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आचमन लायक भी नहीं बचा हरिद्वार में गंगाजल

08/12/24
in उत्तराखंड, देहरादून, हरिद्वार
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https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/11/Video-60-sec-UKRajat-jayanti.mp4

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
जल ही जीवन है. ये तो आपने कई बार पढ़ा-सुना होगा. इंसान के जीवित रहने के पीछे जल यानी पानी का सबसे अहम किरदार रहता है. दुनिया में आधा इलाका पानी से ढंका होता है. इसके बावजूद दुनिया में पानी की किल्लत रहती है. इसकी वजह है पीने के पानी की कमी. आधा पानी तो ग्लेशियर्स में जमा है. लेकिन नदी या झीलों का पाने पीने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि, भारत में अधिकांश नदियों का पानी गंदगी की वजह से अब पीने योग्य नहीं रह गया है.करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र मां गंगा का पानी हरिद्वार में आचमन करने लायक भी नहीं है. ये दावा किसी और का नहीं, बल्कि हर महीने गंगा के पानी की गुणवत्ता को लेकर जांच करने वाले उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने किया है. गंगा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नवंबर महीने की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है. हालांकि रिपोर्ट में एक बात ये अच्छी कही गई है कि गंगा का पानी पीने लायक भले ही न हो, लेकिन स्नान करने लायक जरूर है.उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी के अनुसार उन्होंने हरिद्वार के ऊपर और नीचे यानी यूपी बॉर्डर तक करीब आठ जगहों पर गंगा के पानी की हर महीने जांच करती है. जांच का डाटा देखा तो एक बात साफ होती है कि हरिद्वार में गंगा के पानी की क्वालिटी B क्लास की है. क्योंकि हरिद्वार में घुलनशील अपशिष्ट (फेकल कोलीफॉर्म) और घुलनशील ऑक्सीजन (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) का स्तर मानक से अधिक मिला है. नहाने योग्य नदी जल के लिए ऑक्सीजन का मानक पांच मिली ग्राम प्रति लीटर होता है. उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक गंगा में मिलने वाला कॉलीफॉर्म 120 एमपीएन तक है. यानी गंगा का जल नहाने योग्य है, लेकिन पीने योग्य नहीं है. उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एक और बड़ा दावा किया है. उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक गंगा की हालत में पिछले पांच सालों से अंदर काफी सुधार हुआ है. यानी में प्रदूषण बढ़ने के बजाए कम हुआ है.उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी मानें तो पांच साल पहले गंगा में मिलने वाले बैक्टीरिया और एमपीएन की मात्रा 500 से अधिक पहुंच गई थी. इस कारण गंगा का पानी सी क्लॉस में चला गया था. गंगा प्रदूषण मुक्त करने के जो प्रयास किए गए, ये उसी का नतीजा है कि आज गंगा का पानी सी से बी क्लॉस में आ गया है. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पांच साल पहले जो पानी नहाने लायक भी नहीं था, वो पानी इतना तो साफ हो गया है कि आज उसमें स्नान किया जा सके.क्षेत्रीय अधिकारी ने दावा किया है कि उनकी टीम लगातार गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के प्रयास में लगी हुई है. हरिद्वार में जिन जगहों से यह सैंपल लिए गए हैं, उनमें हरकी पौड़ी क्षेत्र के साथ-साथ सप्त ऋषि, रंजीतपुर और सुल्तानपुर के अलावा अन्य स्थान मौजूद हैं. गंगा नदी भारतीय जन-मानस की आस्था का जीवन्त प्रतीक है। भारत में गंगा को मां की उपाधि से नवाजा गया है। धार्मिक महत्‍व के साथ गंगा भारत की सबसे बड़ी नदी है। यह नदी भारत के 11 राज्यों में भारत की आबादी के 40 प्रतिशत लोगों को पानी उपलब्ध कराती है। दूसरे शब्दों में गंगा भारत की जीवनरेखा है। गंगोत्री से अवतरित पावन गंगा आज दिन-प्रतिदिन मैली होती जा रही है। आज यह दुनिया की छठी सबसे प्रदूषित नदी मानी जाती है।केन्द्रीय जल आयोग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार गंगा का पानी तो प्रदूषित हो ही रहा है, साथ ही बहाव भी कम होता जा रहा है। यदि यही स्थिति रही तो गंगा में पानी की मात्रा बहुत कम व प्रदूषित हो जाएगी। गंगा के घटते जलस्तर से सभी परेशान हैं। गंगा नदी में ऑक्सीजन की मात्रा भी सामान्य से कम हो गई है। वैज्ञानिक मानते हैं कि गंगा जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीवों को समाप्त कर देते हैं किन्तु प्रदूषण के चलते इन लाभदायक विषाणुओं की संख्या में भी काफी कमी आई है। इसके अतिरिक्त गंगा को निर्मल व स्वच्छ बनाने में सक्रिय भूमिका अदा कर रहे कछुए, मछलियाँ एवं अन्य जल-जीव समाप्ति की कगार पर हैं। गंगा के जल में आर्सेनिक, फ्लोराइड एवं क्रोमियम जैसे जहरीले तत्व बड़ी मात्रा में मिलने लगे हैं, जोकि चिंता का विषय है। पर्यावरणविदों एवं वैज्ञानिकों के अनुसार जब तक गन्दे नालों का पानी, औद्योगिक अपशिष्ट, प्लास्टिक कचरा, सीवेज, घरेलू कूड़ा-करकट पदार्थ आदि गंगा में गिरते रहेंगे, तब तक गंगा का साफ रहना मुश्किल है।दरअसल, करीब पांच साल पहले जब गंगा जल की मॉनिटरिंग शुरू हुई थी, उस समय यहां गंगा जल में मिलने वाले बैक्टीरिया और एमपीएन की मात्रा 500 से अधिक थी. उस समय गंगा का पानी को सी कैटेगरी में रखते हुए कहा गया था कि यह नहाने लायक भी नहीं है. हालांकि बीते 5 वर्षों में हुए प्रयासों की वजह से गंगा जल के स्तर में काफी सुधार हुआ है और आज गंगा जल सुधर कर बी कैटेगरी में अपना स्थान बनाने में सफल रहा है. करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र मां गंगा का पानी हरिद्वार में आचमन करने लायक भी नहीं है. ये दावा किसी और का नहीं, बल्कि हर महीने गंगा के पानी की गुणवत्ता को लेकर जांच करने वाले उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने किया है. गंगा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नवंबर महीने की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है. हालांकि रिपोर्ट में एक बात ये अच्छी कही गई है कि गंगा का पानी पीने लायक भले ही न हो, लेकिन स्नान करने लायक जरूर है. गए।।लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

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