डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
महाकुंभ में रोजाना बेतहाशा भीड़ पहुंच रही है. 144 साल बाद बने इस संयोग का फल हर कोई पाना चाहता है. दरअसल ये महाकुंभ खास है. क्योंकि 144 साल बाद ऐसा संयोग बना है. 4 अमृत स्नान हो चुके हैं और दो शेष हैं. रोजाना करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. संगम में पवित्र डुबकी लगाने वाली की संख्या 38 करोड़ से ज्यादा हो गई है दुनिया के कई देशों के भंते, लामा व बौद्ध भिक्षुओं व सनातन के धर्माचार्यों की उपस्थिति में सनातन बौद्ध एकता का संदेश दिया गया। बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघम् शरणम गच्छामि के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से बुधवार को बौद्ध भिक्षुओं ने शोभायात्रा निकाली। यात्रा का समापना जूना अखाड़े के आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि के प्रभु प्रेमी शिविर में हुआ। वहां पर बौद्ध भिक्षुओं का स्वागत किया। इस अवसर पर महाकुम्भ में तीन प्रमुख प्रस्ताव पास किया गयाा। बांग्लादेश व पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बंद हो पहला प्रस्ताव पास हुआ। दूसरा प्रस्ताव तिब्बत की स्वायत्तता को लेकर पास हुआ। वहीं तीसरा प्रस्ताव सनातन व बौद्ध की एकता को लेकर पास किया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए निर्वासित तिब्बत की रक्षामंत्री गैरी डोलमाहम ने कहा कि सब लोगों के लिए ऐतिहासिक आयोजन है। यह पावन धरती पर बहुत कुछ पहली बार हो रहा है। इतिहास रचा जा रहा है। मैं एक नए इतिहास में भाग ले रही हूं। सनातन व बौद्ध धर्म के बीच जो होना चाहिए जिस तरह का प्रेम भावना नजदीकी होना चाहिए उसकी तरफ बहुत बड़ा कदम इस पावन धरती पर लिया गया है। उन्होंने कहा कि हम बुद्धिस्ट के अंदर भी महायान हैं, हीनयान हैंं, वज्रयान हैं उसके भीतर भी अलग-अलग मठ से आते हैं। इस पावन धरती पर संघ के मार्गदर्शन में हम सबको साथ लाया। एक तरफ भिक्षु एक तरफ लामा देखकर आनंद की अनुभूति हुई। महाम्याकुंभ में हम बौद्ध व सनातनी एक साथ आए हैं और कदम मिलाकर चल रहे हैं। म्यांमार से आये भदंत नाग वंशा ने कहा कि मैं पहली बार महाकुम्भ में आया हूं। हम बौद्ध व सनातन में बहुत ही समानता है। हम लोग विश्व शांति के लिए काम करते हैं। हम भारत और यहां के लोगों को खुश देखना चाहते हैं। भारत सरकार बौद्ध धर्म का काम करने में सहयोग करती है। हम लोग मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री का आभार जताते हैं। अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के भदंत शीलरतन ने कहा कि हम सब एक थे, एक हैं, व एक रहेंगे। हम सब को सुखी करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। जो सनातन मार्ग पर चलता है, जो कुशल कर्मों को करता है, वह कभी दुखी नहीं रहता। भारत कभी विचलित नहीं होता। भारत फिर से अखण्ड होगा और जगद्गुरू भारत बनेगा। हम जिस धरती पर हैं वहां भगवान राम का जन्म हुआ है आज यहां आकर हमें गर्व महसूस हो रहा है। प्रयागराज महाकुम्भ से संगम, समागम व समन्वय का संदेश पूरी दुनिया में जाना चाहिए। कुम्भ का तीन शब्दों से संबंध है। जो भी यहां आता है, वह संगम जाकर स्नान की इच्छा रखता है। यहां गंगा, यमुना व सरस्वती मिल जाती है तो भेद दिखाई नहीं देता। यहां संगम के पूर्व अलग-अलग धारायें हैं। संगम का संदेश है कि यहां से आगे एक धारा चलेगी।दूसरा है समागम। देश में विविध प्रकार के मत-मतांतर के सभी श्रेष्ठ संत यहां आकर आपस में मिलकर संवाद व चर्चा करते हैं। संत एक साथ आएंगे तो सामान्य लोग भी एक साथ मिलकर चलेंगे। तीसरा है समन्वय। विश्व में चलना है तो सबको साथ लेकर चलना। कुम्भ शिविर में आयोजित बौद्ध समागम में कहा कि बुद्ध और ऋषियों के संदेश में एकरुपता है। इसलिए वेद और बुद्ध की धाराएँ परस्पर एकीकृत होकर महाकुम्भ को सार्थकता प्रदान करते हुए वैचारिक संगम स्थापित करेंगी। बुद्ध भारत की अवतारी सत्ता हैं, वो पूजा के संकल्पों में प्रतिपल याद किए जाते हैं। मैत्री, एकात्मता और प्रीति के लिए बौद्ध धारा का समावेश होना चाहिए।लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।