डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
प्रदेश में 2917 बेसिक शिक्षक के पदों पर भर्ती में हो रहा खेल शीर्षक खबर के प्रमुखता से प्रकाशित होने के बाद विभाग ने पड़ताल की तो पता चला कि यूपी से कई लोग डीएलएड करने के बाद उत्तराखंड में सहायक अध्यापक प्राथमिक के पदों पर भर्ती हो गए हैं। सहायक अध्यापक के पद पर भर्ती होने वालों में कुछ लोग हापुड की मोनाड यूनिवर्सिटी से बीएलएड किए हैं। उत्तर प्रदेश की मोनाड यूनिवर्सिटी से कुछ लोग डिग्री-डिप्लोमा लेकर यूपी-बिहार ही नहीं बल्कि उत्तराखंड में भी सरकारी नौकरी पा चुके हैं। जो शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। शिक्षा विभाग ने मामले में जांच के आदेश दिए हैं।आदेश में कहा गया है कि यूपी से डीएलएड कर भर्ती हुए शिक्षकों का 19 दिसंबर 2025 को उप शिक्षा अधिकारी के सामने स्थायी निवास के दस्तावेजों का मिलान किया जाएगा। यूपी एसटीएफ की जांच में हापुड की मोनाड यूनिवर्सिटी से फर्जी डिग्री बनाने का मामला सामने आया था। जांच में यह भी आया कि इस डिग्री-डिप्लोमा के आधार पर महाराष्ट, बिहार और हरियाणा में भी कई लोग नौकरी पा चुके हैं।प्रदेश में 2917 बेसिक शिक्षक के पदों पर भर्ती में हो रहा खेल शीर्षक खबर के प्रमुखता से प्रकाशित होने के बाद विभाग ने पड़ताल की तो पता चला कि यूपी से कई लोग डीएलएड करने के बाद उत्तराखंड में सहायक अध्यापक प्राथमिक के पदों पर भर्ती हो गए हैं। सहायक अध्यापक के पद पर भर्ती होने वालों में कुछ लोग हापुड की मोनाड यूनिवर्सिटी से बीएलएड किए हैं। मोनाड यूनिवर्सिटी से डिग्री और मार्कशीट नौ राज्यों के युवाओं को बेचे जाने के साक्ष्य एसटीएफ काे मिले थे। यूनिवर्सिटी ने यह धंधा कोविड के दौर में ही आरंभ कर दिया था। एसटीएफ की जांच में में सबसे ज्यादा डिग्री बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड उत्तराखंड और महाराष्ट्र के युवाओं को बेचे जाने के साक्ष्य मिले थे। इन राज्यों में एक लाख से ज्यादा डिग्रियां बेची गई हैं। शिक्षा विभाग ने उत्तर प्रदेश से डीएलएड व बीएलएड करने के बाद उत्तराखंड में सहायक अध्यापक प्रारंभिक शिक्षा के पद पर भर्ती हुए 37 शिक्षकों की सूची जारी की है। देहरादून, नैनीताल, हरिद्वार, टिहरी, ऊधमसिंह नगर और बागेश्वर जिले के स्कूलों में तैनात इन शिक्षकों को विभाग ने स्थायी निवास के दस्तावेजों के मिलान के लिए तलब किया है। जिला शिक्षा अधिकारी टिहरी ने जारी आदेश में कहा, अभ्यर्थियों ने उत्तर प्रदेश के स्थायी निवास के आधार पर डीएलएड प्रशिक्षण प्राप्त किया। ऐसे अभ्यर्थियों ने उत्तराखंड के स्थायी निवास के आधार पर सहायक अध्यापक प्राथमिक के पद पर नियुक्ति प्राप्त की। एक अभ्यर्थी एक समय में दो राज्यों का स्थायी निवासी कैसे हो सकता है। इन शिक्षकों ने तथ्यों को छिपाकर प्रशिक्षण प्राप्त कर नौकरी पाई है। यदि ये एक राज्य के स्थायी निवासी सही हैं तो दूसरे राज्य के अवैध माने जाएंगे। यूपी एसटीएफ की जांच में यह बात सामने आई कि मोनाड यूनिवर्सिटी से करीब एक लाख फर्जी डिग्री बनाई गई। इसमें से 200 से ज्यादा लोग विभिन्न राज्यों में सरकारी नौकरी में हैं। विश्वविद्यालय और इससे जुड़े कई कॉलेजों के दफ्तरों, घरों और सर्वरों को खंगाला गया। फर्जी डिग्री घोटाले की जड़ें अब और गहरी होती दिख रही हैं।ईडी की प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि मोनाड यूनिवर्सिटी ने न केवल सामान्य डिग्री, बल्कि मेडिकल, इंजीनियरिंग और एमबीए जैसी प्रोफेशनल डिग्रियां भी फर्जी तरीके से जारी की थीं। इन डिग्रियों की एवज में लाखों रुपये वसूले जा रहे थे। पिछले दिनों यह मामला काफी गरमाया था। अब इस पर एक्शन होता दिख रहा है। आयकर विभाग भी इस अवैध कमाई के अंतिम ठिकाने और निवेश के स्रोतों की तलाश में जुटा है। माना जा रहा है कि फर्जी डिग्री से कमाई गई रकम को रियल एस्टेट और निजी शिक्षण संस्थानों में लगाया गया था। इस बीच, मोनाड यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राओं में अपनी डिग्रियों की वैधता को लेकर चिंता गहरा गई है। शुरुआती जांच में पता चला कि बरामद दस्तावेज फर्जी हैं, क्योंकि इनमें उपयोग किए गए एनरोलमेंट नंबर विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड में नहीं पाए गए. बरामद दस्तावेजों पर विश्वविद्यालय का नाम और डिजिटल हस्ताक्षर तो थे, लेकिन वह भी फर्जी मिले. एसटीएफ की छापेमारी में जब्त किए गए सभी डिजिटल उपकरणों को फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा जाएगा. इससे यह पता चल सकेगा कि फर्जी दस्तावेजों का निर्माण और वितरण कैसे किया जा रहा था? साथ ही इसमें कौन-कौन लोग शामिल थे. इस घोटाले ने उन हजारों छात्रों के भविष्य को खतरे में डाल दिया है, जिन्होंने अपनी मेहनत और पैसे खर्च कर मोनाड विश्वविद्यालय से डिग्रियां हासिल की थीं. X पर कई यूजर्स ने इस मामले पर गुस्सा जाहिर किया है.एक यूजर ने लिखा-हापुड़ में इस विश्वविद्यालय ने हजारों नौजवानों के साथ धोखा किया है. लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी उनकी डिग्रियां अब बेकार हैं.मोनाड विश्वविद्यालय का यह घोटाला शिक्षा व्यवस्था में गहरे भ्रष्टाचार को उजागर करता है. यह उन छात्रों और अभिभावकों के लिए एक चेतावनी है जो बिना जांच-पड़ताल के किसी विश्वविद्यालय में दाखिला लेते हैं. शिक्षा के इस पवित्र क्षेत्र को कुछ लोग मुनाफे का धंधा बना रहे हैं, जिसका खामियाजा मासूम छात्रों को भुगतना पड़ रहा है. STF की कार्रवाई और सरकार की सख्ती से उम्मीद है कि भविष्य में ऐसे फर्जीवाड़ों पर रोक लगेगी. *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*











