• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar

जटामांसी बहु उपयोगी, गुणकारी औषधि

22/10/19
in उत्तराखंड, हेल्थ
Reading Time: 1min read
0
SHARES
779
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड
जटामांसी जिसे बालछड़ भी कहा जाता है, यह कश्मीर, भूटान, सिक्किम और कुमाऊं जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में अपने आप उगती है। जटामांसी ठण्डी जलवायु में उत्पन्न होती है। इसलिए यह हर जगह आसानी से नहीं मिलती। इसे जटामांसी इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसकी जड़ में बाल जैसे तन्तु लगे होते हैं। जटामांसी ;वैज्ञानिक नाम नारडोस्टेची है, हिमालय क्षेत्र में उगने वाला एक सपुष्पी औषधीय पादप है। इसका उपयोग तीक्ष्ण गंध वाला इत्र बनाने में होता है। इसे मारवाङी में बालछड़ नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म में घर में धूप और दीप देने का प्राचीनकाल से ही प्रचलन रहा है, जटामांसी का छोटा सुंगधित शाक होता है। इसकी दो प्रजातियाँ गन्धमांसी तथा आकाशमांसी होती है। बाजार में जो जटामांसी बिकती है, उसमें कई प्रकार की मिलावट रहती है। चरक संहिता में धूपन द्रव्यों में जटामांसी का उल्लेख मिलता है। सांस, खांसी, विष संबंधी बीमारी, विसर्प या हर्पिज़, उन्माद या पागलपन, अपस्मार या मिर्गी, वातरक्त या गाउट, शोथ या सूजन आदि रोगों में जिस धूपन का इस्तेमाल होता है, उसमें अन्य द्रव्यों के साथ जटामांसी का प्रयोग मिलता है। सुश्रुत.संहिता में व्रणितोपसनीय जटामांसी का उल्लेख मिलता है। सिर दर्द के लिए जटामांसी एक उत्कृष्ट औषधि है। यह बहुत ही स्वास्थ्यप्रद होता है। यह 10.60 सेमी ऊँचा, सीधा, बहुवर्षायु, शाकीय पौधा होता है। इसका तने का ऊंचा भाग में रोम वाला तथा आधा भाग में रोमहीन होता है। भूमि के ऊपर जटामांसी की जड़ों से इसकी कई शाखाएं निकलती हैं। जो 6.7 अंगुल तक सघन, बारीक, जटाकार, रोमयुक्त होती हैं। इसके आधारीय पत्ता सरल, पूर्ण, 15.20 सेमी लम्बे, 2.5 सेमी चौड़े, अरोमिल होते हैं तथा तने के पत्ते का एक या दो जोड़े, 2.5.7.5 सेमी लम्बे, आयताकार होते हैं। इसके पुष्प 1, 3 या 5 गुलाबी व नीले रंग के होते हैं। इसके फल 4 मिमी लम्बे, छोटे.छोटे, गोलाकार, सफेद रोम से आवृत होता हैं। इसकी जड़ काष्ठीय, लम्बी तथा रेशों से ढकी रहती है। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से नवम्बर तक होता है। जटामांसी का पौधा बहुवर्षीय होता है। लेकिन ये औषधीय जड़ी बूटी लुप्तप्राय है जिसका आयुर्वेद में बरसों से औषधि के रुप में प्रयोग किया जाता रहा है।
जटामांसी प्रकृति से कड़वा, मधुर, शीत, लघु, स्निग्ध, वात, पित्त और कफ तीनों दोषों को हरने वाला, शक्तिवर्द्धक, त्वचा को कांती प्रदान करने वाला तथा सुगन्धित होता है। यह जलन, कुष्ठ, रक्तपित्त नाक-कान खून बहना, विष, बुखार, अल्सर, दर्द, गठिया या जोड़ों में दर्द में फायदेमंद होता है। जटामांसी तेल केंद्रीय तंत्र और अवसाद डिप्रेशन पर प्रभावकारी होती है। बालों का टूटना कम करने के लिए यह बाज़ार में सबसे अच्छा शैंपू, है स्थानीय औषधीय जड़ी.बूटियाँ व उनके उत्पादों का अपनी विशेष क्षमता, दुष्प्रभाव रहित गुणों व सकारात्मक विश्वास के साथ.साथ देशी पारंपरिक ज्ञान का महत्व लगातार बढ़ रहा है। भारत का त्तराखण्ड स्थित मध्य हिमालयी भू.भाग अपनी जैवविविधता और पारंपरिक स्वास्थ्य ज्ञान के लिये जाना जाता है।
