन जंगली फलों में विटामिन्स और एंटी ऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। बेर फल का एक प्रकार हैं। कच्चे फल हरे रंग के होते हैं। पकने पर थोड़ा लाल या लाल.हरे रंग के हो जाते हैं। बेर की एक प्रजाति बेर एक ऐसा फलदार पेड़़ है जो कि एक बार पूरक सिंचाई से स्थापित होने के पश्चात वर्षा के पानी पर निर्भर रहकर भी फलोत्पादन कर सकता है।
यह एक बहुवर्षीय व बहुउपयोगी फलदार पेड़ है जिसमें फलों के अतिरिक्त पेड़ के अन्य भागों का भी आर्थिक महत्व है। शुष्क क्षेत्रों में बार.बार अकाल की स्थिति से निपटने के लिए भी बेर की बागवानी अति उपयोगी सिद्ध हो सकती है। इसकी पत्तियाँ पशुओं के लिए पौष्टिक चारा प्रदान करती है जबकि इसमें प्रतिवर्ष अनिवार्य रूप से की जाने वाली कटाई.छंटाई से प्राप्त कांटेदार झाड़ियां खेतों व ढ़ाणियों की रक्षात्मक बाड़ बनाने व भण्डारित चारे की सुरक्षा के लिए उपयोगी है। बेर खेती ऊष्ण व उपोष्ण जलवायु में आसानी से की जा सकती है क्योंकि इसमें कम पानी व सूखे से लड़ने की विशेष क्षमता होती है बेर में वानस्पतिक बढ़वार वर्षा ऋतु के दौरान व फूल वर्षा ऋतु के आखिर में आते है तथा फल वर्षा की भूमिगत नमी के कम होने तथा तापमान बढ़ने से पहले ही पक जाते है। गर्मियों में पौधे सुषुप्तावस्था में प्रवेश कर जाते है व उस समय पत्तियाँ अपने आप ही झड़ जाती है तब पानी की आवश्यकता नहीं के बराबर होती है। इस तरह बेर अधिक तापमान तो सहन कर लेता है लेकिन शीत ऋतु में पड़ने वाले पाले के प्रति अति संवेदनशील होता है। अतः ऐसे क्षेत्रों में जहां नियमित रूप से पाला पड़ने की सम्भावना रहती हैए इसकी खेती नहीं करनी चाहिए। जहां तक मिट्टी का सवाल है, बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जीवांश की मात्रा अधिक हो इसके लिए सर्वोत्तम मानी जाती हैए हालाकि बलुई मिट्टी में भी समुचित मात्रा में देशी खाद का उपयोग करके इसकी खेती की जा सकती है। हल्की क्षारीय व हल्की लवणीय भूमि में भी इसको लगा सकते है। बेर में 300 से भी अधिक किस्में विकसित की जा चुकी है परन्तु सभी किस्में बारानी क्षेत्रों में विशेषकर कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त नहीं है। ऐसे क्षेत्रों के लिए अगेती व मध्यम अवधि में पकने वाली किस्में ज्यादा उपयुक्त पाई गई है।
बेर एक मौसमी फल है। हल्के हरे रंग का यह फल पक जाने के बाद लाल.भूरे रंग का हो जाता हैण् बेर को चीनी खजूर के नाम से भी जाना जाता हैण् चीन में इसका इस्तेमाल कई प्रकार की दवाइयों को बनाने में किया जाता हैण् बेर में बहुत कम मात्रा में कैलोरी होती है लेकिन ये ऊर्जा का एक बहुत अच्छा स्त्रोत हैण् इसमें कई प्रकार के पोषक तत्वए विटामिन और लवण पाए जाते हैंण् इन पोषक तत्वों के साथ ही ये एंटी.ऑक्सीडेंट के गुणों से भी भरपूर होता हैण् रसीले बेर में कैंसर कोशिकाओं को पनपने से रोकने का गुण पाया जाता है अगर आप वजन कम करने के उपाय खोज रहे हैं तो बेर आपके लिए एक अच्छा विकल्प हैण् इसमें कैलोरी न के बराबर होती है बेर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी, विटामिन ए और पोटैशियम पाया जाता है। ये रोग प्रतिरक्षा तंत्र को बेहतर बनाने का काम करता है। बेर एंटी.ऑक्सीडेंट्स का खजाना है। लीवर से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए भी यह एक फायदेमंद विकल्प है। बेर खाने से त्वचा की चमक लंबे समय तक बरकरार रहती है। इसमें एंटी.एजिंग एजेंट भी पाया जाता है। अगर आप कब्ज की समस्या से जूझ रहे हैं तो बेर खाना आपको फायदा पहुंचा सकता है। यह पाचन क्रिया को बेहतर बनाने में मदद करता है। बेर में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम और फास्फोरस पाया जाता है। यह दांतों और हड्डिरयों को मजबूत बनाता है। ठंड के मौसम का एक खास और खट्टा.मीठा फल है बेर। यह फल खाने में जितना अच्छा लगता है, इसके फायदे भी उतने ही होते है। यदि आप ठंड में बेर का सेवन करते हैं तो इस मौसम में होने वाली सेहत समस्या और अन्य कई समस्याओं से निजात भी पा सकते हैं। बेर की पत्तियों में कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, पोटेशियम, सोडियम, क्लोरीन, प्रचुर मात्रा में होता है। यदि आप बेर और नीम के पत्ते पीसकर सिर में लगाएं तो इससे सिर के बाल गिरने कम होते हैं। बेर का जूस पीने से बुखार और फेफड़े संबंधी रोग ठीक होते है। जहां मानव के लिये बेर स्वास्थ्यवर्धक है, वहीं पशुओं के लिये भी यह बहुत उपयोगी है। इसकी पत्तियों में 5.6ः सुपाच्य क्रूड प्रोटीन और 49.7ः कुल सुपाच्य पोषक तत्व होते हैं जिससे यह पशुओं के लिए एक पोषक चारा बन जाता है तथा भेड़ और बकरियों के लिए एक पारंपरिक चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। एक तुलनात्मक अध्ययन में यह देखा गया कि बेर के पत्ते तुलनात्मक रूप से पीपल या पकर के पत्तों से अधिक स्वादिष्ट होते हैं जिसे पशु आसानी से खा सकते हैं।उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि जहां बेर के पत्ते हमारे लिये उपयोगी हैं वहीं पशुओं के पोषण में भी ये अपनी पूरी भूमिका निभाते हैं।भारत में मौजूद माता शरबी को समर्पित मंदिरों में हर साल के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शबरी जयंती मनाई जाती है।
फल हमारे दैनिक आहार का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इनमें पाये जाने वाले पोषक तत्व हमारे शरीर का विकास करते हैं तथा हमारे स्वास्थ्य को उत्तम बनाये रखते हैं। मौसम चाहे कोई भी हो, फलों की आवश्यकता हमारे शरीर को हरदम होती है। बेर भी इन्हीं फलों में से एक है। प्रदेश में उच्च गुणवत्तायुक्त का उत्पादन कर देश.दुनिया में स्थान बनाने के साथ राज्य की आर्थिकी तथा पहाड़ी क्षेत्रों में पलायान को रोकने का अच्छा विकल्प बनाया जा सकता है।