फोटो-लोक संस्कृति के ध्वजवाहक स्व. रामरतन काला फोटो फाइल
कमल बिष्ट।
कोटद्वार। गढ़वाल जनपद के 1990 के दशक के लगभग आकाशवाणी नजीबाबाद से प्रचारित प्रसारित एक गढ़वाली गीत पूरे गढ़वाल में धूम मचा रहा था। मिथै ब्योला बणै दयाओ, खुजै दयाओ ब्योलि, कोटद्वार मानपुर निवासी रामरतन काला का यह गीत आज भी उस दौर के रेडियो श्रोताओं को खूब याद है, लेकिन दुःखद खबर आ रही है कि गढ़वाली गीतों का यह सदाबहार गायक अब इस दुनिया को अलविदा कह गया है।
बीते कुछ सालों से फालिस के चलते उन्हें रंगमंच से दूर होना पड़ा था। आर्थिक दुश्वारियों के चलते पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खण्डूरी ने कुछ आर्थिक सहायता बीमारी के उपचार के लिए दी थी, परन्तु शरीर ढंग से साथ न दे रहा था। आखिर लम्बी बीमारी और कठिन जीवन संघर्ष के बीच यह हरफनमौला व हंसमुख लोक संगीत कलाकार इस नश्वर शरीर को त्यागकर भगवान महेश्वर सदाशिव के धाम को गमन कर गया। शरीर नश्वर है, हर एक मनुष्य भली.भांति जानता है। समय को टाल सकता है। हर किसी को तय समयानुसार जाना है, कोई आगे कोई पीछे लेकिन इस दुनिया में शेष रह जाता है। आपका किया कर्म आपका चरित्र आपका व्यवहार तथा लोग उसी को याद करते हैं। जो अच्छाइयों के मार्ग पर चला हो जिसके व्यवहार में आचरण में लोकहित रहा हो। यह तो पकृति का एक अंग है।
प्रसिद्ध हास्य लोक संस्कृति कलाकार घनानन्द ने बताया कि 1972-73 में स्वर्गीय काला जी के साथ गढ़वाली बोली के लिए कार्य किया था। उनके अंदर छिपी कला की कोई भरपाई नहीं कर सकता। ताउम्र उनकी जगह खाली रहेगी। आज बड़ा ही दुखद पल है।
उन्होंने कहा कि स्वर्गीय रामरतन काला ने लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी के वीडियो गीतों में भी यादगार अभिनय किया। जिसमें नया जमाना का छौरों कन उठि, बौल रौक एण्ड रोल, तेरो मछोई गाड़ बोगिगे, ले खाले अब खा माछा, समदुला का द्वी दिन समलौणा ह्वै गीनि आदि सैकड़ौं गीतों में स्व. रामरतन काला ने बेहतरीन अदाकारी की थी। गढ़वाली गीत संगीत एवं संस्कृति के ध्वजवाहक यह लोक कलाकार खामोशी से इस मृत्युलोक को छोड़कर महाईश्वर के परमधाम को गमन कर सदा के लिए सबको अलविदा कह गया है।