उत्तराखण्ड प्राचीन काल से ही प्राथमिक स्वास्थ्य, देखभाल व निराकरण का धनी रहा है। प्रस्तुत अध्ययन के इस क्षेत्र में आवास करने वाली भोटिया व गंगवाल जनजातियों पर जड़ी.बूटियों के पारम्परिक ज्ञान से संबंधित है। भोटिया जनजातीय समुदाय के लोग उच्च हिमालय स्थित पिथौरागढ़ व चमोली जनपदों में रहते हैं और गंगवाल लोग जनपद टिहरी स्थित खतलिंग ग्लेशियर के पास वास करते हैं। शोध पत्र में कुल 78 पादप प्रजातियों के 39 कुलों के 61 वंश सम्मिलित हैं ये पादप 68 प्रकार के रोगों के निदान में प्रयुक्त किये जाते हैं। कुल 78 पादप प्रजातियों में से 26 जड़ी.बूटियों के जड़ व कंद, 20 की पत्तियाँ, 03 के फल, 10 के सम्पूर्ण भाग जड़ सहित, 07 के बीज, 07 के फूल, 01 का तना, 04 के जड़ रहित वायुवीय भाग, 01 का प्रकंद, 02 का वनस्पति दूध लेटेक्स व 01 का गोंद औषधि के रूप में प्रयोग में लाये जाते हैं। लगभग 07 जड़ी.बूटियों का प्रयोग घावों में, 05 का मौसमी बुखार, 05 का सिर दर्द, प्रत्येक 04 का उपयोग गर्भधारण से संबंधित, मोच, पेशाब की समस्या और सर्दी.जुकाम हेतु किया जाता है। इक्कीस पादप प्रजातियों का उपयोग एक से अधिक रोगों के निदान हेतु किया जाता है सत्तावन पादप प्रजातियों का उपयोग केवल एक.एक बीमारी के उपचार हेतु किया जाता है। इनमें से बारह पादप प्रजातियों का उपयोग रंगाई, मसाले, खुशबू व भोज्य पादप के रूप में भी किया जाता है, जोकि क्षेत्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह अध्ययन, दूसरे अनुसंधान कार्यों के लिये मूल सूचना अभिलेखाकरण, पारंपरिक औषधि ज्ञान के संरक्षण, जोकि ग्रामीण समाज के उत्थान में महत्त्वपूर्ण हो सकता है, के लिये प्रयोग किया जा सकता है आज यह अति आवश्यक हो गया है कि इस ज्ञान का संरक्षण, संसाधनों की वृद्धि, पौधों को उनके प्राकृतिक वास में संरक्षण व अनुकूल पर्यावास में रोपण कर इन्हें बचाया जाए। इस प्रकार प्रस्तुत अध्ययन के द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया है कि भोटिया व गंगवाल जनजाति के लोग जड़ी.बूटियों के संबंध में बहुत अच्छी जानकारी रखते हैं और सफलतापूर्वक सदियों से इनका उपयोग करते आ रहे हैं।
आज सामाजिक, आर्थिक व संस्कृति में परिवर्तन के कारण यह प्राचीन ज्ञान प्रणाली समाप्ति के कगार पर खड़ी है आधुनिकीकरण के शिकार से इस ज्ञान को बचाने की अत्यंत आवश्यकता है। आज ये गैर.कानूनी दोहन के कारण हिमालयी क्षेत्र के विभिन्न भागों से विलुप्त हो रहे हैं लगातार और अवांछित दोहन के कारण आर्थिक उपयोगी वनस्पतियों, उनके प्राकृतिक पर्यावास व संरक्षण को खतरा पैदा हो गया है। इसके कारण सदियों पुराने पारंपरिक ज्ञान जो कि उनके दूर दराज के क्षेत्रों में आजीविका का मुख्य साधन हैं, को भी गंभीर खतरा पैदा हो गया हैं अंधाधुंध.संग्रहण के कारण विरल व संकटग्रस्त पादप प्रजातियों जैसे पिक्रोराइजा स्क्रोफ्लुरीफ्लोरा, एकोनाइटम हीटरोफिलम, ऑर्किस लेटीफोलिया, पोडोफिलम हैक्ससैण्ड्रम, स्बेर्टिया चिराटा आदि की आबादी काफी तेजी के साथ कम हो रही है।
आज समाज के आधुनिकीकरण पादप प्रजातियों के दोहन व अन्तरराष्ट्रीय बाजारों में इनके गैर.कानूनी व्यापार के कारण पारंपरिक ज्ञान प्रणाली जो कि भोटिया व गंगवाल जनजातियों के जीवन यापन हेतु महत्त्वपूर्ण है, समाप्ति के कगार पर है।
इस ज्ञान व विलुप्तप्राय पादप प्रजातियों के अभिलेखीकरण व संरक्षण हेतु स्थानीय निवासियों, सरकारी व गैर.सरकारी अभिकरणों को एक साथ मिलकर, जागरूकता अभियान चलाने की सख्त जरूरत है। कानून के पालन कराने वाले अभिकरणों को भी आवश्यकता है कि सख्त नियमों द्वारा इन गैर.कानूनी गतिविधियों व दोहन पर लगाम लगायें। प्राकृतिक जैव.संसाधनों व पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण मानव जाति को सतत विकास की राह प्रदर्शित करता है। ये संसाधन, अनुसंधान हेतु आवश्यक व महत्त्वपूर्ण आगत के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। अतः विकास की अंध.आंधी से पूर्व इनका संरक्षण करना चाहिए।
लेखक द्वारा शोंध के अनुसार वैज्ञानिक शोंध पत्र वर्ष ,2015 भारतीय प्राकृतिक उत्पाद और संसाधन जर्नल पत्रिका में प्रकशित

