उर्गम घाटी, जोशीमठ। प्रसिद्ध बद्रीनाथ धाम से ठीक 3 किलोमीटर आगे मणिभद्रपुरम माणा गांव जहां पर वेदव्यासजी और गणेशजी ने मिलकर 18 पुराणों की रचना की थी, यही स्थान मणिभद्र पुरम के नाम से जाना जाता है। जहां अलकनंदा की धारा और सरस्वती का मिलन होता है। केशव प्रयाग के रूप में विद्यमान है।
इस गांव में सभी 400 परिवार भोटिया जनजाति के लोग निवास करते हैं। यह लोग कई थोकों में बटे हुए हैं। इसमें परमार वंशज के थोक की कुलदेवी चंडिका है और इस देवी की 22 वर्षों के बाद सांस्कृतिक यात्रा का आयोजन यहां के लोगों के द्वारा किया गया। सबसे पहले गांव में सभी लोग एकत्रित होकर पूजा अर्चना करते हैं। उसके बाद अपने इष्ट देव घंटाकरण से यात्रा की अनुमति मांगते हैं। अत्यधिक वर्षा होने के बाद भी वहां के देवता के आशीर्वचन के बाद यात्रा के लिए चल पड़ते हैं। इस यात्रा में महिलाएं बच्चे बुजुर्ग नौजवान शामिल हुए और विश्वकर्मा घंटाकर्ण के आशीर्वाद के बाद यात्रा गोविंदघाट पहुंचती है। उसके बाद पुलना से पैदल यात्रा जंगल चट्टी भ्यूँडार, खवाण पुल राम, डुँग्गी पहुंचती है। वहां से घाघरिया पहुंचा जाता है। पुलना गांव से 10 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तय कर घांघरिया पहुंचा जाता है। यहां सिखों का गुरुद्वारा और रहने के लिए होटल एम रेस्टोरेंट मिल जाते हैं। यह लोकपाल हेमकुंड साहिब यात्रा का मुख्य पड़ाव है। चारों ओर से हिमालय का दृश्य बड़ा रोमांस भरा रहता है। लक्ष्मण गंगा कीकलकला हट यहां आने वालों को भाव विभोर कर देता है।
यहां फूलों की घाटी से निकलने वाली पुष्पावती नदी लक्ष्मण गंगा का मिलन केंद्र यहीं है। यहां से 3 किलोमीटर फूलों की घाटी हैं यहां से 6 किलोमीटर पैदल लोकपाल पहुंचा जाता है। लोकपाल लक्ष्मण महाराज ने त्रेता युग में घोर तपस्या की थी। यहां पर सरोवर है जो अत्यधिक सुंदर और दिलकश नजारा दिखता है। यहां पर हेमकुंड साहिब का गुरुद्वारा सिख धर्म के अनुयायियों का मानना है कि इस स्थान पर उनके दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह ने तपस्या की थी। लाखों यात्री यहां आकर के गुरुद्वारे में मत्था टेकते हैं और लक्ष्मण मंदिर के दर्शन करते हैं। यात्रा दल के लोगों ने लक्ष्मण मंदिर में पूजा अर्चना की और अपनी पितरों को तर्पण दिया।
विशेष पूजा अर्चना के बाद यहां से यात्री दल वापस घांघरिया को लौट चला। इस यात्रा में 80 साल की बुजुर्ग लोगों ने भी भाग लिया और बच्चों ने भी यात्रा का आनंद लिया। घांघरिया में भ्यूँडारगांव के लोगों के द्वारा रुकने की व्यवस्था की गई थी। अतिथि देवो भव की परिकल्पना साकार करते हुए उन्होंने सभी यात्रियों का आदर सत्कार किया। इस गांव के ग्राम प्रधान शिवराज सिंह चौहान के द्वारा सभी यात्रियों का स्वागत सत्कार किया गया। यहां पर नाश्ता करने के बाद यात्री दल वापस लौट चल पड़ा।
यहां यात्रा पैदल ही करनी पड़ती है। यहां पर साफ सफाई के लिए इको विकास समिति काम करती है साथी नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क की नियंत्रण में यहां पर दुकानें संचालित की जाती हैं। हेमकुंड साहिब के बारे में अधिकतर जगहों पर सूचनाएं मिल जाती है, किंतु लोकपाल एक प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर के साथ लक्ष्मण महाराज का इकलौता मंदिर 15200 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। जहां पर दो संप्रदाय के लोग आकर यात्रा करते हैं। इस मंदिर की स्थिति काफी अच्छी नहीं है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1988 में श्री सतपाल जी महाराज वर्तमान में पर्यटन मंत्री उत्तराखंड सरकार के द्वारा किया गया था। किंतु उसके बाद इस मंदिर में किसी तरह का प्रयास नहीं किया गया है, जबकि यह अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं रोचक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में विद्यमान है। हजारों लोगों को रोजगार का सृजन इस तीर्थ यात्रा से मिलती है। किंतु पर्यटन विभाग का कहीं भी कोई भी बोर्ड सूचना लोकपाल के बारे में जोशीमठ से लेकर लोकपाल तक नहीं मिलता है।
आवश्यकता है कि साझी विरासत का संयुक्त रूप से प्रचार होना चाहिए। घंगारिया के बाद सांस्कृतिक यात्रा देवारे मुनियाँ पहुंचती है और यहां से भ्युडाँर गांव पहुंचती है। यहां पर नंदा देवी के दर्शन होते हैं। कुछ समय रुकने के बाद वापस पुलना गांव पहुंचते हैं। यहां रात्रि विश्राम की व्यवस्था ग्रामीणों के द्वारा की जाती है। यहां देवी मिलन होता है। दूसरे दिन वापस माना गांव के लिए सांस्कृतिक यात्रा पहुंचती है। जगह जगह पर लोगों का हुजूम मिलने के लिए पहुंचता है। आपस में भाईचारा और प्रेम आस्था और विश्वास को जोड़ने का काम करता है।
10 जुलाई से 14 जुलाई तक यह यात्रा चलती रहेगी। गोविंदघाट से माना 12 जुलाई को पहुंची। 13 जुलाई को वसुधारा के भव्य दर्शन, 14 तारीख को भव्य भंडारी के साथ यह यात्रा संपन्न होगी। वसुधारा जहां ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पर्यावरणीय आधार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, वही वेद और पुराणों में भी इस धारा का वर्णन मिलता है। अष्ट वसु में वसुधारा का वर्णन भी निहित है। माना के लोग अपनी खुशहाली के लिए इस तरह के आयोजन करते रहते हैं। इस यात्रा में देव यात्रा के अध्यक्ष रघुवीर सिंह परमार, क्षेत्र प्रमुख जोशीमठ हरीश परमार, जगमोहन सिंह परमार, पूर्व प्रधान लक्ष्मण सिंह नेगी, सरिता परमार सहित 100 से अधिक लोग सम्मिलित रहे। अपनी परंपरागत वेशभूषा में यहां की महिलाएं इस यात्रा में देखी गई उन्होंने जगह.जगह पर लोकगीत का गायन भी किया।
लक्ष्मण सिंह नेगी की रिपोर्ट