सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद निर्वाचन आयोग हरकत में आया है। अपने बयानों से चुनाव का माहौल खराब करने वाले नेताओं के खिलाफ आयोग ने कड़े कदम उठाए हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पूर्व मंत्री आजमखान 72 घंटे तक चुनाव प्रचार नहीं कर पाएंगे, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी पर 48 घंटे की रोक लगाई गई है। योगी और मायावती का समय 16 अप्रैल मंगलवार सुबह 6 बजे से शुरू होता है, जबकि आजम खान और मेनका गांधी इसी दिन सुबह 10 बजे से चुनाव प्रचार नहीं कर पाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई एक जनहित याचिका में आचार संहिता के उल्लंघन का मामला उठाया गया है। इस पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से पूछा है कि आचार संहिता की धज्जियां उड़ाने वाले नेताओं पर क्या कार्यवाही की गई है? इसी के जवाब में आयोग का यह एक्शन सामने आया है। हालांकि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट 16 अप्रैल मंगलावार को फिर से सुनवाई करेगा। कोर्ट के पूछने पर आयोग ने यह एक्शन लिया है, लेकिन आयोग ने कोर्ट में यह कहते हुए अपनी विवशता भी दिखाई है कि उसे इस मामले में बहुत अधिकार प्राप्त नहीं है। वह लगभग दंतहीन है, इसलिए आचार संहिता का खुला उल्लंघन करने वाले नेताओं के खिलाफ वह कोई कड़ा एक्शन नहीं ले पाता है। आयोग ने कहा है कि वह किसी दल की मान्यता नहीं समाप्त कर सकता है और न ही किसी उम्मीदवार को अयोग्य घोषित कर सकता है। यह आयोग का दृष्टिकोण है, जानकारों का कहना है कि अनुच्छेद 324 के अंतर्गत आयोग को पर्याप्त शक्तियां प्राप्त हैं, वह ईमानदारी से उन शक्तियों का प्रयोग करे तो आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों पर सख्त कदम उठाए जा सकते हैं। आयोग की इच्छाशक्ति पर ही सब निर्भर करता है।
गौरतलब है कि 2014 के चुनाव में भी आजम खान और भाजपा के तत्कालीन उत्तर प्रदेश प्रभारी अमित शाह पर रोक लगाई थी। शाह पर से बाद में यह रोक हटा दी गई थी। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के चुनाव प्रचार पर भी आयोग ने रोक लगाई थी, यहां तक कि उनके मतदान के अधिकार को भी बाधित कर दिया था।
चुनाव आयोग के निष्पक्ष निर्णय के बाद भी नेताओं का अहंकार कम नहीं हुआ है और न ही वे अपनी गलती को मानने को तैयार हैं। मायावती ने तो आयोग के इस निर्णय को ही लोकतंत्र विरोधी करार दे दिया है। मायावती का कहना है कि आयोग ने पहले उन्हें जो नोटिस दिया था उसमें भड़काऊ भाषण की बात नहीं कही गई थी। प्रचार पर रोक लगाने के आयोग के निर्णय को मायावती उनके अधिकारों से कू्ररतापूर्वक वंचित करना मानती हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मानना है कि उन्होंने मायावती के मुस्लिम समुदाय को गठबंधन को ही वोट करने की अपील के बाद इस बयान पर प्रतिक्रिया भर दी थी। इसलिए उनका बयान गलत नहीं है। उन्होंने कहा कि उन्होंने धर्म और जाति के आधार पर वोट नहीं मांगे, सिर्फ मायावती के बयान पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। इसलिए यह आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है। आजम खान तो इससे भी आगे निकल गए हैं। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी महिला प्रत्याशी जयप्रदा पर इतना शर्मनाक बयान दिया है कि उस पर न तो बात की जा सकती है और न लिखा जा सकता है, इसके बावजूद वह कहते हैं कि उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया है, यदि वह गलत साबित होते हैं तो चुनाव मैदान से हट जाएंगे। आजम खान के खिलाफ महिला आयोग ने संज्ञान लेकर दो रिपोर्ट दर्ज हुई हैं। आजम खान के इस बयान को सभी अमर्यादित मानते हैं मुलायम सिंह यावद तथा अखिलेश यादव को छोड़कर उनकी पार्टी के नेताओं ने भी इसकी एकमत से भत्सर्ना की है। आयोग इस बयान पर उनके चुनाव प्रचार पर 72 घंटे की रोक लगा चुका है, इससे अधिक उन्हें गलत साबित करने के लिए कोई और अथारिटी आएगी?
निर्वाचन आयोग के इस कड़े कदम के बाद आचार संहिता के दौरान माहौल खराब करने और वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए कुछ भी बोलते रहने वाले नेताओं के बयानों पर रोक लगेगी, ऐसा माना जा रहा है। आयोग के पास जो अधिकार संविधान प्रदत्त हैं, उनका उचित उपयोग किए बिना यदि अधिकारहीन होने का रोना ही आयोग रोता रहेगा तो भारतीय निर्वाचन आयोग की जो टीएन शेषन के काल के बाद इमेज बनी है, उसे समाप्त होने में अधिक समय नहीं लगेगा।