ShareSendTweet
http://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/02/Video-National-Games-2025-1.mp4
Previous Post

दर्दनाक हादसा: कर्णप्रयाग-पोखरी मार्ग पर मारुति कार खाई में गिरी, दो महिला समेत 5 की मौत

Next Post

राज्यपाल की ड्यूडी में तैनात पुलिस वाहन दुर्घटनाग्रस्त, दो की मौत

Related Posts

उत्तराखंड

सत्य जीवन का आधार है: आचार्य डॉ प्रदीप सेमवाल

June 18, 2025
11
उत्तराखंड

कैबिनेट द्वारा लिए गए महत्वपूर्ण निर्णय

June 18, 2025
13
उत्तराखंड

खराब मौसम ने रोकी हेलिकॉप्टर की राह

June 18, 2025
33
उत्तराखंड

कांग्रेस कमेटी के श्रम विभाग चमोली का जिलाध्यक्ष बनाए जाने पर कांग्रेसियों ने केदार दत्त कुनियाल का जोरदार स्वागत किया

June 18, 2025
6
उत्तराखंड

बैंक सखी योजना के माध्यम से ग्रामीण महिलाएं आत्मनिर्भर बनेगी : मुख्य विकास अधिकारी

June 18, 2025
10
उत्तराखंड

नंदा राजजात यात्रा में यात्रा मार्ग पर दूरसंचार की व्यवस्थाओं के साथ डिजिटल ट्रेकिंग सिस्टम बनाया जाए- मुख्यमंत्री

June 17, 2025
16

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    0 shares
    Share 0 Tweet 0

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

सत्य जीवन का आधार है: आचार्य डॉ प्रदीप सेमवाल

June 18, 2025

कैबिनेट द्वारा लिए गए महत्वपूर्ण निर्णय

June 18, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.