देहरादून, 30 जून, 2025. दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से आज सायं दादाभाई नौरोजी के विचारों पर केंद्रित एक व्याख्यान का आयोजन किया गया. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता अनिल नौरिया द्वारा यह व्याख्यान शाम 5:00 बजे दून पुस्तकालय के सभागार में दिया गया. अनिल नौरिया ने जानकारी देते हुए बताया कि दादाभाई नौरोजी को तत्कालीन पंजाब के निवासियों ने प्यार से हिन्द के दादा की उपाधि दी थी. हिंन्द कर दादा सही मायने में राष्ट्रवाद के एक सफल पथ साधक थे. महत्वपूर्ण बात यह है कि यह उनकी आने वाली द्वि-शताब्दी है।
अपने सारगर्भित व्याख्यान में अनिल नौरिया ने कहा दादाभाई नौरोजी (1825-1917) को भारत के ग्रैंड ओल्ड मैन के रूप में जाना जाता था। वे और उनका काम भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले सभी लोगों के लिए प्रेरणास्रोत थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक थे और तीन बार इसके अध्यक्ष रहे- 1886, 1893 और 1906 में। उन्होंने ही 1906 में अपने अध्यक्षीय भाषण में पहली बार स्वराज को राष्ट्रीय लक्ष्य घोषित किया था। वे 19वीं सदी के मध्य में बॉम्बे के एलफिंस्टन इंस्टीट्यूशन में गणित के प्रोफेसर थे, जो भारत में इस तरह के पहले प्रोफेसर थे।
उनके व्यक्तित्व पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वह इंग्लैंड में एक वाणिज्यिक फर्म में भागीदार के रूप में चले गए, लेकिन मूल रूप से वहां से भारतीय हितों को आगे बढ़ाने के लिए। उन्होंने 1867 के बाद से कई लेखों में भारत के प्रति ब्रिटेन की नीतियों की आलोचना की। इन लेखों में उन्होंने भारत में अकाल और गरीबी का कारण कराधान और भारत से धन निकालने की ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों को बताया। वह 1892 में इंग्लैंड के एक निर्वाचन क्षेत्र से ब्रिटिश संसद के लिए चुने गए। उनकी पुस्तक पॉवर्टी एंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया 1901 में प्रकाशित हुई थी। यह पुस्तक भारत में व्यापक रूप से पढ़ी गई और इसने स्वदेशी आंदोलन के साथ-साथ होम रूल और स्वतंत्रता के आंदोलनों को भी प्रभावित किया।
हिन्द के दादा की विविध राजनीतिक गतिविधियों पर वक्तव्य देते हुए अतिल नौरिया ने जानकारी साझा करते हुए बताया कि नौरोजी ने दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी की गतिविधियों में उनका मार्गदर्शन किया। गांधी, जवाहरलाल नेहरू, लाजपत राय, टैगोर और कई अन्य भारतीय राष्ट्रीय हस्तियों पर उनका गहरा प्रभाव था। दादाभाई नौरोजी की विरासत भारत में समाजवादी विचार के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है। नौरोजी ने अगस्त 1904 में एम्स्टर्डम में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस में भाग लिया।
बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि सही मायनों में नौरोजी, जो भारत के सबसे निम्न अल्पसंख्यकों में से एक थे, वे बहुलवादी भारत की अवधारणा के भी प्रतीक भी रहे।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में केन्द्र के प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने उपस्थित लोगों और ककरा अनिल नौरिया का स्वागत किया। कार्यक्रम के अन्त में सामाजिक विचारक बिजू नेगी लोगों ने आज के व्याख्यान के मुख्य बिंदु उपस्थित लोगों के मध्य रखे. उपस्थित लोगों ने इस विषय पर सवाल – जबाब भी किये.
कार्यक्रम में प्रो. सुनील कुमार सक्सेना, नादिर बिल्मोरिया, कर्नल वी के दुग्गल, प्रेम बहुखंडी, हिमांशु आहूजा, हरिओम पाली,अनूप कुमार, अरुण कुमार असफल,जगदीश सिंह महर, सुरेन्द्र सजवान, राकेश कुमार, योगेंद्र सिंह नेगी, विजय कुमार भट्ट,सहित पाठक , लेखक और इतिहास में रूचि रखने वाले व अन्य प्रबुद्ध लोग उपस्थित रहे।